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नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के बाद एक और बड़ा बैंक घोटाला, CBI ने दर्ज की एफआइआर

बैंक आफ इंडिया के कानपुर जोन से शिकायत मिलने के बाद सीबीआइ ने एफआइआर दर्ज करते हुए दिल्ली मुंबई और कानपुर में कुल 13 स्थानों पर छापा मारा।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 09:11 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jan 2020 01:13 AM (IST)
नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के बाद एक और बड़ा बैंक घोटाला, CBI ने दर्ज की एफआइआर
नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के बाद एक और बड़ा बैंक घोटाला, CBI ने दर्ज की एफआइआर

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के बाद एक और बड़ा बैंक घोटाला सामने आया है। बैंक आफ इंडिया के कानपुर जोन से शिकायत मिलने के बाद सीबीआइ ने एफआइआर दर्ज करते हुए दिल्ली, मुंबई और कानपुर में कुल 13 स्थानों पर छापा मारा। आरोप है कि फ्रॉस्ट इंटरनेशनल नाम की मुंबई स्थित कंपनी ने बैंकों के कंसोर्टियम को कुल 3592 करोड़ रुपये का चूना लगा दिया। फ्रास्ट इंटरनेशनल ने बैंक से मिली कर्ज की सुविधा का लाभ उठाते हुए धन को अपनी ही दूसरी कंपनियों में ट्रांसफर कर लिया। कर्ज की अदायगी नहीं होने के कारण 2019 में यह एनपीए में तब्दील हो गया।

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आरोपियों के ठिकानों पर तलाशी, दस्तावेज बरामद

सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उन्हें शनिवार को बैंक आफ इंडिया, कानपुर के जोनल मैनेजर की ओर से इस घोटाले की जानकारी मिली और कार्रवाई की मांग की गई। इसके बाद रविवार को आरोपियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज मंगलवार को आरोपियों के सभी ठिकानों की तलाशी ली गई। सीबीआइ ने छापे में घोटाले से संबंधित अहम दस्तावेज बरामद होने का दावा किया है।

कंपनी ने व्यापार में घाटे का बहाना बनाकर कर्ज से पल्ला झाड़

सीबीआइ की एफआइआर के अनुसार 1995 में बनी फ्रॉस्ट इंटरनेशनल को 1996 से ही बैंक आफ इंडिया से कर्ज की सुविधा हासिल थी, जो धीरे-धीरे बढ़कर 380 करोड़ रुपये हो गई थी। लेकिन 2011 में बैंक आफ इंडिया के नेतृत्व में 14 बैंकों के कंसोर्टियम की ओर कंपनी के कर्ज सुविधा की सीमा बढ़ाकर 4,061 करोड़ कर दिया गया। इसके बाद भी सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहा। समस्या तब हुई जब जनवरी 2018 से लिये गए अदायगी रूक गई और धीरे-धीरे 3592 करोड़ रुपये का कर्ज एनपीए बन गया। कंपनी से व्यापार में घाटे का बहाना बनाकर कर्ज से पल्ला झाड़ लिया।

फारेंसिक आडिट में कंपनी का पूरा फर्जीवाड़ा आया सामने

सीबीआइ के अनुसार बैंकों के कंसोर्टियम को कंपनी के निदेशकों पर संदेह हुआ और फ्रॉस्ट इंटरनेशनल के खातों की फारेंसिक आडिट कराने का फैसला किया गया। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि फारेंसिक आडिट में कंपनी का पूरा फर्जीवाड़ा खुलकर सामने आ गया। इसके अनुसार कंपनी के निदेशकों ने अपनी ही दूसरी कंपनियों के साथ लेन-देन दिखा रहे थे। आपस में इन कंपनियों ने 9822 करोड़ रुपये की खरीद और 9889 करोड़ रुपये की बिक्री दिखा दिया था। जो सचमुच में हुई ही नहीं थी। यही नहीं, बैंक से मिली कर्ज सुविधा का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने दूसरी सहयोगी कंपनियों में फर्जी कागजात के सहारे सैंकड़ों रुपये ट्रांसफर कर लिये और उससे निजी संपत्तियां खरीद ली। कंपनी दुबई से लेकर सिंगापुर और इंडोनेशिया तक कई देशों में आयात-निर्यात करने का दावा करती है। लेकिन फारेंसिक आडिट में पता चला कि जिन सामानों के आयात का दिखाया गया है, असल में वे कभी आए ही नहीं।

कंपनी के 10 निदेशकों के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर

सीबीआइ अधिकारी के अनुसार बैंक के अनुरोध पर उदय देसाई समेत कंपनी के 10 निदेशकों के खिलाफ लुक आउट सरकुलर जारी कर दिया गया है, ताकि वे विदेश फरार नहीं हो सकें। सीबीआइ ने फ्रॉस्ट इंटरनेशनल और उसके निदेशकों के साथ-साथ 11 अन्य कंपनियों को भी आरोपी बनाया है, जो इस फर्जीवाड़े में शामिल थे। इनमें कानपुर की तीन कंपनियां आरके बिल्डर्स, ग्लोबिज एक्जिम प्राइवेट लिमिटेड और निर्माण प्राइवेट लिमिटेड भी शामिल हैं।


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