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अब पति की संपत्ति में तलाक के बाद भी हक

हिंदू महिला को अब तलाक के बाद भी पति की संपत्ति में हक मिल सकेगा। हालांकि यह कितना होगा, इसका फैसला अदालत करेगी। नया कानून पत्नी को यह छूट भी देगा कि वह दुष्कर दांपत्य जीवन का हवाला देते हुए तलाक मांग सकती है।

By Edited By: Published: Sat, 24 Mar 2012 09:53 AM (IST)Updated: Sat, 24 Mar 2012 03:25 PM (IST)
अब पति की संपत्ति में तलाक के बाद भी हक

नई दिल्ली। हिंदू महिला को अब तलाक के बाद भी पति की संपत्ति में हक मिल सकेगा। हालांकि यह कितना होगा, इसका फैसला अदालत करेगी। नया कानून पत्नी को यह छूट भी देगा कि वह दुष्कर दांपत्य जीवन का हवाला देते हुए तलाक मांग सकती है।

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केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में संशोधन के मकसद से तैयार विवाह कानून [संशोधन] विधेयक, 2010 को संसद में पेश करने की मंजूरी दे दी। इसके तहत दांपत्य जीवन में महिलाओं को कई नए अधिकार मिलेंगे। इस विधेयक के मुताबिक महिलाओं को तलाक के बाद भी पति की संपत्ति में पूरा अधिकार होगा। हालांकि उसे इसमें से कितनी संपत्ति दी जाएगी, इसका फैसला अदालत मामले के आधार पर करेगी। विधेयक की सबसे खास बात यह है कि इसमें पत्नी को अधिकार दिया गया है कि वह इस आधार पर तलाक मांग सकती है कि उसका दांपत्य जीवन ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां विवाह कायम रहना नामुमकिन है। विधेयक के मुताबिक पति-पत्नी में तलाक के बावजूद गोद लिए गए बच्चों को भी संपत्ति में उसी तरह का हक होगा, जैसा कि किसी दंपति के खुद के बच्चों को।

विधेयक में यह व्यवस्था भी की गई है कि आपसी सहमति से तलाक का मुकदमा दायर करने के बाद दूसरा पक्ष अदालती कार्यवाही से भाग नहीं सकता। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत अभी व्यभिचार, क्रूरता, परित्याग, धर्मातरण, मानसिक अस्वस्थता, गंभीर कुष्ठ रोग, गंभीर संचारी रोग और सात साल या अधिक समय तक जिंदा या मृत की जानकारी न होने के आधार पर तलाक लिया जा सकता है। स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 27 में भी तलाक के लिए इसी तरह के कारण दिए गए हैं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी और स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 28 में तलाक की याचिका दायर करने के लिए आपसी सहमति को आधार बनाया गया है। यदि इस तरह की याचिका को छह से 18 महीने के भीतर वापस नहीं लिया जाता तो कोर्ट आपसी सहमति से तलाक की डिक्री दे सकता है। लेकिन, देखने में आया है कि जो दंपती आपसी सहमति से तलाक की अर्जी दाखिल करते हैं उनमें कोई एक गायब हो जाता है और मामला लंबे समय तक अदालत में लटका रहता है। इससे तलाक चाहने वाले पक्ष को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संसदीय समिति ने तलाक के लिए अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि को खत्म करने का विरोध किया था। इसे ध्यान में रखते हुए विधेयक में कहा गया है कि यह फैसला अदालत के पास होगा कि वह तलाक के लिए अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि का पालन करवाती है या नहीं।

राज्यसभा में यह विधेयक दो साल पहले पेश किया गया था। वहां से इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया था। समिति के सुझावों को शामिल करते हुए विधेयक को फिर कैबिनेट के सामने पेश किया गया था। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इस विधेयक को पास कर दिया गया। अब यह विधेयक संसद में फिर से पेश किया जाएगा।

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