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850 महिलाओं और बच्चों को नर्क की जिंदगी जीने से बचाया

850 महिलाओं को बचा चुकी हैं मानव तस्करी से, मां से मिली लोगों की सेवा करने की प्रेरणा, मिल चुके हैं कई पुरस्कार

By Srishti VermaEdited By: Published: Mon, 28 Aug 2017 09:44 AM (IST)Updated: Tue, 29 Aug 2017 09:54 AM (IST)
850 महिलाओं और बच्चों को नर्क की जिंदगी जीने से बचाया
850 महिलाओं और बच्चों को नर्क की जिंदगी जीने से बचाया

सिलीगुड़ी (स्नेहलता शर्मा)। दुनिया में मिसालें उन्हीं की दी जाती हैं, जो खुद की जिंदगी की परवाह किए बगैर दूसरों की जिंदगी संवारते हैं। सिलीगुड़ी की रंगु सोरया ऐसी ही बहादुर शख्सियत हैं, जिन्होंने प्रतिकूल हालातों के बावजूद बहुत सी महिलाओं की जिंदगी को नर्क होने से बचाया है। जान जोखिम में डालकर उन्होंने करीब 850 महिलाओं और बच्चों को मानव तस्करों से मुक्त कराया है। साहस का दूसरा नाम बन चुकीं रंगु को इस नेक और मुश्किल काम के लिए गॉडफ्रे फिलिप्स नेशनल ब्रेवरी अवार्ड समेत कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

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ऐसे मिली प्रेरणा : दार्जिलिंग सरकारी कॉलेज से ग्रेजुएशन करने वाली रंगु की प्रेरणा रहीं उनकी मां स्व. इति सोरया। वे पानीघटा नामक छोटे से गांव में सामाजिक कार्य करती थीं, जहां आए दिन घर के सदस्यों या बाहरी लोगों द्वारा किसी न किसी रूप में महिलाओं का शोषण होता था। कभी शादी तो कभी काम का झांसा देकर महिला और बच्चों की तस्करी की खबरें सुनने को मिलती थी। तभी रंगु ने तय कर लिया कि उनकी जिंदगी का मकसद महिला उद्धार होगा।

बढ़ता गया कारवां : वर्ष 2004 में रंगु ने कंचनजंघा उद्धार केंद्र नामक संगठन की स्थापना की। इस संगठन के जरिये उन्होंने पुणे, असम, दिल्ली समेत विभिन्न जगहों पर जाकर तस्करी की गई लड़कियों को छुड़वाया।

हर बाधा पार की : राह में पहले से ही मुश्किलें थी और जैसे-जैसे रंगु ने इस पर कदम बढ़ाने शुरू किए, मुश्किलें बढ़ती गईं। महिलाओं को तस्करों के चंगुल से छुड़ाने की कोशिशों में कई बार जान पर ही बन आई। इनसे लड़ने के लिए वे हिम्मत जुटा लेती थीं, लेकिन फंड की समस्या मुंह बाए खड़ी रहती थी। उन्हें अपनी मां से जो जेब खर्च मिलता था, वह इसमें खर्च हो जाता था। फंड जुटाने के लिए उन्हें  अपनी गाय तक बेचनी पड़ी। आज भी हालात जस के तस हैं।

शेल्टर होम का निर्माण : रंगु के मुताबिक कई बार तस्करों के हाथों से छुड़ाई गई महिलाओं को उनके परिवारवाले अपनाने से इन्कार कर देते हैं। ऐसे में इन महिलाओं के लिए देवीडांगा में शेल्टर होम बनाया जा रहा है। उनके संस्थान की ओर से ग्रामीण इलाकों में मानव तस्करी रोकने के लिए जागरुकता शिविर आयोजित किए जाते हैं। जरूरतमंदों के भोजन की व्यवस्था भी की जाती है। संस्था ने हाल ही में 20 लड़कियों को ब्यूटी पार्लर का प्रशिक्षण दिया गया है, जो अब अपने पैरों पर खड़ी हैं।

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