भारत अंतरराष्ट्रीय जल संधियों पर करेगा पुनर्विचार, चीन, पाक, नेपाल और भूटान से समझौतों में हो सकता है फेरबदल
संसद की स्थाई समिति चीन समेत अन्य पड़ोसी देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय जल संधियों पर गहन विचार विमर्श करेगी। इसी बैठक में चीन पाकिस्तान नेपाल और भूटान से समझौतों में फेरबदल हो सकता है। यह तब्दीली भारत और पड़ोसी देशों के रिश्तों के लिए बेहद अहम मानी जा रही है।
नई दिल्ली, आइएएनएस। जल संसाधनों पर संसद की स्थाई समिति चीन समेत अन्य पड़ोसी देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय जल संधियों पर गहन विचार करेगी। लद्दाख को लेकर चीन से बिगड़ते रिश्तों के बीच पाकिस्तान, नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी ऐसी ही पहले हो चुकी जल संधियों की समीक्षा की जाएगी। इसी मंगलवार को होने वाली इस अहम बैठक में जल संसाधन प्रबंधन के साथ भारत में बाढ़ प्रबंधन के विषय को भी नए सिरे से सुलझाने का प्रयास होगा।
सूत्रों के अनुसार जल शक्ति मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के जनप्रतिनिधियों ने मौखिक रूप से दिशा-निर्देश जारी करते हुए अंतरराष्ट्रीय जल संधियों की रूपरेखा की समीक्षा करने का मन बना लिया है। यह कमेटी चीन, पाकिस्तान, नेपाल और भूटान आदि देशों के साथ भारत की पहले हुई जल संधियों में कुछ जरूरी बदलाव करने या फिर नया समझौता करने का प्रयास किया जाएगा।
समिति के सचिवालय के जरिये एक संसदीय नोट में कहा गया है कि इन दोनों मंत्रालयों से मिले मौखिक सुबूतों के आधार पर देश में बाढ़ प्रबंधन को दुरुस्त करने की कोशिश की जाएगी। मंगलवार को होने वाली इस अहम बैठक में चीन, पाकिस्तान, नेपाल और भूटान के साथ देश में जल संसाधन प्रबंधन और बाढ़ नियंत्रण के मुद्दों को सुलझाने के लिए गहन चर्चा होगी। संसद परिसर में मंगलवार को दोपहर दो बजे से शुरू होने वाली यह बैठक बेहद अहम है।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद बढ़ने के बाद जल संधियों पर विचार किया जाना एक अहम कदम है। इससे दक्षिण एशिया में जल सुरक्षा और जल नीतियों में भारी फेरबदल होने के आसार हैं। नदियों के जल को साझा करने की नीतियों में थोड़ी तब्दीली भी भारत और पड़ोसी देशों के लिए बड़े बदलाव ला सकती है।
यह मुद्दा देश की आबादी से लेकर पर्यावरण परिवर्तन और पानी की बढ़ती मांग को भी प्रभावित करेगा। पूर्वोत्तर में बाढ़ प्रबंधन के लिए एमओयू, 2019 में पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान से साझा जल पर पुनर्विचार आदि मुद्दों को इन जल संधियों से कोई सीधा लेना-देना नहीं था। फिर भी इन मुद्दों ने दक्षिण एशिया को खासा प्रभावित किया है।
इसी साल 13 सितंबर को गठित होने वाली इस संसदीय समिति में 31 सदस्य हैं और इसके गठन के बाद से पहली बार इस मुद्दे को उठाया जाएगा। समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के दस सदस्य हैं। यह सभी चर्चा के बाद अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपेंगे। इसके बाद ही भारत सरकार इस पर कोई फैसला लेगी। बिहार के पश्चिम चंपारण से भाजपा सांसद संजय जायसवाल इस समिति की अध्यक्षता करेंगे।