जेट एयरवेज की बंदी से विमानन क्षेत्र चिंतित, दबावग्रस्त एयरलाइन उद्योग को नई सरकार का इंतजार
एयर इंडिया पर दबाव व इंडिगो के भीतर तनाव की खबरों ने बेचैनी बढ़ा दी है। नई सरकार को नीतियों की समीक्षा कर एयरलाइन उद्योग के हित में कदम उठाने होंगे।
नई दिल्ली, जेएनएन। केंद्र में जो भी नई सरकार बनेगी उसके समक्ष डगमगाते विमानन क्षेत्र को फिर से पटरी पर लाने की चुनौती होगी। पिछले दस-बारह महीनों से भारतीय विमानन क्षेत्र असामान्य परिस्थितियों से जूझ रहा है। इसमें कई एयरलाइनों की हालत बिगड़ने के साथ जेट एयरवेज का भट्ठा बैठ गया। और अब तो देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो में प्रमोटरों में विवाद की खबरें आ रही हैं। ऐसे में नई सरकार को नीतियों की समीक्षा कर उद्योग के हित में कुछ कदम उठाने होंगे।
साल भर पहले तक भारत का एयरलाइन उद्योग कमोबेश अच्छी स्थिति में था। ज्यादातर एयरलाइनें मुनाफे में थीं। लेकिन 2019 आते-आते अचानक ऐसे हालात पैदा हुए कि एक के बाद एक कई एयरलाइनें मुश्किलों का शिकार होने लगीं। इसके संकेत तभी से मिलने लगे थे जब एयर इंडिया के रणनीतिक विनिवेश के सरकार के फैसले पर उद्योग ने ठंडा रुख दिखाया था और परिणामस्वरूप सरकार को फैसला टालना पड़ा था। दरअसल, ज्यादा से ज्यादा बाजार कब्जाने के चक्कर में किराये घटाने की अंधी दौड़ के बीच एटीएफ के बढ़ते दामों और एयरपोर्ट शुल्कों ने उद्योग को भीतर से खोखला कर दिया था। लेकिन ऊपरी चमक-दमक के कारण लोगों को तब इसका अहसास नहीं हुआ।
परंतु इस बारे में पता लगने की शुरुआत तब हुई जब मार्च' 18 से एयरबस-320 नियो विमानों में इंजन विफलता के कारण इंडिगो और गो एयर के विमानों की लैंडिंग की खबरें आनी शुरू हुई। उसके बाद अक्टूबर में जब जेट एयरवेज के घाटे की खबरें बाहर आई तो इन चर्चाओं को बल मिला। यही नहीं, पहले अक्टूबर में इंडोनेशिया और फिर मार्च में इथोपिया बोइंग मैक्स विमान हादसों ने समस्या को बढ़ाने का काम किया।
इससे इन विमानों का इस्तेमाल करने वाली स्पाइसजेट और एयर इंडिया पर भी दबाव बढ़ गया और इन्हें अपनी तमाम उड़ानें रद करनी पड़ीं। अप्रैल तक ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि देश की ज्यादातर एयरलाइनों के पास उपयोग लायक आधे-पौने विमान ही बचे थे। बाकी या तो मरम्मत की लाइन में खड़े थे या उन्हें लीजदाताओं ने अपने कब्जे में ले रखा था। मांग के बावजूद 'विस्तारा' को छोड़ कोई भी एयरलाइन अपने पूरे बेड़े का इस्तेमाल नहीं कर पा रही थी। सरकारी हस्तक्षेप से कुछ सुधार के बावजूद कमोबेश यही हालात अब भी है।
फिलहाल जेट एयरवेज पर कुल मिलाकर लगभग 15,000 करोड़ रुपये की देनदारियां हैं। एसबीआइ की अगुआई में कर्जदाताओं का समूह इसके निपटान के उपायों के साथ निवेशक तलाशने में जुटा है। लेकिन वे भी आसानी से नहीं मिल रहे। दूसरी ओर एयर इंडिया पर अपने भारी-भरकम कर्ज की अदायगी का दबाव है। इसकी देनदारियां चालू वित्तीय वर्ष में तकरीबन 9000 करोड़ रुपये की हो गई हैं। हालांकि राहत की खबर यह है कि एयर इंडिया जून के पहले हफ्ते में नई दिल्ली और मुंबई से दुबई के लिए नई उड़ानें शुरू कर रहा है। भारत और दुबई का रूट खासा कमाऊ माना जाता है। बी787 विमानों से बुकिंग भी शुरू हो चुकी है।
चेयरमैन पद से नरेश गोयल के इस्तीफे के बाद जेट एयरवेज के अब तक चार और बड़े पदाधिकारी कंपनी को बाय-बाय कह चुके हैं। कभी 21 हजार कर्मचारियों वाले जेट एयरवेज में अब कुल जमा छह-सात हजार लोग ही बचे हैं। उधर, गो एयर के भी 48 में से 10 विमान खड़े हैं। जबकि डेढ़ दर्जन अधिकारी नौकरी छोड़ चुके हैं। दबाव में स्पाइसजेट भी है। लेकिन जेट के खाली स्लॉट मिलने से फिलहाल स्थिति ठीक हो गई लगती है। परंतु इंडिगो की कंपनी इंटरग्लोब एविएशन के प्रमोटरों राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल के बीच मतभेद की खबरों ने सभी को चिंता में डाल दिया है।
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