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शोक में डूबा पहाड़… नहीं रहे कुमाऊं के मशहूर लोकगायक प्रहलाद मेहरा, अचानक निधन की सूचना से लोगों में कोहराम

कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक गायक प्रहलाद मेहरा का 53 वर्ष की आयु में हृदय गति रुकने से आकस्मिक निधन हो गया है। गुरुवार सुबह चित्रशिला घाट रानीबाग में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उधर सोशल मीडिया में भी लोक कलाकार समेत आम जनता भी दुख जता रही है। लोक गायक प्रहलाद मेहरा को बुधवार दोपहर में हल्द्वानी स्थित आवास में अचानक सीने में तेज दर्द की शिकायत हुई।

By Prakash joshi Edited By: Riya Pandey Published: Wed, 10 Apr 2024 11:17 PM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2024 11:17 PM (IST)
शोक में डूबा पहाड़… नहीं रहे कुमाऊं के मशहूर लोकगायक प्रहलाद मेहरा, अचानक निधन की सूचना से लोगों में कोहराम
कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक गायक प्रहलाद मेहरा का निधन

संवाद सूत्र, लालकुआं। सुमधुर आवाज से लोक को शब्द देने वाले लोक गायक प्रहलाद मेहरा नहीं रहे। 15 वर्ष के किशोर से लेकर 80 वर्ष की आमा के लिए वह प्रहलाद दा थे। उन्होंने पहले सुर से लेकर आखिरी गीत तक पहाड़ को आवाज दी।

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कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक गायक प्रहलाद मेहरा का 53 वर्ष की आयु में हृदय गति रुकने से आकस्मिक निधन हो गया है। उनके निधन का समाचार सुनकर स्वजन में कोहराम मच गया। वहीं, क्षेत्र में शोक की लहर व्याप्त है।

गुरुवार सुबह चित्रशिला घाट रानीबाग में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उधर, सोशल मीडिया में भी लोक कलाकार समेत आम जनता भी दु:ख जता रही है।  लोक गायक प्रहलाद मेहरा को बुधवार दोपहर में हल्द्वानी स्थित आवास में अचानक सीने में तेज दर्द की शिकायत हुई। उन्हें स्वजन निजी चिकित्सालय ले गए। जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

लोकगायक प्रहलाद की मौत से क्षेत्र में शोक की लहर

इसके बाद स्वजन उनके पार्थिव शरीर को लेकर बिंदुखत्ता के संजय नगर स्थित उनके आवास में पहुंचे तो क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई। भारी संख्या में ग्रामीण और जनप्रतिनिधि उनके आवास में एकत्र हो गए।

प्रहलाद मेहरा के तीन बेटे हैं। उनका एक पुत्र नीरज मेहरा हल्द्वानी एमबीपीजी कालेज में छात्र संघ अध्यक्ष भी रह चुका है। जबकि प्रहलाद मेहरा के भाई मनोहर मेहरा सामाजिक कार्यकर्ता के साथ ही संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी हैं। इस घटना से स्वजन का रो-रो कर बुरा हाल है।

मनोहर मेहरा ने बताया कि उत्तराखंड की संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए प्रहलाद मेहरा ने कई गीत गाए हैं। जिससे युवा पीढ़ी संगीत के माध्यम से अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आ सके।

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प्रहलाद की गीतों में पहाड़ की नारी की पीड़ा

प्रहलाद दा के गीतों में पहाड़ की नारी की पीड़ा है। संघर्ष है। नौकरी के लिए परदेश में भटकते युवाओं के मन की व्यथा है और हर मन को लुभाते पहाड़ का सौंदर्य भी। प्रहलाद दा ने ऐसे गीत रचे जिनमें हर कोई खुद को पाता है। शिक्षक पिता के घर जन्मे प्रहलाद दा का पढ़ाई में मन कम रमा।

पिता से डर के बावजूद गाया करते थे

1980-85 के दौर में जब मेले व रामलीला का खूब चलन था। पिताजी से डर के बावजूद प्रहलाद दा रामलीला, मेले में यदा-कदा कुछ गा लिया करते। कुमाऊं के सुर सम्राट स्व. गोपाल बाबू गोस्वामी, स्व. हीरा सिंह राणा, नैन सिंह रावल को सुन गाने-लिखने की प्रेरणा मिली। हमेशा पहाड़ के इर्द-गिर्द गीत रचे। उन्हें गीत, झोड़ा, चांचरी, न्योली सभी विधाओं में महारथ थी।

महिलाओं के संघर्ष को दी आवाज

महिलाओं के संघर्ष को आवाज देते हुए 'पहाड़ै की चेली लै कभै न खाया द्वि रवाटा सुखै लै' गीत गाया। 'बार घंटै की ड्यूटी मेरी तनख्वाह ढाई हजार..' से छोटी नौकरी के लिए महानगरों में धक्के खाते युवाओं की व्यथा लिखी। 


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