Al-Zawahiri Killed: वैश्विक आतंकवाद का बदलता परिदृश्य, अल जवाहिरी का मारा जाना भारत के हितों के अनुकूल
अलकायदा सरगना अल जवाहिरी के अफगानिस्तान में इसी मकान में छिपे होने की सूचना मिलने पर अमेरिका ने उसे ढेर कर दिया परंतु समूचे विश्व से आतंकवाद का सफाया करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। फाइल
शिखा गौतम। हाल ही में अफगानिस्तान में मारा गया अलकायदा सरगना अल जवाहिरी पेशे से नेत्र सर्जन था। मिस्र का रहने वाला जवाहिरी आरंभ से ही कट्टरपंथी संगठनों से जुड़ा रहा और बाद में ओसामा बिन लादेन के साथ जुड़ गया। अलकायदा में उसका स्थान दूसरे सबसे शक्तिशाली आतंकी के तौर पर रहा। माना जाता है कि अमेरिका में 9/11 की घटनाओं को मूर्त रूप देने में जवाहिरी की भूमिका महत्वपूर्ण थी। भारत के संदर्भ में देखें तो अल जवाहिरी द्वारा 2014 और फिर इसी वर्ष जारी किए गए जिन दो वीडियो में भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा (एक्यूआइएस यानी अलकायदा इन इंडियन सब-कंटीनेंट) के गठन की जानकारी दी गई, उसे भारत में मौलाना आसिम उमर द्वारा संचालित किए जाने की बात भी कही गई। बाद में आसिम उमर की पहचान उत्तर प्रदेश के सनौल हक के रूप में की गई, जिसके बारे में कहा गया कि अफगानिस्तान में हुए ड्रोन हमले में उसकी मृत्यु हो चुकी है। हालांकि इसके पुख्ता प्रमाण अभी नहीं मिले हैं।
अल जवाहिरी का मारा जाना भारत के हितों के अनुकूल
वर्ष 2015 में एक्यूआइएस ने गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, केरल और जम्मू-कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में आतंकियों की भर्ती के प्रयास शुरू किए गए थे। इनके निशाने पर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थल, व्यावसायिक स्थल और धार्मिक स्थल रहे। इसके साथ ही कर्नाटक के एक कालेज में हिजाब को लेकर इसी वर्ष हुए एक विवाद के संदर्भ में भी अल जवाहिरी की ओर से एक वीडियो जारी किया गया था। कर्नाटक की एक कालेज छात्रा मुस्कान खान द्वारा लगाए गए एक विशेष नारे की इस वीडियो में प्रशंसा की गई थी। इन दो वीडियो के अलावा जवाहिरी द्वारा जारी किए गए अलग-अलग वीडियो में भारत के मुसलमानों को लेकर छिटपुट उद्बोधन भी शामिल रहे जिनमें लोकतांत्रिक भारतीय व्यवस्था को समाप्त करने के लिए धार्मिक जिहाद की बात की गई थी। ऐसे में अल जवाहिरी का मारा जाना भारत के हितों के अनुकूल ही है।
आतंक का बदलता प्रारूप
वर्तमान में संगठित आतंकवाद में जहां विचार, व्यवहार और संपर्क तीन महत्वपूर्ण कारक थे, वहीं आतंकियों की भर्ती, उनके प्रशिक्षण और निर्देशन के आधार पर की जाने वाली आतंकी गतिविधियों का पुराना स्वरूप बदल चुका है और यह संगठित व्यवस्था पूरी तरह से विकेंद्रीकृत हो चुकी है, जहां व्यक्ति या छोटे समूह किसी बड़े आतंकी समुदाय से जुड़े बिना आतंकी हमलों को अंजाम देते हैं। इन आतंकी हमलों में शामिल व्यक्ति किसी बड़े आतंकी संगठन को वैचारिक तौर पर भले ही समर्थन करते हों, लेकिन इनके द्वारा आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने का तरीका किसी संगठन की प्रणाली से भिन्न होता है। इसके साथ ही आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले कुछ अन्य व्यक्ति एवं समूह किसी बड़े आतंकी समूह के नेतृत्व के निर्देशन पर नहीं, बल्कि अपनी वैचारिक स्वायत्तता के आधार पर भी आतंकी हमलों को अंजाम दे रहे हैं।
कट्टर विचारों के आदान-प्रदान पर रोकटोक
ऐसे में यह समझने की आवश्यकता है कि व्यक्तिगत रूप से किसी को मारने यानी लोन वुल्फ हमलों की योजना बनाना, उसके लिए अभ्यास और फिर उसे अंजाम देने की प्रक्रिया में किसी भी आतंकी संगठन द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर कोई सहायता या निर्देशन प्रदान नहीं किया जाता है। ये लोन वुल्फ हमले प्राय: सुनियोजित और व्यापक संसाधनों के साथ नहीं होते, बल्कि इन्हें व्यक्तिगत तौर पर किए जाने वाले छोटे स्तर के हमलों के रूप में जाना जाता है, जहां बिना किसी सहायता के आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है। व्यक्तिगत रूप से आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की सबसे अधिक प्रेरणा इंटरनेट से मिलती है। चूंकि विविध इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से कट्टर विचारों के आदान-प्रदान पर कोई रोकटोक नहीं है, लिहाजा ये उसे एक बड़े हथियार के रूप में अपनाते हैं। इसके साथ ही इंटरनेट विभिन्न प्रकार के अतिवादी साहित्यों तक पहुंचने में भी मदद करता है, जिनके द्वारा किसी भी व्यक्ति के लिए पहले कट्टरपंथ और फिर आतंकी घटनाओं को अंजाम देना पहले जितना मुश्किल नहीं है। इस संदर्भ में यदि हम ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स, 2019 की रिपोर्ट देखें तो पता चलता है कि पश्चिमी देशों में लोन वुल्फ हमलों की संख्या में वृद्धि हुई है।
वर्ष 1970 से 2014 आते आते यह पांच प्रतिशत से 70 प्रतिशत पर पहुंच चुकी है। लोन वुल्फ हमलों में होने वाली वृद्धि संगठित आतंकी समूहों में गिरावट को भी इंगित करती है। इसके साथ यदि हम एशिया और विशेष रूप से दक्षिण एशिया को देखें तो 2019 के पश्चात आइएस की क्षेत्रीय असफलता के बाद से इस क्षेत्र में इसके फिर से खड़े होने की आशंका कम ही है। हालांकि एक ऐसी आशंका भी सामने आ रही है कि आतंकी संगठन अलग-अलग देशों में कट्टरपंथियों, उग्रवादियों और उनके संगठन से सहानुभूति रखने वाले लोगों द्वारा किए जाने वाले व्यक्तिगत हमलों को प्राथमिकता दे सकते हैं।
आतंकी संगठनों की समाज में बढ़ती पैठ
ऐसे में अल जवाहिरी के मारे जाने की घटना आतंक पर राज्य और न्याय की पारंपरिक विजय को दर्शाता है। लेकिन साथ ही आतंकवाद के बदलते स्वरूप को भी ध्यान में रखना होगा। वर्तमान में कट्टरपंथ और आतंकवाद किसी संगठनात्मक ढांचे का हिस्सा न होकर व्यक्तिगत तौर पर किए जाने वाली गतिविधियों में शामिल हो गए हैं। यहां तक कि अलकायदा जैसे आतंकी संगठन भी भौगोलिक स्तर पर आने वाली बाधाओं के कारण लोन वुल्फ की घटनाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। तकनीक के विस्तार और आतंकी संगठनों की समाज में बढ़ती पैठ को देखते हुए वैश्विक स्तर पर सभी सरकारों के द्वारा आतंकवाद निरोधी नीतियों की पुन: समीक्षा और उसमें बदलाव किए जाने की आवश्यकता है। आतंकवाद निरोधी प्रयासों के साथ ही कट्टरपंथ को भी आतंकवाद से अलग हटकर समझने की जरूरत है, ताकि कट्टरपंथी विचारों को आतंकी गतिविधियों में परिणत होने से रोका जा सके।
[दत्तोपंत ठेंगड़ी फाउंडेशन से संबद्ध]