ठेले पर कपड़े बेचकर पाला परिवार, खड़ा किया कारोबार
आकाश राज सिंह, हाथरस : विभाजन की विभीषिका ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया था। चारों ओर कत्लेआम को देख हिंदुओं का भारत और मुस्लिमों का पाक के लिए पलायन शुरू हो गया था। पंजाब प्रांत के मखड़शरीफ इलाके में हिंदुओं के घरों को लूट उनको मौत के घाट उतारा जा रहा था। इस वीभत्स मंजर को देख हिंदुओं के परिवार घर-बार छोड़कर भारत की ओर निकल पड़े। इनमें विशनदास का परिवार भी शामिल था। एक साल अंबाला में रहने के बाद रिश्तेदारों के कहने पर हाथरस पहुंचकर यहां कपड़े का कारोबार शुरू किया। उसके वे यहीं के होकर रहे गए।
मिलजुल कर रहते थे हिंदू-मुस्लिम
विशनदास के पुत्र गुरुदासमल अरोड़ा बताते हैं कि उनका जन्म पंजाब के जिला कैमदपुर के शहर मखड़शरीफ में हुआ था, जो अब पाकिस्तान के रावल पिंडी के पास है। पिता वहां परचून का कारोबार करते थे। मुस्लिमों का वहां आधिपत्य था। उनके परिवार में तीन भाई व दो बहन थे। गुरुदासमल का जन्म छह जुलाई 1927 को हुआ था। वहीं के स्कूल से उन्होंने छठवीं तक पढ़ाई की। तब सभी मुस्लिमों के साथ मिलजुलकर रहते थे।
भड़की हिंसा, तो छोड़ा घरबार
गुरुदासमल बताते हैं कि सब कुछ ठीक चल रहा था। तभी जुलाई 1947 में बंटवारे की बात शुरू होने पर हिंसा भड़क उठी। यह धीरे-धीरे बढ़ी तो मुस्लिमों ने हिंदुओं का कत्लेआम शुरू कर दिया। उनकी संपत्तियों को लूटकर उनके घरों में ही उन्हें जला दिया जाता। छोटे-छोटे बच्चों व महिलाओं को भी निर्दयतापूर्वक मार दिया जाता था। जान बचाने के लिए हमारा परिवार भी वहां भाग निकला। शुरू में छिपते हुए घूम रहे थे।
मालगाड़ी से पहुंचे लाहौर
गुरुदासमल बताते हैं कि हमारे परिवार सहित करीब 100 लोग पुलिस के हाथ लग गए। उन्होंने मानवता दिखाते हुए अपने तीन शिविर में रखा। वहां से मालगाड़ी में सभी को पुलिस सुरक्षा में लाहौर तक छुड़वा दिया। वहां से किसी तरह पटियाला होते हुए रामपुरा पहुंचे। यहां एक धर्मशाला में एक साथ दो सौ लोग रह रहे थे। चक्की बनाने वाली फैक्ट्री में पिताजी के साथ काम किया।
सस्ता ही नहीं, सबसे अच्छा है हाथरस
गुरुदासमल बताते हैं कि रामपुरा में खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा था। तभी हरिद्वार में रह रहे रिश्तेदारों ने आकर बताया कि हाथरस में सभी चीजें सस्ती हैं। वहां रोजगार के साधन भी बहुत हैं। इसे सुनकर पिताजी ट्रेन में बैठकर सीधे परिवार सहित हाथरस जंक्शन से किला स्टेशन पहुंचे। स्टेशन से पैदल शहर आए। यहां डिब्बा वाली गली में दोबरावाल की धर्मशाला में एक साल रहे।
पत्थरवाले बाजार में लगाए फड़, फेरी भी की
गुरुदासमल बताते हैं कि रोजगार का कोई साधन नहीं होने पर पिता जी ने पत्थर वाले बाजार में फड़ लगाकर कपड़े बेचे। मुरसान की पैंठ में कपड़े बेचने जाने लगे। पिताजी के साथ हम सिर पर कपड़ों का गट्ठर लादकर ले जाते। चार साल तक यही काम किया। किराये पर कई साल रहे। 1952 में रेशमा देवी से उनका विवाह हुआ। उसके बाद पंजाबी मार्केट में दुकान मिली तो वहां कपड़े का कारोबार शुरू किया।
वर्जन ----
बंटवारे से पूर्व देश की सीमा अफगानिस्तान तक लगी हुई थी। भले ही हिंदुओं की संख्या कम थी, उसके बाद भी मुस्लिमों के साथ संबंध अच्छे थे। बंटवारे की आग के चलते मुस्लिमों का व्यवहार हिंसक हो गया। वहां पर हिंदुओं के घरों में लूटपाट व उनका कत्लेआम होने लगा था। इससे बचने के लिए हिंदू परिवार अपना सब कुछ छोड़कर भाग निकले। हाथरस में काफी सुकून मिला। यहां कपड़े का कारोबार खड़ा किया। उसे अब बच्चे संभाल रहे हैं। आज भी वहां का मंजर झकझोर देता है। बंटवारे का दर्द हिंदू व मुस्लिम दोनों ने झेला था।
-गुरुदासमल अरोड़ा, भारत-पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी के प्रत्यक्षदर्शी