Move to Jagran APP

आंतरिक सुरक्षा में उपलब्धियों का साल, आतंक छोड़ वापस लौट रहे कश्मीरी युवा

इस साल धीरे-धीरे सुरक्षा एजेंसियों को आतंकी सरगनाओं को मार गिराने में सफलता मिली। कई सालों बाद इस साल 203 आतंकियों को मार गिराया गया।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Sun, 24 Dec 2017 09:21 PM (IST)Updated: Sun, 24 Dec 2017 09:21 PM (IST)
आंतरिक सुरक्षा में उपलब्धियों का साल, आतंक छोड़ वापस लौट रहे कश्मीरी युवा
आंतरिक सुरक्षा में उपलब्धियों का साल, आतंक छोड़ वापस लौट रहे कश्मीरी युवा

नीलू रंजन, नई दिल्ली। इस साल मोदी सरकार देश में विघटनकारी ताकतों पर लगाम लगाने में काफी हद तक सफल रही है। पिछले साल जहां कश्मीर में हालात 2000 के बाद से सबसे खराब माने जा रहे थे, वहीं इस साल का अंत आते-आते तीन दशकों से बेहतर हालात साफ देखे जा सकते हैं। पूर्वोत्तर के अलगाववाद और नक्सलवाद पर सरकार बखूबी लगाम लगाने में सफल रही है।

loksabha election banner

पिछले साल बुरहान बानी की मौत के बाद भड़की हिंसा के बाद लगने लगा था कि कश्मीर के हालात इस साल और बदतर हो जाएंगे। आतंकियों और अलगाववादियों के हौसले बुलंद थे। बड़ी संख्या में स्थानीय कश्मीरी युवा आतंक संगठनों में शामिल हो रहे थे। हालात 2010 से भी बदतर दिख रहा था। लेकिन इस साल धीरे-धीरे सुरक्षा एजेंसियों को आतंकी सरगनाओं को मार गिराने में सफलता मिली। कई सालों बाद इस साल 203 आतंकियों को मार गिराया गया। यही नहीं, सीमा पर चौकसी से आतंकी घुसपैठ को काफी हद रोकने में सफलता मिली। हालत यह है कि नए आतंकियों की भर्ती तो दूर, आतंकी बन चुके युवा भी अब वापस अपने घरों की लौटने लगे हैं।

आतंकियों पर अंकुश के साथ-साथ उनके ओवरग्राउंड वर्कर के रूप में काम करने वाले और उनके लिए आइएसआइ की ओर से फंडिंग जुटाने वाले अलगाववादी नेताओं का भी मनोबल तोड़ने में कामयाबी मिली है। आतंकी फंडिंग में शामिल एक दर्जन से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। अलगाववादी हुर्रियत के वरिष्ठ नेता फंडिंग को लेकर जनता को जवाब देना मुश्किल हो रहा है। हालात यह है कि तीन दशक बाद एक फिर से घाटी में सिनेमा घरों को चालू करने की बात शुरू हो गई है।

नक्सलियों के मोर्चे पर भी सरकार के लिए इस साल सफलता भरा रहा है। मार्च-अप्रैल में केंद्रीय सुरक्षा बल के 22 जवानों को मार गिराकर नक्सलियों ने अपना वजूद साबित करने की कोशिश की थी। लेकिन साल के अंत तक आते-आते साफ हो गया कि उनके हौसले पस्त हो रहे हैं। पिछले साल बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था। लेकिन सभी निचले स्तर के कैडर थे। बड़े नक्सली नेता जंगलों में सुरक्षित थे। लेकिन इस साल वरिष्ठ नक्सली नेताओं का समर्पण का सिलसिला भी शुरू हो गया। दो दिन पहले ही पहली बार नक्सलियों की शीर्ष ईकाई केंद्रीय समिति के सदस्य ने तेलंगाना में आत्मसमर्पण कर दिया। नवंबर में नक्सलियों ने आधिकारिक रूप से स्वीकार किया कि सुरक्षा एजेंसियों के हाथों उसे काफी नुकसान उठाना पड़ा है। जाहिर है नक्सलियों के पस्त हौसले के बाद सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में प्रशासनिक ढांचा खड़ा करना शुरू कर दिया है, ताकि विकास योजनाओं को तेजी से लागू किया जा सके। पांच साल पहले तक आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरे नक्सली अब वजूद बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

इसी तरह से पूर्वोत्तर के राज्यों में भी अलगाववादी और आतंकी गतिविधियां रोकने में काफी हद तक सफलता मिली है। 2014 में 81 आदिवासियों को मौत के घाट उतारने वाले नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड सोंगबोजित गुट की गतिविधियां अपने निचले स्तर पर है और उससे जुड़े अधिकांश चरमपंथियों को या तो मार गिराया गया या फिर गिरफ्तार कर लिया गया है। इसी तरह उल्फा को अब असम के लिए बड़े खतरे के रूप में देखना बंद कर दिया गया है। नागालैंड में एनएससीएम (मोइबा) के साथ हुए शांति समझौते और एनएससीएम (खपलांग) के आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के बाद नागालैंड में भी आतंकी गतिविधियां न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है।

यह भी पढ़ेंः पाक गोलाबारी में मेजर सहित 4 जवान शहीद, सेना ने कहा- व्यर्थ नहीं जाएगा बलिदान

यह भी पढ़ेंः भारत में अब पावर ग्रिड से कम और आपकी छत से ज्यादा तैयार होगी बिजली, ये है पूरा प्लान


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.