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28 वर्ष बाद मालिकों को मिला मालिकाना हक

दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की ओर से व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली में बनाए गए करीब डेढ़ दर्जन बहुमंजिले व्यावसायिक केंद्रों (डिस्टिक्ट सेंटर) के फ्लैट मालिकों ने वर्षो बाद राहत की सांस ली है। केंद्र सरकार की तत्परता से 28 वर्ष बाद दिल्ली अपार्टमेंट एक्ट के महत्वपूर्ण प्रावधानों

By Sudhir JhaEdited By: Published: Thu, 23 Apr 2015 08:21 AM (IST)Updated: Thu, 23 Apr 2015 08:37 AM (IST)

नई दिल्ली, संतोष शर्मा। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की ओर से व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली में बनाए गए करीब डेढ़ दर्जन बहुमंजिले व्यावसायिक केंद्रों (डिस्टिक्ट सेंटर) के फ्लैट मालिकों ने वर्षो बाद राहत की सांस ली है। केंद्र सरकार की तत्परता से 28 वर्ष बाद दिल्ली अपार्टमेंट एक्ट के महत्वपूर्ण प्रावधानों को व्यावहारिक रूप से लागू कर दिया गया है।

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दिल्ली अपार्टमेंट एक्ट में सुधार के लिए स्वीकृति के लिए संसद में भेज दिया गया। लंबे समय से बक्से में बंद इस एक्ट के प्रावधानों के लागू होने से जहां डिस्टिक्ट सेंटर के फ्लैट मालिकों में खुशी की लहर है। वहीं उम्मीद है कि दिल्ली के बदहाल पड़े डिस्टिक्ट सेंटरों में अब व्यापार को दोबारा पंख लगेगा। हालांकि, इस मामले में अभी भी कई पेंच फंसे हैं, जिसका निदान होना बाकी है। फोरम आफ अपार्टमेंट आनर आफ मल्टीस्टोरी कॉम्प्लेक्स द्वारा लंबे संघर्ष के बाद यह सफलता मिली है।

वहीं डिस्टिक्ट सेंटर की एसोसिएशनों ने वर्तमान में तीन डिस्टिक्ट सेंटर के चार टावरों को बिल्डरों से टेकओवर कर लिया है। टावरों की देखरेख सहित वहां साफ-सफाई एसोसिएशन करवा रही है। फोरम का यह प्रयास है कि आने वाले समय में अन्य एसोसिएशन भी अपने टावरों को टेकओवर करें।

दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा व्यावसायिक कार्यालयों के लिए दिल्ली में 17 डिस्टिक्ट सेंटर बनाए गए हैं। इनमें जनकपुरी डिस्टिक्ट सेंटर, भीकाजी कामा पैलेस, नेहरू पैलेस, राजेंद्र पैलेस, विकासपुरी, सुभाष पैलेस व पश्चिम विहार डिस्टिक्ट सेंटर प्रमुख हैं। इन डिस्टिक्ट सेंटर में ज्यादातर दुकान व अपार्टमेंट खरीदारों को मालिकाना हक नहीं मिला था। वहीं लीज डीड कैंसल टावरों की एसोसिएशन को डीडीए द्वारा मान्यता भी नहीं दी गई थी, जबकि इन केंद्रों के लिए वर्ष 1986 में दिल्ली अपार्टमेंट एक्ट लागू किया गया था। लेकिन सरकारी इच्छाशक्ति की कमी की वजह से 28 वर्ष बीत जाने के बावजूद यह एक्ट लागू नहीं किया गया था।

वहीं बाद में डीडीए द्वारा 2011 में इस संबंध में चालू की गई फ्री होल्ड स्कीम भी फ्लैट मालिकों को राहत नहीं दे सकी थी। इन डिस्टिक्ट सेंटरों में निजी बिल्डरों द्वारा बनाए गई करीब 70 से 80 फीसद बिल्डिंग की लीड डीड निरस्त कर दी गई थी। डीडीए बिल्डरों को यह भी निर्देश दे चुका था कि वे आगे संपत्ति की कोई खरीदफरोख्त ना करें। बावजूद वहां नियमों को ताक पर रख खरीदफरोख्त जारी थी।

दिल्ली अपार्टमेंट एक्ट लागू नहीं होने के कारण डिस्टिक्ट सेंटरों के लाखों की संख्या में दुकान व कार्यालय मालिक अपनी संपत्ति को ना तो बेच सकते थे और ना ही गिरवी रख सकते थे। यही नहीं, बिल्डर बिल्डिंग के रखरखाव में मनमानी कर रहे थे। वहां पार्किग की समस्या गंभीर रूप ले चुकी थी। लेकिन अब फ्लैट मालिक बिल्डर से एग्रीमेंट के आधार पर अपनी संपत्ति का पक्की रजिस्ट्री करा सकेंगे।

अपार्टमेंट एक्ट के प्रावधानों को लागू करवाने के लिए फोरम ऑफ अपार्टमेंट ऑनर ऑफ मल्टीस्टोरी कॉम्प्लेक्स ने लड़ाई शुरू की थी। इसके बाद गत वर्ष मई महीने में डीडीए व राजस्व विभाग द्वारा अपार्टमेंट एक्ट के तहत मालिकाना हक, सहित लीज डीड कैंसल टावरों की एसोसिएशनों को मान्यता संबंधी सर्कुलर जारी किए गए थे। इसे अब अमलीजामा पहनाया जा रहा है।

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