Lok Sabha Election 2024: खूब चले ‘शब्दबाण’, अब जनता-जनार्दन के फैसले का वक्त, चुनाव प्रचार के दौरान दिखाई दिए विविध रंग
18वीं लोकसभा के लिए चुनावी रण सज चुका है। बुधवार शाम छह बजे प्रचार थम गया। अब जनता जनार्दन निर्णायक भूमिका में आ गई है। हालांकि चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले सभी दलों ने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए हर तरह के सियासी दांव चले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली कर राष्ट्रवाद और विकास पर जनता का ध्यान खींचा।
कपिल कुमार, सहारनपुर। 18वीं लोकसभा के लिए चुनावी रण सज चुका है। गर्मी के साथ सियासी ताप भी उफान पर है। बुधवार शाम छह बजे प्रचार थम गया। अब जनता जनार्दन निर्णायक भूमिका में आ गई है।
हालांकि, चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले सभी दलों ने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए हर तरह के सियासी दांव चले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली कर राष्ट्रवाद और विकास पर जनता का ध्यान खींचा।
वहीं, बसपा प्रमुख मायावती मुस्लिमों से अपना वोट न बंटने देने का आग्रह कर ध्रुवीकरण को हवा दे गईं। अंतिम दिन कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा ने मतदाताओं में जोश भरा।
चुनाव की घोषणा के बाद लोगों को यहां प्रचार के विविध रंग-रूप देखने को मिले। चुनाव प्रचार की बात करें तो इस मामले में भाजपा ने दूसरे दलों को काफी पीछे छोड़ दिया, जबकि कांग्रेस और बसपा का चुनाव प्रचार धीमी गति से चला।
भाजपा के चुनाव प्रचार के लिए कैबिनेट मंत्री से लेकर डिप्टी सीएम, सीएम और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक ने जनसभाएं कर ‘शब्द बाण’ चलाए। सबसे ज्यादा भागदौड़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रही, वह चुनाव घोषित होने के बाद एक-दो बार नहीं चार बार सहारनपुर का सियासी ताप बढ़ाने आए।
यह पहला चुनाव है, जब किसी मुख्यमंत्री को चार बार जिले में आना पड़ा। इतना होने के बाद भी राजपूत समाज की नाराजगी की गांठ अभी पूरी तरह नहीं खुल पाई है। हालांकि, इसके डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा हाईकमान ने ठाकुर बहुल क्षेत्रों में राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ सरीखे नेताओं की जनसभाएं कराईं।
इतना ही नहीं चुनाव में हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी ने भी पड़ोस के सहारनपुर में सक्रियता बनाए रखी। नकुड़ और बेहट इलाकों में जनसभा कर सैनी बिरादरी को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
वहीं, धर्मसिंह सैनी की भाजपा में वापसी में भी उनकी अहम भूमिका रही। बसपा प्रमुख मायावती ने भी नागल क्षेत्र में रैली कर अपने वोटरों में जोश भरा, उनका पूरा फोकस मुस्लिमों की एकजुटता पर रहा। चूंकि कांग्रेस और बसपा दोनों ही पार्टियों से मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में हैं, इसलिए उनका पूरा जोर इस बात पर रहा कि मुस्लिमों का वोट बंटना नहीं चाहिए।
मायावती मुस्लिमों को समीकरण समझा कर गईं कि अगर उनका वोट बंटा तो भाजपा जीत जाएगी। एक तरह से देखा जाए तो कांग्रेस का प्रचार साइलेंट रहा। पार्टी के किसी बड़े नेता की रैली नहीं हुई।
प्रियंका वाड्रा ने चुनाव प्रचार के अंतिम दिन बुधवार को शहर में रोड शो कर हालात संभालने की कोशिश की। खास बात यह रही कि प्रचार के दौरान कांग्रेस के राहुल गांधी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की जनपद में एक भी जनसभा नहीं हुई।
बहरहाल, चुनाव मैदान में डटीं तीनों प्रमुख पार्टियां अपनी-अपनी जीत के तर्कों के साथ चुनाव मैदान में हैं। सहारनपुर सीट पर भाजपा से जहां राघव लखनपाल शर्मा मैदान में हैं, वहीं कांग्रेस-सपा गठबंधन से इमरान मसूद ताल ठोके हुए हैं।
बसपा के माजिद अली कांग्रेस प्रत्याशी के लिए लगातार चुनौती बने हुए हैं। दोनों मुस्लिम प्रत्याशियों में मुस्लिम मतों के बिखराव का फायदा उठाने के लिए भाजपा को मौके की तलाश है।
महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, उद्योग व्यापार और बढ़ती असमानता आदि मुद्दे भी प्रचार से एकदम गायब हैं, जबकि तीन राज्यों से घिरे यूपी के सीमाई जिले सहारनपुर की अपनी ढेरों समस्याएं हैं।
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