Maharastra News: सामना ने संपादकीय में लिखा- फडणवीस, कटुता खत्म कर ही दो! ….लग जाओ काम पर !!
Maharastra News फडणवीस ने अपने सरकारी आवास पर दीवाली के अवसर पर दिए गए भोज में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि महाराष्ट्र की राजनीति में कभी इतनी कटुता नहीं रही जितनी अब दिखाई दे रही है। इस कटुता को कम करने की जरूरत है।
मुंबई, राज्य ब्यूरो। Maharastra News: महाराष्ट्र में 2019 में महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के साथ ही 30 साल पुराना शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट गया था। करीब चार महीने पहले उद्धव सरकार गिरने के साथ ही दोनों दलों में और कड़वाहट आ गई। लेकिन अब लगता है कि दोनों दल कड़वाहट कम करने के जुगत भिड़ाने लगे हैं। इसके संकेत शुक्रवार को शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में दिखाई दिए।
शुक्रवार को सामना के संपादकीय का शीर्षक था – फडणवीस, कटुता खत्म कर ही दो ! ….लग जाओ काम पर !! सामना ने यह संपादकीय दो दिन पहले दिए गए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के एक बयान का जवाब देते हुए लिखा गया है। फडणवीस ने अपने सरकारी आवास पर दीवाली के अवसर पर दिए गए भोज में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि महाराष्ट्र की राजनीति में कभी इतनी कटुता नहीं रही, जितनी अब दिखाई दे रही है। इस कटुता को कम करने की जरूरत है।
इसका जवाब देते हुए सामना के संपादकीय में लिखा गया है कि महाराष्ट्र की राजनीति में न केवल कटुता, बल्कि बदले की राजनीति का विषैला प्रवाह उमड़ रहा है और इस प्रवाह का मूल भाजपा की हालिया राजनीति है। लेकिन इस मामले में फडणवीस जैसे नेताओं को अब पछतावा होने लगा है, तो उस विष को अमृत बनाने का काम भी उन्हें ही करना होगा।
सामना आगे लिखता है कि आज केवल हमारे महाराष्ट्र में ही नहीं, देश की राजनीति में कटुता आ गई है। लोकतंत्र के लक्षण क्या हैं?
सत्ताधारी पार्टी कोई भी हो, उसे विपक्षी पार्टी को देश का शत्रु नहीं मानना चाहिए। लोकतंत्र में मतभेद का महत्व होता है, इसलिए मतभेद का मतलब देशविरोधी विचार नहीं है। लिहाजा सत्ताधारी और विपक्ष को एक-दूसरे की कम-से-कम ईमानदारी पर विश्वास करके काम करना चाहिए। लेकिन आज यह माहौल महाराष्ट्र में और देश में नहीं रह गया है।
पिछले कुछ महीनों में हुए राजनीतिक घटनाक्रम पर सवाल उठाते हुए सामना लिखता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में कटुता न रहे और राज्य के कल्याण हो, इसके लिए सभी को एक साथ बैठना चाहिए, यही राज्य की परंपरा है।
यशवंतराव चव्हाण, शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे, शरद पवार जैसे नेताओं ने समन्वय की राजनीति की। उसे तोड़ा किसने ? सामना कहता है कि शिवसेना से वादा करके ढाई वर्ष के मुख्यमंत्री पद को नकार दिया, यहीं कटुता की चिंगारी भड़की। सामना आगे लिखता है कि महाराष्ट्र की एकता की परंपरा कायम रहे, फडणवीस के इन विचारों से हम सहमत हैं। नेपोलियन, सिकंदर भी हमेशा के लिए नहीं टिके। राम-कृष्ण भी आए और गए। तो हम कौन हैं ? फडणवीस, आपके मन में आ ही गया है तो कटुता खत्म करने का बीड़ा उठा ही लीजिए! लग जाइए काम पर!!