आप-बसपा ने बढ़ाई अंबिका की मुश्किलें
कांग्रेस महासचिव अंबिका सोनी की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर है। आनंदपुर साहिब में सोनी का मुख्य मुकाबला तो मोदी लहर पर सवार अकाली-भाजपा गठबंधन से है, लेकिन बसपा, आप और वाममोर्चा उम्मीदवारों ने उनकी मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। बसपा के उम्मीदवार केएस मक्खन पंजाब के बड़े लोक कलाकार हैं। दलित मतदाताअ
आनंदपुर साहिब [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। कांग्रेस महासचिव अंबिका सोनी की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर है। आनंदपुर साहिब में सोनी का मुख्य मुकाबला तो मोदी लहर पर सवार अकाली-भाजपा गठबंधन से है, लेकिन बसपा, आप और वाममोर्चा उम्मीदवारों ने उनकी मुश्किलें बढ़ा रखी हैं।
बसपा के उम्मीदवार केएस मक्खन पंजाब के बड़े लोक कलाकार हैं। दलित मतदाताओं में उनकी पैठ की बात सभी स्वीकार कर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस को अपना दलित वोट जाता दिख रहा है। बसपा को मिलने वाला हर वोट कांग्रेस का नुकसान है। राजधानी दिल्ली से कांग्रेस को दर बदर करने वाली आम आदमी पार्टी (आप) यहां भी कांग्रेस को नाको चने चबवा रही है। आप के उम्मीदवार हिम्मत सिंह शेरगिल की लोकप्रियता युवाओं में अधिक है। इसी तरह संयुक्त वाम मोर्चा के उम्मीदवार बलवीर सिंह जाड़ला भी कांग्रेस के हिस्से वाले मतों में ही सेंध लगाने में जुटे हैं।
सोनी सियासी जीवन का यह पहला चुनाव लड़ रही हैं। उनके सामने शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार प्रोफेसर प्रेम सिंह चंदूमाजरा भी इस संसदीय क्षेत्र से पहली बार भाग्य आजमा रहे हैं। मोदी लहर के भरोसे उन्हें चुनावी नैया पार लगने का भरोसा है। लुधियाना की मोदी रैली का असर पड़ोस की संसदीय सीट पर भी पड़ रहा है। इस संसदीय क्षेत्र के दायरे में आने वाले नौ विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के पास पांच, अकाली दल दल के पास तीन और एक पर भाजपा का कब्जा है। आंकड़ों के लिहाज से सोनी मजबूत हो सकती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। बसपा के साथ ही आप भी कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगाने को तैयार है। आनंदपुर साहिब संसदीय सीट पर जीत-हार का फैसला 60 से 70 हजार मतों से होता रहा है, लेकिन इस बार वोट बंटने से जीत का अंतर कम रहने के आसार हैं। ऐसे में एक-एक वोट की अहमियत होगी।
चुनाव में जहां मुद्दों की बात आती है, उसमें अकाली-भाजपा गठबंधन केंद्र की संप्रग सरकार पर महंगाई और भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस भी खनन और प्रापर्टी टैक्स जैसे सवाल खड़े कर राज्य की सात साल पुरानी बादल सरकार को घेर रही है। लेकिन इससे भी सोनी की मुश्किलें आसान नहीं हो रही हैं।