दो करोड़ रूपयों की लागत से बने ब्रीडिंग सेंटर में रहती है दिपाशा, जानिए क्या है कारण
पंजाब के करनाम में जब मादा वन भैंस का क्लोन पशु वैज्ञानिकों ने तैयार किया तो उन्हें इसमें आशा का दीप (एक किरण) दिखाई दी।
रायपुर, राज्य ब्यूरो। छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसा के संवर्धन के लिए जंगल सफारी में निर्मित ब्रीडिंग सेंटर में पंजाब के करनाल से आई क्लोन मादा वन भैंस दिपाशा को रखा गया है। तीन वर्ष की आठ क्विंटल वजन की इस मादा वन भैंस को अभी चिकित्सकीय परीक्षण में रखा गया है। पंजाब के करनाम में जब मादा वन भैंस का क्लोन पशु वैज्ञानिकों ने तैयार किया तो उन्हें इसमें आशा का दीप (एक किरण) दिखाई दी। इसके बाद इसका नाम दिपाशा रखा गया। दिपाशा के लिए यहां एक विशेष बाड़ा तैयार किया है, जहां किसी को भी जाने की इजाजत नहीं है। जंगल सफारी में अब एक नर वन भैंसा को भी लाने की तैयारी चल रही है ताकि इनकी वंश वृद्धि हो सके।
तीन साल पहले क्लोन से जन्मी थी मादा वन भैंस
तीन साल पहले करनाल के रिसर्च इंस्टीट्यूट में मादा वन भैंस आशा के क्लोन से एक मादा बच्चे का जन्म हुआ था। इसे दिपाशा नाम दिया गया था। दिपाशा को इन दिनों नया रायपुर के जंगल सफारी स्थित ब्रीडिंग सेंटर में रखा गया है। वह भी अब गर्भधारण करने के लायक हो गई है।
दो करोड़ रूपए की लागत से बना है ब्रीडिंग सेंटर
नया रायपुर में वाइल्ड बफेलो ब्रीडिंग सेंटर की स्थापना के लिए एक साल पूर्व कवायद शुरू हुई थी। यहां दो करोड़ स्र्पयों की लागत से एक हैक्टेयर क्षेत्र में ब्रीडिंग सेंटर स्थापित किया गया है। इस सेंटर में एक विशेष बाड़ा दिपाशा के लिए बनाया गया है, जहां कई विशेष सुविधाएं मौजूद हैं। पीने के पानी से लेकर रोजाना की डाइट और तापमान सभी का पूरी जिम्मेदारी के साथ ध्यान रखा जाता है। बाड़े में तापमान को जरूरत के अनुरूप नियंत्रित करने के लिए इसे पूरी तरह वातानुकूलित बनाया गया है। दिपाशा को पिलाया जाने वाला पानी भी पूरी तरह शुद्ध होता है। आशा ने एक और मादा को जन्म दिया था जो दो साल की हो गई है। इसे उदयंती अभ्यारण्य में रखा गया है। इस मादा वन भैंसे की ब्रीडिंग की तैयारी भी चल रही है।
इंद्रावती वाइल्डलाइफ सेंचुरी में भी वन भैंसे बढ़ रही तादात
उधर बस्तर के इंद्रावती वाइल्डलाइफ सेंचुरी में भी वन भैंसों की तादात अब बढ़ रही है। हालांकि घना जंगल और नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से यहां वन भैंसों की गणना नहीं हो पाई है, लेकिन ग्रामीणों ने दावा किया है कि उन्होंने मादा वनभैंसों के साथ बछड़ों को यहां विचरण करते देखा है। अंदाजा लगाया जा रहा है कि यहां तीन से अधिक मादा वनभैंसें हो सकती हैं।
पूरे एशिया में सिर्फ 3000 वनभैंसें
एक सदी पहले तक पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में बड़ी तादाद में पाए जाने वाला जंगली भैंसा आज केवल भारत, नेपाल, बर्मा और थाईलैंड में ही पाया जाता है। भारत में काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान के अलावा छत्तीसगढ़ में रायपुर संभाग और बस्तर में यह पाए जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक पूरे एशिया में अभी इनकी संख्या महज 3000 तक रह गई है।
अपने जीवन काल में 5 बच्चों को जन्म देती है वनभैंस
मादा वनभैंस अपने जीवन काल में 5 बच्चों को जन्म देती है। इनकी जीवन अवधि करीब 20 वर्ष की होती है। मादाएं अपने बच्चों के साथ झुंड में रहती हैं और नर वन भैंसे झुंड से अलग रहते हैं। इस संकट ग्रस्त प्रजाति के लिए रिडंर्पेस्ट नाम की बीमारी सबसे बड़ा खतरा है। इसी बीमारी ने इनकी संख्या में बहुत कमी ला दी है। इन पर दूसरा बड़ा खतरा जेनेटिक प्रदूषण है। जंगली भैंसा पालतू भैंसों से संपर्क स्थापित कर लेता है। इससे भी इनकी शुद्ध नस्ल में कमी आ रही है।