ये कहानी नहीं एक हकीकत है, जानें कैसे पूरा हुआ डॉक्टर बनने का सपना
पहले ऐसा लगता था कि सफलता की राह में मुश्किलें ज्यादा हैं। लेकिन इन मुश्किलों को पार करते हुए जब डॉक्टर बनने का सपना पूरा हुआ तो ये वास्तव में कमाल का अनुभव था। लेकिन राहें कभी आसान नहीं थीं।
डॉ. रीटा तिलंथे। परिस्थितिवश विज्ञान के बजाय गृह विज्ञान विषय मिल जाने के बावजूद महिला ने अपने हौसले को बरकरार रखते हुए पूरा किया डॉक्टर बनने का सपना...
मैं बचपन से यही सुनती आई थी कि ‘डॉक्टर मतलब भगवान का दूसरा रूप’। माता-पिता भी मुझे डॉक्टर ही बनाना चाहते थे और उनसे प्रेरित होते हुए मेरी भी यही इच्छा थी। हालांकि मेरे सपने की उड़ान तब रुकी जब 10वीं की परीक्षा के दौरान मेरी तबियत खराब हुई और गणित में मुझे सप्लीमेंट्री आई। मैंने मेहनत से सप्लीमेंट्री परीक्षा पास की क्योंकि अच्छे प्रतिशत के आधार पर ही मुझे आगे विज्ञान विषय मिल सकता था। चूंकि सप्लीमेंट्री का रिजल्ट देर से आया और तब तक मेरा एक साल खराब न हो, इस वजह से पिता जी ने 11वीं में गृह विज्ञान विषय से मेरा दाखिला करा दिया। अब जब भी सहेलियों को रसायन विज्ञान या जीव विज्ञान की प्रयोगशाला में परीक्षण का अभ्यास करते देखती तो मेरे भीतर हीनता का अनुभव होता क्योंकि मेरा सपना तो यहीं इन्हीं प्रयोगशालाओं में से निकलता था।
मैं अक्सर लंच के दौरान भी जब सहेलियों को प्रैक्टिकल में जूझते देखती या जब वो मुझे वहां के अनुभव के किस्से सुनातीं तो मैं और भी ज्यादा बुरा महसूस करती। अप्रत्यक्ष रूप से कई बार मुझे ऐसा महसूस होता जैसे मेरे गृह विज्ञान विषय के चलते वो मुझे अपने से निम्न मानने लगी हैं। धीरे-धीरे मैंने उनके पास जाना कम कर दिया, लेकिन मेरा मन तो विज्ञान की प्रयोगशाला में ही अटका रहता। ऐसे ही एक दिन कढ़ाई करते हुए मेरा ध्यान कहीं और ही था कि अचानक सुई मेरी अंगुली में घुस गई और खून निकलकर कढ़ाई के उस सफेद कपड़े पर बहने लगा। दर्द में आंखों से आंसू की कुछ बूंदें भी कपड़े पर टपक पड़ी। मैं कुछ देर तक आंसू और खून की बूंदों को देखती रही। बस वही वक्त था जब खून का लाल रंग मेरे भीतर तक उबाल मार गया। मैंने तभी निश्चय किया कि अभी जिस सफर की शुरुआत हुई है उसी राह पर चलते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचना है। मैंने 11वीं और 12वीं में दिल लगाकर पढ़ाई की। जिस गृह विज्ञान विषय में मुझे रुचि नहीं थी, उसी में कक्षा 12वीं में अच्छी रैंक लाकर पूरे विद्यालय में एक मानक तय कर दिया।
इसके बाद जब मैं बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने पहुंची तो वहां हमारे फॉर्म भर रहे सहायक प्रोफेसर ने मेरे परसेंटेज देखे और विषय के चुनाव के बारे में पूछा तो मैंने एक पल भी बिना गंवाए तुरंत पूछा कि क्या जीव विज्ञान विषय मिल जाएगा? उन्होंने हामी भरते हुए फॉर्म दे दिया। हालांकि एंट्रेंस रिजल्ट आने तक मन में डर भी रहा कि कहीं फिर से गृह विज्ञान तो नहीं पढ़ना पड़ेगा। हालांकि मैं यह भी समझती थी कि विषय कोई भी खराब नहीं होता मगर बात रुचि की थी और मेरी गृह विज्ञान में विषयगत रुचि नहीं थी। सौभाग्यवश मुझे जीव विज्ञान विषय मिल गया।
खैर कक्षाएं शुरू हुईं। जैसे ही मैंने अपनी कक्षा में प्रवेश किया तो वहीं से आगे की पढ़ाई कर रहीं पिछली स्कूल की कुछ सहेलियों ने मुझे देखा तो उन्हें लगा मैं गलती से इस कक्षा में आ गई हूं। जब मैंने उन्हें बताया कि मैंने भी इसी कक्षा में प्रवेश लिया है तो वे सब चकित हो गईं। चूंकि मेरा 11वीं और 12वीं में बैकग्राउंड विज्ञान विषय नहीं था सो मुझे अब अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही थी। यही वजह रही कि मैं पीएमटी परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाई। इसके बावजूद उस दिन गृह विज्ञान की प्रायोगिक कक्षा में रुमाल पर बहे रक्त ने मेरे उबाल को कम नहीं होने दिया। मैंने मेहनत से विज्ञान विषय में ही ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। मैं पूरे विश्वविद्यालय में अकेली ऐसी छात्रा थी जिसने 12वीं में गृह विज्ञान से परीक्षा पास करने के बाद भी विज्ञान में पीएचडी की थी।
आज मेरी लगन और मेहनत के बूते मेरे नाम के आगे भी डॉक्टर लगा है। शासकीय-अशासकीय संस्थाओं में जब स्वास्थ्य के ऊपर सेमिनार में लेक्चर देने जाती हूं तो नई पीढ़ी को अपना उदाहरण जरूर देती हूं कि अगर आपके भीतर लगन हो तो कुछ भी संभव है। इसके अतिरिक्त एक संस्था के माध्यम से पिछले 25 वर्ष से किशोरियों, महिलाओं एवं युवाओं के लिए स्वास्थ्य कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक आयोजन कर रही हूं। अपनी कहानी के माध्यम से मैं बस यह कहना चाहती हूं कि जिस तरह मेरे खून के उस रंग ने मेरे भीतर उबाल भर दिया था ठीक वैसे ही आप भी अपने सपनों पर नजर बनाए रखते हुए दृढ़ इरादों के साथ मुश्किल से मुश्किल राह को पार करें। उसके बाद हमें हर वो सफलता हासिल हो जाती है जिसकी हमें तलाश है।
(भोपाल,मध्य प्रदेश)