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    Agnipath Scheme Protest: उचित नहीं उकसावे की राजनीति, कांग्रेस समेत विपक्ष के कई दल इस योजना के विरोध में

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 24 Jun 2022 11:20 AM (IST)

    सेना में भर्ती के लिए घोषित अग्निपथ योजना का देश के कई हिस्सों में विरोध हो रहा है। युवाओं ने सड़कों पर हिंसक प्रदर्शन भी किया। बिहार समेत कई राज्यों में आंदोलनकारियों ने सरकारी संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया। युवाओं के मन में इस योजना को लेकर कई सवाल हैं।

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    सरकार और सेना विभिन्न मंचों और माध्यमों से युवाओं के सवालों और आशंकाओं का जवाब दे रही

    राजेश माहेश्वरी। केंद्र सरकार द्वारा सेना में नियुक्ति के लिए घोषित अग्निपथ योजना का कई विपक्षी दलों द्वारा विरोध किया जा रहा है। कांग्रेस समेत विपक्ष के कई दल इस योजना के विरोध में हैं। इन दलों के नेता अपने भाषणों, बयानों और इंटरनेट मीडिया के माध्यम से युवाओं को भ्रमित कर रहे हैं। चूंकि यह योजना देश के भविष्य यानी युवाओं से जुड़ी है। ऐसे में इस मसले पर राजनीतिक दलों का इस प्रकार का अगंभीर आचरण बड़ी चिंता की वजह है।

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    सेना प्रमुख से लेकर तमाम जिम्मेदार अधिकारियों ने इस योजना को लेकर उपजी आशंकाओं को शांत करने की भरसक कोशिश की है। यह कोशिश लगातार जारी है। इस पूरे मामले में सरकार की आलोचना करते-करते कुछ नेताओं ने सेनाध्यक्षों पर भी जिस तरह की टिप्पणियां की हैं, वह निश्चित तौर पर उस मर्यादा का उल्लंघन है जिसके अंतर्गत सेना को राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से परे रखा जाता है। इस योजना के बारे में प्रारंभिक तौर पर लगा कि इसे जल्दबाजी में तैयार किया गया है। लेकिन धीरे-धीरे यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि बीते अनेक दशकों से इस पर मंथन चल रहा था।

    असल में विपक्ष को सरकार के हर निर्णय का विरोध और आलोचना करने की आदत सी हो गई लगती है। कृषि कानूनों से लेकर तमाम दूसरे निर्णयों पर विपक्ष ने सकारात्मक विमर्श की बजाय सड़क पर उतरने का काम किया। विपक्ष ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा परिवेश बनाने की कोशिश की कि सरकार का हर फैसला जन विरोधी है। विपक्ष के रवैये के चलते नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता पंजी, कृषि कानून विरोधी आंदोलन और अब युवाओं के इस विरोध का रुख हिंसक हुआ। कुल मिलकर विपक्ष हर मसले पर विरोध के स्वर को बुलंद करना चाहता है।

    बात अगर अग्निपथ योजना की करें तो इस योजना को लेकर विपक्ष ने अपने विरोध का कोई ठोस कारण पेश नहीं किया। और न ही सरकार के साथ इसे लेकर कोई सार्थक विचार विमर्श ही किया। बस योजना की घोषणा होते ही विरोध के स्वर उभरने लगे और करोड़ों की सरकारी संपत्ति को आंदोलनकारियों ने स्वाहा कर डाला। विपक्ष ने बातचीत के रास्ते की बजाय सरकार की छवि धूमिल करने और युवाओं को भ्रमित करने का काम किया।

    इसमें कोई दो राय नहीं कि चार साल बाद सेवानिवृत्त होने वाले नौजवान का अपने भविष्य के प्रति चिंतित होना स्वाभाविक है। यह बात भी सही है कि किसी भी नौकरी का आकर्षण वेतन के अलावा मिलने वाली अन्य सुविधाएं और भत्ते तो होते ही हैं, लेकिन सेवा निवृत्ति के बाद मिलने वाली इलाज की सुविधा और पेंशन आदि का भी बड़ा महत्व है। विशेष रूप से सेना की नौकरी से निवृत्त जवान को मिलने वाली आर्थिक सुरक्षा तथा सुविधाओं की वजह से ही बड़ी संख्या में नौजवान सैनिक बनने की चाहत रखते हैं। लेकिन राजीव गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक न जाने कितने प्रधानमंत्री आए-गए, परंतु किसी ने भी सेना में सुधार कार्यक्रम तैयार करने वाली समितियों और उनकी गतिविधियों को रोका नहीं। यह भी जानकारी मिल रही है कि सेना की तरफ से समय-समय पर रक्षा मंत्रलय को तत्संबंधी सुझाव दिए गए जिन पर सरकार द्वारा विचार किया जाता रहा। पूरे एक दशक तक यूपीए की सरकार का नेतृत्व मनमोहन सिंह ने किया। कारगिल रक्षा समिति उसके पूर्व ही बन चुकी थी। फौज की औसत आयु घटाने संबंधी जो निर्णय विश्व के कई देशों ने किए, वे ही मूल रूप से उक्त समितियों की विषय सूची में रहे होंगे।

    अनेक पूर्व सेनाध्यक्षों ने टीवी चर्चाओं में यह स्पष्ट किया कि वेतन और पेंशन पर कुल बजट का 85 प्रतिशत खर्च हो जाने के कारण सेना के आधुनिकीकरण का काम पिछड़ रहा था। यह बात भी सामने आई है कि आजकल युद्ध में सैनिकों के साथ-साथ तकनीक की भूमिका काफी बढ़ती जा रही है, जिसमें नई पीढ़ी जल्दी पारंगत होती है। यह भी कि युद्ध की स्थिति में 21 से 25 साल आयु वर्ग के जवान और अधिकारी ही सबसे बढ़िया शौर्य प्रदर्शन करते हैं। ऐसे में नीतियों में सामयिक परिवर्तन महसूस किया गया।

    आंकड़ों के अनुसार भारतीय सेना में औसत आयु 32 वर्ष है, जबकि दुनिया के प्रमुख देशों ने इसे घटाकर 26 वर्ष कर लिया है। ऐसे में अग्निपथ योजना को लेकर खड़ा किया गया विरोध गलत अवधारणाओं और दुष्प्रचार पर आधारित लगता है। आंकड़ों के आलोक में बात की जाए तो लगभग 13 हजार जवान प्रतिवर्ष सेवा निवृत्त हो जाते हैं या नौकरी छोड़ देते हैं। जिन सुधारों का जमकर, कट्टर विरोध किया गया था, आज वे सभी हमारी व्यवस्था के बुनियादी ढांचे हैं। क्या आज कंप्यूटर के बिना हम रोजमर्रा के कार्यो की भी कल्पना कर सकते हैं? इसी तरह ‘अग्निपथ’ के जरिए सैन्य सुधार धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहे हैं। सरकार द्वारा योजना वापस न लिए जाने की घोषणा से एक बात साफ हो गई कि वह और सेना दोनों अग्निपथ को लेकर संकल्पित हैं और उन्हें ये विश्वास है कि ये योजना सेना और अग्निवीर दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगी।

    भारत सरकार ने रिटायर हुए ‘अग्निवीरों’ के लिए रक्षा मंत्रलय समेत रक्षा के 16 सार्वजनिक उपक्रमों में और दूसरी तरफ गृह मंत्रलय ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल में 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की है। कुछ और मंत्रलयों और राज्य सरकारों में भी ‘अग्निवीरों’ को प्राथमिकता दी जाएगी। वैसे इस योजना की अग्निपरीक्षा भर्ती शुरू होते ही हो जाएगी। यदि युवाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया तो ये माना जाएगा कि हिंसा तथा आगजनी उसी साजिश का हिस्सा है जिसके तहत बीते कुछ समय से देश के अनेक हिस्सों में अशांति फैलाई जा रही है। युवा देश की शक्ति और भविष्य हैं, ऐसे में उनसे जुड़े मामलों में राजनीति को कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता।

    [स्वतंत्र पत्रकार]

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