Afghanistan Conflict: जरूरत के समय अफगान नागरिकों से खुद को अलग न करे भारत
भारत अफगानिस्तान का ऐतिहासिक सहयोगी रहा है। वह वहां के लोगों से खुद को अलग नहीं कर सकता। इस समय भारत के हाथ खींच लेने से भविष्य में यह धारणा बन सकती है कि जरूरत के समय भारत ने अफगानिस्तान में अपने हितैषी लोगों का साथ छोड़ दिया था।
प्रो उमा सिंह। तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के साथ ही अब यह सवाल उठने लगा है कि भारत को उसे मान्यता देनी चाहिए या नहीं। मान्यता देने के समर्थन में जो तर्क दिए जा रहे हैं, वे कूटनीति के इस मानक सिद्धांत के अनुरूप हैं कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में हर पक्ष से बात होनी चाहिए। यह भी कह सकते हैं कि तालिबान मूलत: भारत विरोधी नहीं है। हालिया घटनाक्रमों को देखते हुए इन तर्को को खारिज नहीं किया जा सकता है। तालिबान से बातचीत भारत के लिए पूरी तरह खतरे से खाली तो नहीं हो सकती है, लेकिन इससे तालिबान के मंसूबों को जानने में मदद जरूर मिलेगी। इससे इस संकट के दौर में भारत के हितों की रक्षा सुनिश्चित करना संभव होगा।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद 31 अगस्त को भारत और तालिबान में पहली आधिकारिक चर्चा हुई, जब कतर में भारत के राजदूत ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख से मुलाकात की। बातचीत सुरक्षा और अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की सुरक्षित निकासी पर केंद्रित रही। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने भी अपने एक प्रस्ताव में तालिबान को लेकर गंभीरता का संकेत दिया है। अफगानिस्तान में आतंकी समूहों की मदद करने संबंधी एक बयान से तालिबान का नाम हटाया गया है। यह इस बात का संकेत है कि यूएनएससी ने तालिबान को परोक्ष तौर पर अफगानिस्तान में असामाजिक तत्वों की श्रेणी से बाहर कर दिया है।
यूएनएससी की इस बैठक से इस बात का अनुमान भी गहराया कि भारत ने तालिबान को लेकर रुख नरम किया है और अफगानिस्तान में हो रहे बदलाव को स्वीकृति देने की तैयारी में है। यह ध्यान देने की बात है कि भारत की अफगानिस्तान नीति के केंद्र में काबुल और इस्लामाबाद के बीच रणनीतिक संतुलन अहम बिंदु है। तालिबान से बातचीत काफी हद तक भारत के हितों को होने वाला नुकसान कम करने का प्रयास है। साथ ही यह जानने की कोशिश भी है कि तालिबान में राष्ट्रवाद की भावना किस हद तक है। यहां का राष्ट्रवादी वर्ग पाकिस्तान के हस्तक्षेप का विरोध करता है। तालिबान अफगानिस्तान में भारत की सकारात्मक भूमिका को स्वीकारता है और किसी भी तरह भारत की राजनयिक उपस्थिति को कम नहीं होने देना चाहता। हालांकि अभी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वह अफगानिस्तान से भारत विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाएगा।
भारत को अपने यहां के कालेजों और विश्वविद्यालयों में प्रवेश का आवेदन करने वालों को स्टूडेंट वीजा देते रहना चाहिए। ई-वीजा की प्रक्रिया को भी तेज करना होगा। चिकित्सा के लिए आने वालों को भी ई-वीजा देना चाहिए। भारत अफगानिस्तान के लिए ऐतिहासिक सहयोगी रहा है और वहां के लोगों से खुद को अलग नहीं कर सकता। सांस्कृतिक रूप से दोनों देशों के लोग काफी करीब हैं। भारत ने कई परियोजनाओं के माध्यम से वहां के लोगों के जीवन को सुगम बनाया है। अपने लिए बनी इस अच्छी धारणा को भारत को बनाए रखना होगा। पिछले कुछ वर्षो में कई एजेंसियों ने अपने सर्वेक्षण में पाया है कि अफगानियों के बीच विकास कार्यो में सहयोग कर रहे अन्य देशों की तुलना में भारत की लोकप्रियता ज्यादा है।
[पाकिस्तान-अफगानिस्तान मामलों की विशेषज्ञ]