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15 महीनों में 14 उच्च न्यायालयों में गर्भपात की इजाजत मांगने वाली याचिकाओं में ज्यादातर मामले दुष्कर्म के

कानून में संशोधन के बाद भी समस्या हल होने की बहुत उम्मीद नहीं है क्योंकि संशोधित कानून गर्भवती महिला के अधिकार की बात नहीं करता बल्कि डॉक्टर की राय पर निर्भर है। एमटीपी कानून 20 सप्ताह के बाद गर्भपात की इजाजत नहीं देता।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 26 Sep 2020 09:24 PM (IST)Updated: Sat, 26 Sep 2020 09:24 PM (IST)
15 महीनों में 14 उच्च न्यायालयों में गर्भपात की इजाजत मांगने वाली याचिकाओं में ज्यादातर मामले दुष्कर्म के
14 उच्च न्यायालयों में 243 याचिकाओं में दुष्कर्म के 118 मामले।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सच जानना और सुनना कई बार अच्छा नहीं लगता, लेकिन सच यही है कि पिछले सवा साल में दुष्कर्म के कारण गर्भवती हुई सौ से ज्यादा पीड़िताओं ने गर्भपात की इजाजत के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। गर्भपात की इजाजत मांगने अदालत पहुंची याचिकाओं में ज्यादातर दुष्कर्म की परिणाम थे।

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15 महीनों में उच्च न्यायालयों में गर्भपात की इजाजत मांगने वाली 243 याचिकाएं दाखिल हुईं

पिछले 15 महीनों में विभिन्न उच्च न्यायालयों में ऐसी कुल 243 याचिकाएं दाखिल हुईं जिसमें 118 में गर्भ का कारण दुष्कर्म था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या संसद में लंबित मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रिग्नेंसी (एमेंडमेंट) विधेयक 2020 समस्या का निराकरण कर पाएगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि कानून गर्भपात की बिलकुल इजाजत नहीं देता। मौजूदा कानून भी डाक्टर की सलाह पर 20 सप्ताह तक गर्भपात की इजाजत देता है।

गर्भपात की इजाजत मांगने वाली 243 याचिकाओं में दुष्कर्म के 118 मामले 

गर्भपात की इजाजत मांगने वाली याचिकाओं का यह ब्योरा हाल में जारी गैर-सरकारी संगठन प्रतिज्ञा कैम्पेन फार जेंडर इक्वेलिटी एंड सेफ अबार्शन की रिपोर्ट में मिलता है। रिपोर्ट एक मई 2019 से लेकर 15 अगस्त 2020 तक के आंकड़े देती है जिसके मुताबिक 15 महीने में 14 उच्च न्यायालयों में ऐसी 243 याचिकाएं दाखिल हुईं। इनमें से 117 मामलों में गर्भपात के लिए कारण भ्रूण में विकृतियां बताई गई जबकि 118 में कारण दुष्कर्म था। एक केस में दोनों कारण दिये गए थे। 3 मामलों में परिस्थितियां बदलने के कारण महिला गर्भ नहीं चाहती थी।

हाईकोर्ट ने 243 में से 205 मामलों में गर्भपात की इजाजत दी थी जबकि 22 में इजाजत नहीं दी

हाईकोर्ट ने 243 में से 205 मामलों में गर्भपात की इजाजत दी थी जबकि 22 में इजाजत नहीं दी। 8 याचिकाएं बाद में वापस ले ली गईं जबकि 3 महत्वहीन हो गई थीं। दो याचिकाएं खारिज हुईं और दो में अपीलीय कोर्ट से इजाजत मिली एक में अपील भी खारिज हो गई।

सबसे ज्यादा 129 याचिकाएं बांबे हाईकोर्ट में दाखिल हुईं थीं

रिपोर्ट बताती है कि जिन 14 हाईकोर्ट में याचिकाएं हुईं उनमें सबसे ज्यादा 129 याचिकाएं बांबे हाईकोर्ट में दाखिल हुईं, दूसरे नंबर पर मध्यप्रदेश है जहां 36 याचिकाएं हुई, गुजरात में 16, राजस्थान में 13, पंजाब हरियाणा में 9, मद्रास में 8, छत्तीसगढ और केरल में 7-7 तथा दिल्ली और कर्नाटक में 6-6 याचिकाएं हुईं। 243 में से 138 मामलों में गर्भवती वयस्क थी जबकि 105 मामलों में गर्भवती नाबालिग थीं।

एमटीपी कानून 20 सप्ताह के बाद गर्भपात की इजाजत नहीं देता

मौजूदा एमटीपी कानून 1971 एक डॉक्टर की सलाह पर 12 सप्ताह तक गर्भपात की इजाजत देता है। 12 से 20 सप्ताह के गर्भपात में दो डॉक्टरों की सलाह जरूरी है। 20 सप्ताह के बाद इजाजत नहीं है। सरकार परिस्थितियों को देखते हुए एमटीपी संशोधन विधेयक 2020 लाई है। यह विधेयक गत 17 मार्च को लोकसभा से पास हो चुका है और राज्यसभा में लंबित है। यह विधेयक एक डॉक्टर की सलाह पर 20 सप्ताह तक गर्भपात की इजाजत देता है और कुछ श्रेणियों में दो डाक्टरों की सलाह पर 24 सप्ताह तक इजाजत होगी।

24 सप्ताह के बाद गर्भपात के लिए मेडिकल बोर्ड का निर्णय जरूरी

24 सप्ताह के बाद गर्भपात के लिए मेडिकल बोर्ड का निर्णय जरूरी होगा जो भ्रूण में विकृतियां होने पर इजाजत दे सकता है। हालांकि महिला की जान को खतरा होने पर किसी भी समय गर्भपात की इजाजत है।

संशोधित कानून गर्भवती महिला के अधिकार की बात नहीं करता

प्रतिज्ञा कैम्पेन की एडवाइजरी ग्रुप की सदस्य और वकील अनुभा रस्तोगी कहती हैं कि कानून में संशोधन के बाद भी समस्या हल होने की बहुत उम्मीद नहीं है क्योंकि संशोधित कानून गर्भवती महिला के अधिकार की बात नहीं करता बल्कि डॉक्टर की राय पर निर्भर है। कानून कुछ श्रेणियों में गर्भपात की इजाजत देता है, लेकिन इसमें श्रेणियां स्पष्ट नहीं की गई हैं। इसके अलावा 24 सप्ताह के बाद मेडिकल बोर्ड की राय पर ही इजाजत होगी जो कि परेशानी की बात है क्योंकि बोर्ड में जिन विशेषज्ञों के होने की बात है वे हर जिले में उपलब्ध होने मुश्किल हैं।


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