शोक में डूबा पहाड़… नहीं रहे कुमाऊं के मशहूर लोकगायक प्रहलाद मेहरा, अचानक निधन की सूचना से लोगों में कोहराम
कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक गायक प्रहलाद मेहरा का 53 वर्ष की आयु में हृदय गति रुकने से आकस्मिक निधन हो गया है। गुरुवार सुबह चित्रशिला घाट रानीबाग में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उधर सोशल मीडिया में भी लोक कलाकार समेत आम जनता भी दुख जता रही है। लोक गायक प्रहलाद मेहरा को बुधवार दोपहर में हल्द्वानी स्थित आवास में अचानक सीने में तेज दर्द की शिकायत हुई।
लोकगायक प्रहलाद की मौत से क्षेत्र में शोक की लहर
प्रहलाद की गीतों में पहाड़ की नारी की पीड़ा
प्रहलाद दा के गीतों में पहाड़ की नारी की पीड़ा है। संघर्ष है। नौकरी के लिए परदेश में भटकते युवाओं के मन की व्यथा है और हर मन को लुभाते पहाड़ का सौंदर्य भी। प्रहलाद दा ने ऐसे गीत रचे जिनमें हर कोई खुद को पाता है। शिक्षक पिता के घर जन्मे प्रहलाद दा का पढ़ाई में मन कम रमा।
पिता से डर के बावजूद गाया करते थे
1980-85 के दौर में जब मेले व रामलीला का खूब चलन था। पिताजी से डर के बावजूद प्रहलाद दा रामलीला, मेले में यदा-कदा कुछ गा लिया करते। कुमाऊं के सुर सम्राट स्व. गोपाल बाबू गोस्वामी, स्व. हीरा सिंह राणा, नैन सिंह रावल को सुन गाने-लिखने की प्रेरणा मिली। हमेशा पहाड़ के इर्द-गिर्द गीत रचे। उन्हें गीत, झोड़ा, चांचरी, न्योली सभी विधाओं में महारथ थी।
महिलाओं के संघर्ष को दी आवाज
महिलाओं के संघर्ष को आवाज देते हुए 'पहाड़ै की चेली लै कभै न खाया द्वि रवाटा सुखै लै' गीत गाया। 'बार घंटै की ड्यूटी मेरी तनख्वाह ढाई हजार..' से छोटी नौकरी के लिए महानगरों में धक्के खाते युवाओं की व्यथा लिखी।