पंजाब में वजूद की तलाश में जुटी आप, पुराने साथियों को फिर जोड़ने की कोशिश
आम अादमी पार्टी पंजाब में एक बार फिर अपना वजूद खड़ा करने में जुट गई है। पार्टी ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए बाहर गए नेताओं को फिर जोड़ने की कवायद में लग गई है।
चंडीगढ़, [मनोज त्रिपाठी]। विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद पंजाब में नए सिरे से आम आदमी पार्टी ने अपने वजूद की तलाश शुरू कर दी है। पार्टी के राष्ट्रीय कन्वीनर अरविंद केजरीवाल भले ही पुराने साथियों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं, लेकिन पार्टी के पदाधिकारियों की राय अलग है। इन नेताओं को यह बात समझ में आ चुकी है कि अगर पार्टी को पंजाब में दोबारा खड़ा करना है तो पुराने साथियों को साथ जोड़ना जरूरी है। यह अलग बात है कि केजरीवाल की सियासत से खफा पुराने व पार्टी छोड़ चुके नेता अब दोबारा आप से नहीं जुड़ना चाहते हैं।
खिसके जनाधार को पटरी पर लाने वाले नेताओं की तलाश
केजरीवाल ने तमाम विरोध के बाद भी बीते दिनों दिल्ली में पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार विधायकों व बड़े नेताओं की बैठक बुलाकर पार्टी के कई चेहरे बदल दिए हैं। पार्टी की पंजाब इकाई के पूर्व कन्वीनर गुरप्रीत सिंह वड़ैच ने केजरीवाल के फैसले पर नाराजगी जताकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।
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भगवंत मान को नया प्रधान बनाने के केजरीवाल के फैसले के विरोध में पार्टी के चीफ व्हिप व प्रवक्ता सुखपाल सिंह खैहरा ने भी दोनों पदों से इस्तीफा दे दिया है। खैहरा के इस्तीफे से बैकफुट पर आए केजरीवाल ने अभी तक उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया है। वहीं पार्टी की पंजाब में बनी नई कार्यकारिणी में संगठन को नए सिरे से तैयार करने की जिम्मेवारी उपप्रधान अमन अरोड़ा को सौंपी गई है।
अमन अरोड़ा ने बीते दिनों जालंधर में प्रेस कांफ्रेंस करके स्पष्ट तौर पर पूर्व कन्वीनर व पार्टी को पंजाब में खड़ा करने वाले सुच्चा सिंह छोटेपुर को दोबारा पार्टी में शामिल होने की राय दी थी। हालांकि, छोटेपुर ने इस बात से साफ तौर पर इन्कार कर इन प्रयासों को झटका दे दिया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार अमन अरोड़ा ने यह सियासी प्रयोग केजरीवाल की राय लेकर ही किया था। केजरीवाल एक बार फिर से पंजाब में आप को पंजाबियत के रंग में रंगा हुआ देखना चाहते हैं, जो अब दूर-दूर तक संभव नजर नहीं आ रहा है।
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अभी तक नहीं मिली कोई सफलताकेजरीवाल की कोशिश है कि मान व उनकी टीम में ऐसे पदाधिकारियों को ही जगह दी जाए, जो उनके इशारों पर चलें। यानी लोगों के बीच में यह संदेश रहे कि अब पार्टी को पंजाब के नेता ही चला रहे हैं, लेकिन कमान पूरी तरह से केजरीवाल के हाथों में ही रहे। यही वजह है कि अपने वजूद की तलाश में जुटी आप को अब एक बार फिर से पुराने साथियों की याद आ रही है।
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कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। इसलिए इस प्रयास में फिलहाल भगवंत मान, अरोड़ा या केजरीवाल को कोई सफलता हाथ लगने वाली नहीं है। छोटेपुर ने तो स्पष्ट तौर पर इस बारे में इन्कार ही कर दिया है कि यह संभव नहीं है। साथ ही आप के पार्टी से किनारा कर चुके अन्य नेता भी लामबंद होने शुरू हो गए हैं। इतना जरूर है कि केजरीवाल की सियासत पार्टी को पंजाब में अब शायद ही जनाधार दे सके, लेकिन पार्टी से टूटकर अलग हुए और नाराज चल रहे नेता एक बार फिर से पार्टी के विरोध में नए फ्रंट के बनने में मदगार साबित हो सकती है।