Move to Jagran APP

अस्थमा की बीमारी का एक बड़ा कारण वायु प्रदूषण भी, बचने के लिए रखिए इन बातों का ध्यान

हर मौसम की कुछ खूबियां हैं तो कुछ खामियां भी। ऐसे मौसम में अस्‍थमा और कुछ विशेष प्रकार के संक्रमणों के मामले कहीं ज्यादा बढ़ जाते हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Mon, 04 May 2020 07:04 PM (IST)Updated: Mon, 04 May 2020 07:04 PM (IST)
अस्थमा की बीमारी का एक बड़ा कारण वायु प्रदूषण भी, बचने के लिए रखिए इन बातों का ध्यान

नई दिल्ली। उम्र बढ़ने के साथ तमाम तरह की बीमारियां भी इंसान को घेरने लगती है। कई बार आसपास का वातावरण भी बीमारी का कारण बनता है। कुछ बीमारियों के लिए वायु प्रदूषण भी जिम्मेदार माना जाता है। इसी में एक बीमारी का नाम है अस्‍थमा। ये एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी की सांस की नलियों में कुछ कारणों के प्रभाव से सूजन आ जाती है। इस कारण रोगी को सांस लेने में कठिनाई होती है।

loksabha election banner

जिन कारणों से अस्‍थमा का प्रकोप बढ़ता है, उन्हें एलर्जन कहा जाता है। सर्दियों के मौसम की कुछ खूबियां हैं तो कुछ खामियां भी। इस मौसम में अस्‍थमा और कुछ विशेष प्रकार के संक्रमणों के मामले कहीं ज्यादा बढ़ जाते हैं, लेकिन कुछ सजगताएं बरत कर आप स्वस्थ रहते हुए इस मौसम का लुत्फ उठा सकते हैं। आज विश्व अस्थमा दिवस है, इस मौके पर हम आपको बता रहे इसके कुछ लक्षण और इससे बचाव के तरीके... 

क्‍या है अस्‍थमा

अस्‍थमा फेफड़ों की एक बीमारी है जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा होने पर श्वास नलियों में सूजन आ जाती है जिस कारण श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है। श्वसन नली में सिकुड़न के चलते रोगी को सांस लेने में परेशानी, सांस लेते समय आवाज आना, सीने में जकड़न, खांसी आदि समस्‍याएं होने लगती हैं। लक्षणों के आधार अस्थमा के दो प्रकार होते हैं- बाहरी और आंतरिक अस्थमा। बाहरी अस्थमा बाहरी एलर्जन के प्रति एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है, जो कि पराग, जानवरों, धूल जैसे बाहरी एलर्जिक चीजों के कारण होता है। आंतरिक अस्थमा कुछ रासायनिक तत्वों को श्‍वसन द्वारा शरीर में प्रवेश होने से होता है जैसे कि सिगरेट का धुआं, पेंट वेपर्स आदि। 

डायग्नोसिस

अधिकतर लक्षणों के आधार पर मर्ज का निदान (डायग्नोसिस) किया जाता है। इसके अलावा कुछ परीक्षण करके जैसे सीने में आला लगाकर, म्यूजिकल साउंड (रान्काई) सुनकर और फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच (पी.ई.एफ.आर. और स्पाइरोमेट्री) द्वारा की जाती है। अन्य जांचों में खून की जांच, सीने और पैरानेजल साइनस का एक्सरे कराया जाता है। 

इलाज

अस्‍थमा का इलाज डॉक्टर की सलाह से इनहेलर चिकित्सा लेना है। इलाज की अन्य विधियों जैसे - ओमेलीजुमेब या एन्टी आईजीई थेरेपी और ब्रॉन्कियल थर्मोप्लास्टी आदि की जरूरत पड़ने पर मदद ली जाती है।

अस्थमा हो तो क्या करें

- अस्‍थमा की दवा हमेशा अपने पास रखें।

- धूमपान से बचें।

- जिन कारणों से अस्‍थमा का प्रकोप बढ़ता है, उनसे बचें।

- फेफड़े को मजबूत बनाने के लिए सांस से संबंधित व्यायाम करें।

- प्राणायाम करना अत्यंत लाभप्रद है।

- ठंड से बचें।

- यदि बलगम गाढ़ा हो गया है, खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाए या रिलीवर इनहेलर की जरूरत बढ़ गई हो, तो शीघ्र अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

क्या न करें 

- एलर्जन के संपर्क में न आएं।

- घर में जानवरों को न पालें।

- धूल को घर में जमने न दें।

- कोल्डड्रिंक्स, आइसक्रीम, फास्ट फूड्स, अंडा व मांसाहारी भोजन से परहेज करें। 

ये हैं कारण आनुवंशिक कारण 

- धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट।

- रसोई का धुआं।

- नमी और सीलन।

- मौसम परिवर्तन।

- सर्दी-जुकाम।

- धूमपान।

- फास्टफूड्स।

- मानसिक चिंता।

- पालतू जानवर।

- फूलों के परागकण।

- लक्षणों को समझें

अस्थमा से ऐसे कर सकते हैं बचाव

मौसम बदलने से सांस की तकलीफ बढ़ती है तो मौसम बदलने के चार से छह सप्ताह पहले ही सजग हो जाना चाहिए। सांस रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। ऐसे कारक जिनकी वजह से सांस की तकलीफ बढ़ती है या जो सांस के दौरे को उत्पन्न कर सकते है उनसे बचाव करना चाहिए। जैसे- धूल और धुआं आदि। इस संदर्भ में कुछ अन्य सुझावों पर भी ध्यान दें...

- ऐसे खाद्य पदार्र्थों से परहेज करें जो रोगी के संज्ञान में स्वयं आ जाते है कि वे नुकसान कर रहे हैं।

- आमतौर पर शीतल पेय, फास्टफूड्स और प्रिजरवेटिव युक्त खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।

- व्यायाम या मेहनत का कार्य करने से पहले इनहेलर अवश्य लेना चाहिए।

- सर्दी, जुकाम, गले की खराश या फ्लू जैसी बीमारी का इलाज कराएं।

- घर हवादार होना चाहिए, सीलन युक्त न हो और धूप आनी चाहिए।

- बच्चों को लंबे रोएंदार कपड़े न पहनाएं व रोएंदार खिलौने खेलने को न दें।

- घर की सफाई, पुताई व पेंट के समय रोगी को घर से बाहर रहना चाहिए।

- भाप (स्टीम) लेना लाभप्रद है।  

संक्रमण से बचे

सर्दियों के मौसम में हवा में व्याप्त वायरस और जीवाणुओं से होने वाले रोगों का जोखिम बढ़ सकता है। तापमान में गिरावट का प्रभाव भी व्यक्ति के शरीर पर पड़ता है। ऐसी स्थिति में कुछ संक्रमणों के होने का जोखिम बढ़ जाता है, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर इन संक्रमणों से बचा जा सकता है।

अस्थमा होने के बाद ये समस्याएं बढ़ती हैं

सांस नली को प्रभावित करने वाले वायरस और न्यूमोकोकस और अन्य जीवाणुओं के संक्रमण के कारण सांस संबंधी बीमारियां बढ़ती हैं। सर्दियों के मौसम में जुकाम, गले में खराश, सीने में संक्रमण आदि का प्रकोप बढ़ता है। नोरोवायरस से तेज दस्त (पेट का फ्लू) और उल्टी आदि समस्याएं पैदा हो सकती हैं। उल्टी होने से शरीर में पानी की कमी (डीहाइड्रेशन)की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। ठंडक के कारण त्वचा की शुष्कता (ड्राइनेस) से त्वचा का संक्रमण और त्वचा की बीमारियां बढ़ सकती हैं।

रोकथाम

सर्दियों के मौसम में आमतौर पर लोगों को भूख खुलकर लगती है। इस कारण लोग जमकर खाते हैं और सर्दियों के कारण सुबह सैर करने या व्यायाम करने में आलस्य बरतते हैं। नतीजतन लोगों का वजन बढ़ जाता है। इसलिए शारीरिक व्यायाम और धूप निकलने पर सुबह की सैर करना जारी रखें। ऊनी कपड़े पहनकर स्वयं को गर्म रखने से सर्दी, फ्लू या निमोनिया(न्यूमोनिया) जैसी बीमारियों को रोका जा सकता है। 

तापमान बहुत कम होने पर अगर संभव हो तो दिल की बीमारियों से ग्रस्त लोगों और अस्‍थमा पीड़ितों को घर के अंदर ही रहना चाहिए। पर्याप्त मात्रा में पानी पीना और पौष्टिक खाद्य पदार्थ लेना आवश्यक है। खाद्य पदार्थ ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं, जो शरीर को गर्म रखते हैं। अस्वस्थता की स्थिति में शीघ्र ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। किसी भी खाद्य पदार्थ के खाने से पहले साबुन से या फिर हेंड सैनिटाइजर से हाथ साफ करें।

इन्फ्लूएंजा का टीका: यह वैक्सीन (टीका) मौसमी इन्फ्लूएंजा और स्वाइन फ्लू (एच1 एन1) वायरस से सुरक्षा प्रदान कर सकती है। इसे प्रतिवर्ष लगवाना पड़ता है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.