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इस मंदिर में जन्‍म के पांच दिनों तक नहीं होती कान्‍हा की आरती, जानें 110 साल पुरानी परंपरा

उज्जैन के श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में एक अनूठी परंपरा है। यहां जन्म के बाद कन्हैया पांच दिनों तक सोते नहीं हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 23 Aug 2019 02:33 PM (IST)Updated: Fri, 23 Aug 2019 02:34 PM (IST)
इस मंदिर में जन्‍म के पांच दिनों तक नहीं होती कान्‍हा की आरती, जानें 110 साल पुरानी परंपरा
इस मंदिर में जन्‍म के पांच दिनों तक नहीं होती कान्‍हा की आरती, जानें 110 साल पुरानी परंपरा

राजेश वर्मा, उज्जैन। Shree Krishna Janmashtami 2019 कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी पर जहां देश भर में कान्‍हा की पूजा में उनके भक्‍त डूबे हैं वहीं एक ऐसा मंदिर भी है जहां कान्‍हा के जन्‍म के बाद उनकी आरती नहीं उतारने की परंपरा है। Krishna bhajan कान्‍हा के भजन पांच दिनों तक नहीं होने से भक्‍त दुखी नहीं होते हैं क्‍योंकि यह परंपरा करीब 110 सालों से चली आ रही है। जी हां यह उज्जैन के श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में एक अनूठी परंपरा है। यहां जन्म के बाद कन्हैया पांच दिनों तक सोते नहीं हैं। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म (जन्माष्टमी) के बाद रोज होने वाली शयन आरती पांच दिनों तक नहीं होती है। पांच दिन तक सेवा पूजा के बाद 27 अगस्त को बछबारस पर दोपहर 12 बजे शयन आरती होगी। सिंधिया देव स्थान ट्रस्ट के इस मंदिर में राजवंश परंपरा के अनुसार शुक्रवार को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। मध्यरात्रि में 12 बजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा।

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पुजारी पं.अर्पित जोशी ने बताया यह परंपरा बीते 110 वर्षों से चली आ रही है। इसके पीछे मान्यता है कि जन्म के बाद भगवान बाल्यावस्था में होते हैं और बालक के जागने व सोने का समय निश्चित नहीं रहता है। ऐसे में नियत समय पर शयन आरती नहीं की जा सकती है। ऐसे में पांच दिन तक बाल गोपाल से लाड़ लड़ाए जाते हैं। उन्हें दूध, माखन आदि का नियमित भोग लगाया जाता है। मान्यता के अनुसार बछबारस पर भगवान बड़े हो जाते हैं। इस दिन सुबह अभिषेक पूजन के बाद उन्हें चांदी की पादुका पहनाई जाती है। चांदी की यह पादुका सिंधिया राजवंश की है। इसके बाद भगवान मंदिर के मुख्य द्वार पर बांधी गई माखन मटकी फोड़ते हैं। इसके पश्चात दोपहर में शयन आरती होती है। साल में एक बार यह अवसर आता है, जब दिन में भगवान की शयन आरती की जाती है।

बायजाबाई सिंधिया ने कराया था मंदिर का निर्माण
उज्जैन शहर के मध्य में स्थित श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर का निर्माण संवत् 1909 में सिंधिया राजवंश की महारानी बायजाबाई सिंधिया ने कराया था। अत्यंत कलात्मक व भव्य मंदिर में भगवान द्वारकाधीश पटरानी रुक्मिणीजी के साथ विराजित हैं। राधा-रुक्मिणी व भगवान गोपालकृष्ण के अर्चाविग्रह की नित्य पूजा अर्चना होती है। रात्रि आठ बजे शयन आरती के बाद अर्चा विग्रह को चांदी के रथ में विराजित कर मंदिर के दायीं ओर बने शयन कक्ष में शयन के लिए ले जाया जाता है। जन्माष्टमी से बछबारस तक भगवान गर्भगृह में ही विराजित रहते हैं।

भगवान कृष्ण सुदामा का मैत्री स्थल नारायणा
उज्जैन का समीपस्थ ग्राम नारायणा भगवान श्रीकृष्ण व सुदामा के मैत्री स्थल के रूप में विश्वविख्यात है। बताया जाता है सांदीपनि आश्रम में विद्याध्ययन के दौरान भगवान श्रीकृष्ण मित्र सुदामा के साथ वन में लकड़ियां लेने गए थे। लौटने में समय लग गया और उन्हें रात्रि विश्राम करना पड़ा। धर्म कथा के अनुसार इसी स्थान पर सुदामा ने भगवान श्रीकृष्ण से छुपाकर चने खाए थे। आज यह स्थान विश्व के श्रीकृष्ण भक्तों के लिए तीर्थ बन गया है। असंख्य कृष्ण भक्त प्रतिवर्ष यहां दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण व सुदामाजी की दिव्य मूर्तियां विराजित हैं। जन्माष्टमी पर मंदिर में विशेष उत्सव मनाया जाता है।


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