सेवा की 'सुगंध" के आगे फीकी पड़ी दुर्गंध, 10 साल में कराए 9 हजार शव के पोस्टमार्टम
अंगद कहते हैं, अगर वह एसपी के सामने पेश हो जाएं तो उन्हें भी अच्छे थाने में पोस्टिंग मिल सकती है। वह भी रौबदार वर्दी की नौकरी कर सकते हैं, लेकिन यहां सर्विस के साथ सेवा कर आत्मीय सुख मिलता है।
ग्वालियर, जेएनएन। पुलिस सेवा में आने के साथ ही देशभक्ति व जनसेवा का संकल्प प्रधान आरक्षक अंगद बाल्मीकि ने दिल में उतार लिया था। कंपू थाने से जब उन्हें जय आरोग्य अस्पताल (जेएएच) चौकी पर पदस्थ किया गया तो उन्हें जीवन का नेक मकसद मिल गया। यहां छह महीने से अधिक कोई जवान अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार नहीं होता है, क्योंकि जेएएच चौकी का प्रमुख काम जिले सहित उप्र, राजस्थान व आसपास के जिलों से इलाज के लिए आने वालों की मौत होने पर शव का पोस्टमार्टम करना होता था। इस दौरान सुबह से शाम तक डेड हाउस पर दुर्गंध में खड़े रहना पड़ता था।
जेएएच चौकी पर अंगद की पोस्टिंग हुए 10 साल से अधिक समय हो गया है। कभी उन्होंने दूसरी पोस्टिंग के लिए एसपी को आवेदन नहीं दिया। उनकी जनसेवा को देखते हुए विभाग ने भी उन्हें हटाना जरूरी नहीं समझा। उनका कहना है परेशान व्यक्ति की मदद करने में आत्मीय सुख मिलता है। उनकी कोशिश रहती है कि पीएम की कागजी कार्रवाई करने के लिए दुखी परिवार को भटकना न पड़े। लावारिस शवों को दफनाने व गरीब के शव को उनके घर पहुंचाने के लिए भी वे अपनी जेब से कई बार पैसा लगा चुके हैं।
थानों की रौबदार नौकरी नहीं आई रास
जेएएच चौकी पर पोस्टिंग के समय वे सिपाही थे, उन्हें इसी चौकी पर प्रमोशन मिला। अब वे हवलदार हैं। अंगद को थानों की रौबदार नौकरी कभी रास नहीं आई। पुलिस सेवा में आने के बाद वे जिले के कई थानों में रहे। लंबे समय तक पुलिस कंट्रोल रूम में अपनी सेवाएं दीं।
पंचनामा बनाने के लिए 4 लोगों की व्यवस्था करनी पड़ती है
जेएएच में इलाज के लिए अन्य प्रांतों से भी लोग आते हैं। कई बार मृतक के साथ एक-दो व्यक्ति ही होते हैं। पीएम के लिए पंचनामे में पांच लोगों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। अंगद को पंचनामे के लिए तीन से चार लोग खुद ही जुटाने पड़ते हैं। चूंकि शव पोस्टमार्टम के लिए जिले से बाहर जाना होता है, इसलिए समय का भी वे विशेष ध्यान रखते हैं। ताकि शोकमग्न परिवार को इंतजार नहीं करना पड़े। वे छुट्टी भी विषम परिस्थिति में ही लेते हैं।
अंतिम संस्कार कराने व शव भेजने में करते हैं मदद
कई बार अन्य जिले से आए व्यक्ति अपने परिजन के शव को पीएम के बाद घर ले जाने में असमर्थ होते हैं तो ऐसे में अंगद ही एकमात्र उनका सहारा बनते हैं। अंतिम संस्कार कराने की पूरी व्यवस्था वे ही करते हैं। साथ ही गरीब परिवार के शव को घर तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था कराने में भी वह प्रतिमाह एक से दो हजार रुपए अपनी जेब से खर्च कर देते हैं।
सेवाभाव से करते हैं मदद
अंगद कहते हैं, अगर वह एसपी के सामने पेश हो जाएं तो उन्हें भी अच्छे थाने में पोस्टिंग मिल सकती है। वह भी रौबदार वर्दी की नौकरी कर सकते हैं, लेकिन यहां सर्विस के साथ सेवा कर आत्मीय सुख मिलता है। जेएएच चौकी पर 10 साल से पोस्टिंग हैं। अब तक 9 हजार से अधिक शवों का पीएम करवा चुके हैं। इस दौरान कई लोगों को जरूरत होने पर आर्थिक मदद भी की, इसके बदले मुझे उनसे कोई चाह नहीं रही।