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जांबाज दस्ता: वायुसेना की 17वीं स्क्वाड्रन 'गोल्डन ऐरोज' में शामिल किया गया राफेल, जानें- इसके बारे में

आइए जानते हैं वायुसेना की 17 वीं स्क्वाड्रन और अंबाला एयरबेस के बारे में जिनका नाम भारतीय वायुसेना के इतिहास में बेहद सम्मान से लिया जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2020 07:36 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2020 11:15 AM (IST)
जांबाज दस्ता: वायुसेना की 17वीं स्क्वाड्रन 'गोल्डन ऐरोज' में शामिल किया गया राफेल, जानें- इसके बारे में

नई दिल्‍ली, जेएनएन। भारतीय वायुसेना के स्वर्णिम इतिहास में एक और नया अध्याय जुड़ गया। दुनिया के सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमानों में से एक राफेल बुधवार को अंबाला पहुंचे। पहली खेप में 5 राफेल विमान भारत पहुंचे हैं। 4.5 पीढ़ी का यह विमान अपनी पीढ़ी के विमानों में सबसे आगे है, जो लीबिया और दूसरे स्थानों पर अपने रण कौशल का परिचय दे चुका है। अंबाला में वायुसेना की 17वीं स्क्वाड्रन है, जिसे गोल्डन ऐरोज के नाम से भी जाना जाता है। फ्रांस निर्मित राफेल को शामिल करने वाली यह पहली स्क्वाड्रन होगी। आइए जानते हैं वायुसेना की 17 वीं स्क्वाड्रन और अंबाला एयरबेस के बारे में, जिनका नाम भारतीय वायुसेना के इतिहास में बेहद सम्मान से लिया जाता है।

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ऐसे जानिए भारतीय वायुसेना की 17वीं स्क्वाड्रन (गोल्डन ऐरोज) को

  • वायुसेना की 17वीं स्क्वाड्रन 1951 में अस्तित्व में आई। जिसमें हेवीलेंड वैम्पायर एफ एकके 52 लड़ाकू विमान थे।
  • यह अंबाला में तैनात भारतीय वायुसेना की एक स्क्वाड्रन है। यह पश्चिमी एयर कमांड के अंतर्गत आने वाली ऑपरेशनल कमांड है।
  • स्क्वाड्रन को 8 नवंबर 1988 को प्रेसिडेंट स्टैंडर्ड से सम्मानित किया गया। यह सम्मान युद्ध या शांति के समय असाधारण सेवा के लिए वायुसेना की यूनिट या स्क्वाड्रन को दिया जाता है।
  • यह स्क्वाड्रन अपने समय के सबसे बेहतर लड़ाकू विमानों की तैनाती और संचालन की विरासत को आगे बढ़ा रही है। करीब दो दशकों तक 1957 से 1975 तक यह हॉकर हंटर विमानों का घर रही।
  • स्क्वाड्रन ने करीब चार दशकों (1975 से 2016) तक भटिंडा एयरबेस से सोवियत संघ र्नििमत मिग-21 का संचालन किया। रूसी मिग-21 विमानों को चरणबद्ध रूप से भारतीय वायुसेना से हटाने के बाद स्क्वाड्रन बिखर गई थी।

सबसे कुशल पायलटों के हाथ रही कमान: इस स्क्वाड्रन की कमान भारतीय वायुसेना के सबसे कुशल फाइटर पायलटों के हाथ में रहने का गौरवशाली अतीत भी रहा है। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पूर्व वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने इस स्क्वाड्रन की कमान संभाली थी। मार्शल ऑफ द एयरफोर्स अर्जन सिंह और यहां तक कि देश के पहले वायुसेनाध्यक्ष एयर मार्शल सुब्रतो मुखर्जी ने भी ग्रुप कैप्टन के रूप में अंबाला एयर बेस की कमान संभाली है।

अंबाला एयर बेस का गौरवशाली इतिहास: अंबाला एयर बेस रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यह एयरबेस भारत- पाकिस्तान सीमा से महज 220 किमी दूर है। इसे सबसे पुराने एयरबेस होने का गौरव भी प्राप्त है, जो करीब एक सदी पुराना है। यहां 1919 में रॉयल एयरफोर्स की 99वीं स्क्वाड्रन अस्तित्व में आई थी। 1922 तक इसने रॉयल एयरफोर्स की भारतीय कमांड के मुख्यालय के रूप में कार्य किया। 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अंबाला एयरफोर्स बेस पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों की भारी बमबारी की चपेट में भी आया। 1948 से 1954 तक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर स्कूल के रूप में भी कार्य किया।

अंबाला एयरबेस से कई सफल ऑपरेशन: अंबाला एयरबेस से कई सफल ऑपरेशन चलाए गए हैं। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन सफेद सागर और 2001-2002 के भारत पाकिस्तान सैन्य तनाव के दौरान ऑपरेशन पराक्रम के तहत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कारगिल युद्ध के दौरान यहां से दुश्मनों पर हमला और अन्य कारणों से लड़ाकू विमानों ने 234 उड़ानें भरीं। इनमें से कई ऑपरेशन रात को अंजाम दिए गए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित बालाकोट में आतंकी ठिकानों को तबाह करने में भी अंबाला एयरबेस से मिराज विमानों ने उड़ान भरी थी। फिलहाल यह बेस जगुआर विमानों की दो स्क्वाड्रन का बेस है।

यह भी देखें: उस इंडियन पायलट की कहानी जिसने सबसे पहले उडाया राफेल


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