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खाद्यान्न प्रबंधन की जिम्मेदारी ठीक से निभा रहा एफसीआइ, रिपोर्ट में कार्य प्रणाली पर उठे सवाल

खाद्यान्न और वित्तीय प्रबंधन की खामियों की वजह से एफसीआइ जैसी संस्था के कामकाज पर सवाल उठने लगे हैं। एसबीआइ की हालिया एक रिपोर्ट में एफसीआइ की खामियों का विस्तार से जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में एफसीआइ की गंभीर अक्षमताओं का जिक्र किया गया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 15 Oct 2020 08:40 PM (IST)Updated: Thu, 15 Oct 2020 08:40 PM (IST)
खाद्यान्न प्रबंधन की जिम्मेदारी ठीक से निभा रहा एफसीआइ, रिपोर्ट में कार्य प्रणाली पर उठे सवाल
एसबीआइ की रिपोर्ट में एफसीआइ की खामियों का जिक्र किया गया है।

नई दिल्ली, जेएनएन। खाद्यान्न और वित्तीय प्रबंधन की खामियों की वजह से एफसीआइ जैसी संस्था के कामकाज पर सवाल उठने लगे हैं। खाद्यान्न भंडारण में क्षेत्रीय असंतुलन का खामियाजा उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को उठाना पड़ रहा है। इसी वजह से इन राज्यों में धान की खरीद समय से उचित मूल्य पर नहीं हो पाती है। एसबीआइ की हालिया एक रिपोर्ट में एफसीआइ की खामियों का विस्तार से जिक्र किया गया है। इस रिपोर्ट में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) की गंभीर अक्षमताओं का जिक्र किया गया है।

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रिपोर्ट के मुताबिक एफसीआइ न तो कुशलता से अपना वित्तीय प्रबंधन कर पा रहा है और न ही खाद्यान्न प्रबंधन की जिम्मेदारी ठीक से निभा रहा है। इस वर्ष पहली जुलाई को एफसीआइ के स्टॉक में 822 लाख टन खाद्यान्न था, जबकि मानक के हिसाब से उसे केवल 411 लाख टन अनाज की जरूरत थी। इससे स्पष्ट है कि वह अनाज खरीदने के साथ भंडारण में सारी क्षमता लगा रहा है, लेकिन व्यावसायिकता का अभाव उसे अक्षम बना रहा है।

पूर्व खाद्य मंत्री शांता कुमार की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार समिति ने इस तरह की गैर-व्यावसायिक कार्य प्रणाली पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। समिति की सिफारिश में कहा गया था कि इस गैर-जरूरी सरकारी स्टॉक को खुले बाजार के लिए बनी ओपन मार्केट सेल्स स्कीम के तहत बेच देना चाहिए। इसके अलावा दूसरा विकल्प वैश्विक बाजार की संभावनाओं को खंगालना और निर्यात पर जोर देना है।

एसबीआइ की इस रिपोर्ट में एफसीआइ के कामकाज में पारदर्शिता के अभाव पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा गया है कि स्कीम होने के बावजूद इस गैर-जरूरी स्टॉक को बाजार में बेचकर फंसे सरकारी धन को निकालने की दिशा में कभी सोचा ही नहीं जाता है। राज्यों के गोदामों के असंतोषजनक उपयोग पर भी समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एफसीआइ की कार्य प्रणाली का आलम यह है कि धान व गेहूं उत्पादक बड़े राज्यों में शुमार पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में बने गोदामों की सिर्फ 61 प्रतिशत भंडारण क्षमता का ही उपयोग हो पाता है। दोनों राज्यों में उपज की सरकारी खरीद नहीं हो पाती है। लिहाजा यहां धान व गेहूं के मूल्य खुले बाजार में राष्ट्रीय औसत से कम बोले जाते हैं। समर्थन मूल्य का लाभ इन राज्यों के थोड़े किसानों को ही मिल पाता है।

वित्तीय प्रबंधन की हालत और भी पतली है। एफसीआइ राष्ट्रीय लघु बचत योजना से उधार लेता है, जो लगातार बढ़ रहा है। चालू वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी बिल के लिए एफसीआइ को 1.36 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है जबकि पिछले वर्ष यह 1.1 लाख करोड़ थी। एफसीआइ मात्र 68,400 करोड़ रुपये के भुगतान की स्थिति में है। अगले वर्ष मार्च अंत तक एफसीआइ पर उधारी बढ़कर 3.22 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। इस तरह एफसीआइ कई मोर्चों पर विफल होता नजर आ रहा है। 


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