भीमा-कोरेगांव की 201वीं वर्षगांठ: पूरे महाराष्ट्र में सतर्कता, 5 हजार पुलिसकर्मी; 500 सीसीटीवी और 11 ड्रोन तैनात
ठीक एक साल पहले महाराष्ट्र में भड़की भीमा-कोरेगांव हिंसा के एक साल पूरे होने पर पूरे महाराष्ट्र की पुलिस सतर्क है।
मुंबई, राज्य ब्यूरो। भीमा कोरेगांव हिंसा की बरसी पर कोरेगांव भीमा विजय स्तंभ के आसपास सुरक्षा व्यवस्था दुरूस्त कर दी गई है, सरकार ने भी शांति व्यवस्था बनाये रखने के कड़े सुरक्षा इंतजाम किए हुए हैं। इलाके में ड्रोन, सीसीटीवी कैमरे और करीब 5000 पुलिसकर्मियों की तैनाती कर दी गई है। 520 पुलिस अधिकारी, 12 टुकड़िया एसआरपी, 1200 होमगार्ड और 2000 स्वयंसेवक भी तैनात किए गए हैं। संवेदनशील इलाकों में इंटरनेट बंद कर दिया गया है।
गौरतलब है ठीक एक साल पहले महाराष्ट्र में भड़की भीमा-कोरेगांव हिंसा के एक साल पूरे होने पर पूरे महाराष्ट्र की पुलिस सतर्क है। उत्तरप्रदेश से भीमा-कोरेगांव पहुंच रहे भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण की यात्रा को देखते हुए यह सतर्कता और बढ़ा दी गई है।
201 साल पहले हुआ था युद्ध
201 वर्ष पहले पेशवाओं और अंग्रेजों के बीच भीमा-कोरेगांव क्षेत्र में ही एक युद्ध हुआ था। इस युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से महाराष्ट्र के दलित समुदाय के महारों ने युद्ध कर पेशवाओं को हराया था। महारों की इस विजय की याद में ही यहां जय स्तंभ की स्थापना की गई है, जहां प्रतिवर्ष एक जनवरी को हजारों लोग युद्ध में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचते हैं।
यलगार परिषद में हुआ था आयोजन, लोगों को भड़काया गया
पिछले वर्ष एक जनवरी को इस विजय दिवस के 200 वर्ष पूरे होने के अवसर पर न सिर्फ आनेवालों की संख्या ज्यादा रही, बल्कि योजनाबद्ध तरीके से एक दिन पहले पेशवाओं का निवास रहे शनिवारवाड़ा के बाहर यलगार परिषद का आयोजन कर इस जमावड़े को भड़काने का भी काम किया गया। हाल ही में मुंबई उच्च न्यायालय ने भी टिप्पणी की है कि यलगार परिषद और भीमा-कोरेगांव के बहाने बड़ी हिंसा की साजिश रची गई थी, जिसके गंभीर परिणाम हो सकते थे।
महाराष्ट्र में तीन दिनों तक हुई थी हिंसा
इसके गंभीर परिणाम हुए भी। एक जनवरी, 2018 को भीमा-कोरेगांव से शुरू हुई हिंसा में एक व्यक्ति मारा गया और इस हिंसा से अगले तीन दिनों तक पूरा महाराष्ट्र प्रभावित रहा। इसी हिंसा की जांच में दो चरणों में नौ माओवादी कार्यकर्ता गिरफ्तार भी किए गए। जबकि एक माओवादी कार्यकर्ता गौतम नौलखा अभी भी न्यायालयीन हस्तक्षेप के कारण पुलिस की पकड़ से बाहर है। पहले गिरफ्तार किए गए पांच माओवादियों के विरुद्ध अदालत में आरोपपत्र भी दाखिल किया जा चुका है। पिछले वर्ष 31 दिसंबर को हुई यलगार परिषद में जिग्नेश मेवाणी सहित कई और दलित नेता महाराष्ट्र के बाहर से आए थे।
नेताओं के भाषणों से हुई थी हिंसा
पुलिस का मानना है कि यलगार परिषद में इन नेताओं के भाषणों से ही अगले दिन भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की। इसलिए इस बार रविवार को ही पुणे पहुंच चुके भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण मुंबई उच्च न्यायालय से भीमा-कोरेगांव जय स्तंभ तक तो जाने की अनुमति मिल गई है। लेकिन पुणे पुलिस ने उन्हें सभा करने की अनुमति नहीं दी है।
आठ से दस लाख लोगों के पहुंचने की उम्मीद
दूध की जली महाराष्ट्र पुलिस छांछ भी फूंक-फूंककर पी रही है। न सिर्फ पुणे और मुंबई, बल्कि पूरे महाराष्ट्र के पुलिस थानों को निर्देश भेज गए हैं कि उनके क्षेत्रों से एक जनवरी, 2019 को भीमा-कोरेगांव आनेवाले सभी लोगों की सूची तैयार की जाए, ताकि किसी अप्रिय स्थिति में स्थिति पर नियंत्रण रखा जा सके। हालांकि पिछले वर्ष से पहले प्रतिवर्ष एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव के जय स्तंभ पर आनेवालों की संख्या कुछ हजारों में हुआ करती थी। लेकिन पिछले वर्ष यह अचानक लाखों में पहुंच गई थी। जो पुलिस के अनुमान से काफी अधिक थी।
इस बार भी वहां आठ से दस लाख लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। जिसे देखते हुए संपूर्ण पुणे क्षेत्र में पुलिस एवं खुफिया विभाग की सतर्कता बढ़ा दी गई है। संभवतः इसी सतर्कता के फलस्वरूप ठाणे पुलिस की अपराध शाखा ने अमरावती जनपद से 10 पिस्तौल एवं 40 जिंदा कारतूसों के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया है। इन हथियारों का कहां उपयोग किया जाना था, इसका खुलासा अभी नहीं हो सका है।