Move to Jagran APP

डॉक्टरों ने 102 साल के इस बुजुर्ग शख्स की बचाई जान,अब हैं शहर के सबसे उम्रदराज इंसान

बेंगलुरु के 102 साल के रामास्वामी लकवे के सफल इलाज के बाद शहर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति बन गए हैं।

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 02 Aug 2018 11:34 AM (IST)Updated: Thu, 02 Aug 2018 11:44 AM (IST)
डॉक्टरों ने 102 साल के इस बुजुर्ग शख्स की बचाई जान,अब हैं शहर के सबसे उम्रदराज इंसान
डॉक्टरों ने 102 साल के इस बुजुर्ग शख्स की बचाई जान,अब हैं शहर के सबसे उम्रदराज इंसान

बेंगलुरु (एएनआई)। बेंगलुरु के शहर व्हाइटफील्ड में एक निजी अस्पताल में डॉक्टरों ने 102 साल के एक शख्स रामास्वामी का सफल इलाज कर उसे मौत के मुंह में जाने से बचा लिया। आघात आने से लकवाग्रस्त हो जाने के कारण रामास्वामी को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। अस्पताल में थर्मोबोलिसिस तकनीक के तहत बचाया गया।

loksabha election banner

जानकारी के मुताबिक, रामास्वामी व्हाइटफील्ड में एक सेवानिवृत जीवन जी रहे हैं। एक दिन अचानक उन्हें उनके बायें हाथ और पैर में कमजोरी महसूस होने लगी। उनके परिवार ने महसूस किया कि यह एक सामान्य कमजोरी नहीं थी इसलिए उन्होंने रामास्वामी को तत्काल नारायण मल्टीस्पेशिलिटी अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टरों की एक टीम ने उनके दिमाग का एमआरआई टेस्ट किया। जिसके बाद पता लगा कि उन्हें पैरेलिसिस का अटैक है। डॉक्टरों ने बताया कि, रामास्वामी को आघात लगा था जिसके कारण उनके दिमाग के बायें हिस्से में पर्याप्त रक्त संचार नहीं हो पा रहा था और जिसके कारण उस हिस्से में खून के थक्के का निर्माण हो रहा था।

क्या है थर्मोबोलिसिस
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. दीपक ए ने बताया कि थर्मोबोलिसिस बुजुर्गों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक बड़ी चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। उम्र के साथ-साथ दिमागी गतिविधियां भी बदलती हैं ऐसे में थर्मोबोलिसिस के मदद से दिमाग में रक्त संचार की प्रक्रिया शुरू करवाई जाती है। इस मामले में मरीज 102 साल का था इसलिए हमारे लिए यह एक मुश्किल निर्णय था। हालांकि विस्तृत जांच और अपनी टीम के साथ चर्चा करने के बाद हम उन्हें पुरानी अवस्था में वापस लाने में सफल हो पाए।

इस सफल इलाज के बाद रामास्वामी शहर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति बन गए हैं। थर्मोबोलिसिस एक ऐसी इलाज प्रक्रिया है जिसकी मदद से रक्त के थक्के को बनने से रोका जाता है, रक्त संचार में सुधार करता है और टिश्यु और आंतरिक अंगों को नुक्सान होने से बचाता है।

इलाज के तीन दिन बाद रामास्वामी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है और अब वे सामान्य जीवन जी रहे हैं। डॉक्टर ने बताया कि ऐसे मामले में अगर गोल्डन ऑवर्स (4.5 घंटों) के भीतर कराया गया तो मरीज को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है।

'परिवार का आभारी'
अपनी खुशी व्यक्त करते हुए रामास्वामी ने कहा कि, डॉ. दीपक उनकी टीम और मेरे परिवार ने काफी सपोर्ट किया। उम्र के इस पड़ाव पर लकवाग्रस्त होने से मेरे परिवार के ऊपर मेरा काफी बोझ आ जाता लेकिन मैं अस्पताल का आभारी हूं कि उन्होनें मुझे एक नई जिंदगी दी है। इस उम्र में कई लोग इतने भाग्यशाली नहीं होते हैं, मैं अपने परिवार का आभारी हूं कि मेरे परिवार ने मुझे अस्पताल में भर्ती कराने का फैसला किया। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, उम्र के अंतिम पड़ाव पर विकलांगता और मौत का बड़ा कारण स्ट्रोक होता है। भारत में मौत का सामान्य कारणों में दूसरा सबसे बड़ा कारण स्ट्रोक है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.