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गर्भ में नौ माह तक नहीं कर रहे इंतजार, 100 में से 30 बच्चे पैदा हो रहे समय से पहले

पंजाब में तीस प्रतिशत शिशु छठे, सातवें व आठवें महीने में ही जन्म ले रहे हैं। समय पूर्व जन्मे ये शिशु शांत होते हैं और शारीरिक विकास असामान्य।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 26 Sep 2018 05:18 PM (IST)Updated: Wed, 26 Sep 2018 07:12 PM (IST)
गर्भ में नौ माह तक नहीं कर रहे इंतजार, 100 में से 30 बच्चे पैदा हो रहे समय से पहले

अमृतसर [नितिन धीमान]। एक मां अपने पेट में नौ माह तक शिशु को पालती है। मां की कोख में ही रहकर बच्चा पूर्णत: विकसित होता है। उसको कोख में ही जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं। शिशु के विकास का यह क्रम पहले महीने से नौवें महीने तक जारी रहता है। वर्तमान में कई शिशुओं को गर्भ में नौ माह तक आश्रय नहीं मिल रहा। पंजाब में तीस प्रतिशत शिशु छठे, सातवें व आठवें महीने में ही जन्म ले रहे हैं। समय पूर्व जन्मे ये शिशु शांत होते हैं और शारीरिक विकास असामान्य। ऐसे शिशु इतने कमजोर होते हैं कि स्तनपान करने के लिए अपना मुंह तक नहीं खोल पाते। वह सांस लेने में भी तकलीफ महसूस करते हैं। दरअसल, चिकित्सा विज्ञान की भाषा में ऐसे बच्चों को प्रीमेच्योर कहा जाता है। पंजाब के सरकारी एवं निजी अस्पताल में 100 में से 30 शिशु प्रीमेच्योर पैदा हो रहे हैं।

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रोजाना सात प्रीमेच्योर बच्चे ले रहे जन्म 

अमृतसर के सरकारी मेडिकल कॉलेज स्थित गायनी वार्ड में प्रतिदिन 7 प्रीमेच्योर बच्चों का जन्म हो रहा है। मासिक आंकड़ा औसतन 210 तक पहुंच जाता है। इन शिशुओं के फेफड़े पूर्णत: विकसित नहीं होते हैं। ऐसे में उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है। इन्हें पीलिया होने का खतरा सर्वाधिक है। कुछ शिशुओं में पीलिया का लेवल 30 से 40 μmo/l तक जा पहुंचा है। वे जिंदगी और मौत से जद्दोजहद कर रहे हैं। प्रीमेच्योर शिशुओं को फोटोथेरेपी ट्रीटमेंट व वेंटीलेटर पर रखा गया है। इसके सिवाय चिकित्सा जगत में ऐसी कोई दवा इजाद नहीं हुई, जो इन्हें पीलिया से मुक्त कर सके।

इसलिए हो रहा है प्रीमेच्योर बच्चों का जन्म 

चिकित्सक इसके कई कारण बता रहे हैं। मसलन जंक फूड का सेवन, धूमपान, शराब का सेवन, फसलों पर कीटनाशक का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल तथा खानपान की गलत आदतें। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप अग्रवाल की मानें तो गर्भावस्था के दौरान कई महिलाएं पैसिव स्मोकिंग का शिकार होती हैं। घर में स्मोकिंग करने वाला शख्स जाने-अनजाने में गर्भवती महिला तक सिगरेट का धुआं पहुंचा देता हैं। दूसरा बड़ा कारण दूषित दूध है। वर्तमान में दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए ज्यादातर पशुपालन पशुओं को ऑक्सीटोसिन नामक इंजेक्शन लगाते हैं।

यह इंजेक्शन दूध को धीमा जहर बना देता है। इसके अतिरिक्त 18 वर्ष की आयु से पहले लड़कियों का विवाह होना भी प्रीमेच्योर बच्चों के जन्म का कारण बन रहा है। वहीं, 35 साल से अधिक आयु की महिलाओं के गर्भवती होने पर ऐसे बच्चे पैदा होते हैं, क्योंकि इन महिलाओं को उच्च रक्तचाप, शुगर इत्यादि रोग हो सकते हैं। नशा सेवन के अलावा शारीरिक हिंसा, अनिच्छा से किया गया सेक्स, पर्यावरण प्रदूषण व सामाजिक समर्थन का अभाव भी महिलाओं को इस स्थिति तक पहुंचा रहा है।

डेढ़ किलो से भी कम वजन के शिशुओं का जन्म 

सामान्यत: नवजात शिशु का वजन ढाई से तीन किलोग्राम तक होता है। सरकारी अस्पतालों में वेंटीलेटर व फोटोथेरेपी मशीनों पर ऐसे शिशु भी उपचाराधीन हैं, जिनका वजन डेढ़ किलोग्राम से भी कम हैं। इनकी धड़कनें व सांसें असामान्य हैं। मशीनों के इर्द-गिर्द बैठे शिशुओं के परिजन इनकी सांसों का उतार-चढ़ाव देखकर आशंकित हो उठते हैं।

718 नवजात हो गए थे मौत का शिकार 

सूचना अधिकार एक्ट के तहत प्राप्त की गई जानकारी से खुलासा हुआ है कि सिर्फ अमृतसर मेडिकल कॉलेज में 2013 से 2016 के बीच 718 नवजात शिशुओं की मौत हुई है। ये बच्चे प्रीमेच्योर थे।

ये है आंकड़ा

बेबी सेंटर इंडिया मेडिकल एडवाजरी बोर्ड के अनुसार भारत में 100 में से 13 बच्चे प्रीमेच्योर पैदा होते हैं। विश्व में 100 प्रीमेच्योर बच्चोें में से करीब 23 बच्चे भारत में जन्म लेते हैं। पंजाब में 100 में से 30 बच्चे प्रीमेच्योर पैदा होते हैं।


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