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Delhi Oxygen Report: आक्सीजन सप्लाई पर रिपोर्ट से घिरी दिल्ली सरकार, इन 12 राज्यों ने झेला था सांसों का संकट

सुप्रीम कोर्ट की ओर से उपगठित समिति ने कहा केजरीवाल सरकार ने जरूरत से चार गुना ज्यादा मांगी आक्सीजन। दिल्ली के पास मांग के मुताबिक भंडारण की नहीं थी पर्याप्त जगह टैंकर खाली होने में देरी से दूसरे राज्यों को आपूर्ति बाधित हुई।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 25 Jun 2021 10:24 PM (IST)Updated: Sat, 26 Jun 2021 07:18 AM (IST)
केजरीवाल सरकार ने जरूरत से चार गुना ज्यादा मांगी आक्सीजन (फाइल फोटो)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान पूरे देश में जब आक्सीजन को लेकर अफरा-तफरी मची हुई थी और राजनीति चरम पर थी, तब दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार दबाव बनाकर जरूरत से चार गुना ज्यादा आक्सीजन ले रही थी। दिल्ली सरकार की इस करतूत के चलते राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और पंजाब समेत 12 राज्यों ने आक्सीजन का संकट झेला। आक्सीजन की किल्लत के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय कार्यबल यानी एनटीएफ की एक उपसमिति ने अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसी बातें कही हैं, जिसने दिल्ली सरकार को कठघरे में ला दिया है। 

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उपसमिति ने 23 पेज की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दूसरी लहर के दौरान दिल्ली सरकार ने जरूरत से ज्यादा आक्सीजन की मांग दिखाई और उसके आवंटन के लिए दबाव बनाया। सच्चाई यह है कि केजरीवाल सरकार जितनी आक्सीजन मांग कर रही थी, उसके भंडारण के लिए उसके पास पर्याप्त व्यवस्था तक नहीं थी। खपत कम होने से आक्सीजन टैंकरों को खाली करने में ज्यादा समय लग रहा था। इसके चलते दूसरे राज्यों को आक्सीजन की आपूर्ति करने के लिए टैंकर मिलने में देरी हो रही थी। 

रिपोर्ट में कहा है कि जांच के दौरान उपसमिति ने पाया कि 25 अप्रैल से 10 मई के बीच दिल्ली सरकार ने जितनी मात्रा में आक्सीजन की खपत का दावा किया, वह अस्पताल के बिस्तरों के आधार पर बनाए गए फार्मूले के मुकाबले चार गुना अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार की तरफ से एक दिन 1,140 मीट्रिक टन आक्सीजन की खपत की जरूरत बताई गई, जबकि फार्मूले के अनुसार उस दिन दिल्ली में 289 मीट्रिक टन आक्सीजन की ही खपत होनी चाहिए थी। 

उपसमिति ने कहा है कि अगर खपत को बढ़ाते हुए प्रतिदिन 400 मीट्रिक टन भी कर दिया जाए, तब भी दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट से 700 मीट्रिक टन आक्सीजन की आपूर्ति जारी रखने का आदेश ले आई। केंद्र सरकार के फार्मूले के मुताबिक गैर-आइसीयू बेड पर भर्ती 50 फीसद मरीजों को ही आक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ती है, लेकिन दिल्ली सरकार ने दावा किया था कि गैर-आइसीयू बेड पर रखे गए सभी मरीजों को आक्सीजन सपोर्ट देनी पड़ रही है। 

विशेषज्ञों की राय पर केंद्र का फार्मूला

आक्सीजन आपूर्ति का केंद्र का फार्मूला विशेषज्ञों की राय के आधार पर तैयार किया गया था। उसके आधार पर ही दूसरे राज्यों को आक्सीजन की आपूर्ति की जा रही थी। वहीं, दिल्ली सरकार का कहना था कि उसने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के दिशानिर्देशों के आधार पर फार्मूला तैयार किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उपसमिति की तरफ से दिल्ली सरकार से जब आइसीएमआर के दिशानिर्देशों की मांग की गई तो वह कुछ भी प्रस्तुत नहीं कर सकी। 

निगेटिव खपत की बात छिपाई

उपसमिति की 13 मई की बैठक में पाया गया कि दिल्ली के सिंघल अस्पताल, अरुणा आसफ अली, इएसआइसी माडल अस्पताल और लाइफरे अस्पताल ने अपनी बेड क्षमता के मुकाबले काफी अधिक आक्सीजन की खपत का दावा किया था। कुछ अस्पतालों ने जरूरत से अधिक आक्सीजन की सप्लाई होने से निगेटिव खपत की बात बताई जबकि दिल्ली सरकार की तरफ से पेश रिपोर्ट में किसी भी अस्पताल में निगेटिव खपत का जिक्र नहीं किया गया। 

डाटा एकत्र करने में भी गड़बड़ी की

उपसमिति की बैठक में उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआइआइटी) के अतिरिक्त सचिव ने आक्सीजन को लेकर दिल्ली सरकार की तरफ से डाटा एकत्र करने में पाई गई खामियों पर अपनी नाराजगी जताई थी। सचिव ने कहा कि अब भी यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि किस आधार पर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रोजाना 700 मीट्रिक टन आक्सीजन आवंटन की मांग की थी। 

गलत फार्मूला तैयार किया

उपसमिति ने कहा कि जांच में पाया गया कि दिल्ली सरकार ने आक्सीजन की मांग को लेकर गलत फार्मूला तैयार किया। उसके आधार पर बढ़ा-चढ़ाकर आक्सीजन की मांग की। हाल यह था कि दिल्ली के कई अस्पताल को किलोलीटर और मीट्रिक टन में फर्क ही नहीं पता था। 

दिल्ली एम्स के निदेशक उपसमिति के अध्यक्ष

दिल्ली एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय उपसमिति का गठन किया था। इसमें मैक्स हेल्थकेयर के निदेशक संदीप बुद्धिराजा, दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव बीएस भल्ला, जल शक्ति मिशन के संयुक्त सचिव सुबोध यादव और पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी आर्गेनाइजेशन (पेसो) के विस्फोटक नियंत्रक डा. संजय कुमार सिंह भी शामिल थे।


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