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सफलता और असफलता के लिए आप ही जिम्मेदार, जानें कैसे काम करता है ये "बिलीफ सिस्टम"

करियर में आपकी कामयाबी की बुलंदियां क्या होंगी यह भी आपके स्वयं की धारणाओं पर ही निर्भर करता है।

By Neel RajputEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 09:59 AM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 10:03 AM (IST)
सफलता और असफलता के लिए आप ही जिम्मेदार, जानें कैसे काम करता है ये "बिलीफ सिस्टम"
सफलता और असफलता के लिए आप ही जिम्मेदार, जानें कैसे काम करता है ये "बिलीफ सिस्टम"

नई दिल्ली [भारती पाठक सक्सेना]। कभी आपने सोचा है कि आपके जीवन को सबसे अलग क्या बनाता है? यह है आपका बिलीफ सिस्टम, जो विशेष रूप से आपके खुद के विचारों से नियंत्रित होता है। करियर में आपकी कामयाबी की बुलंदियां क्या होंगी, यह भी आपके स्वयं की धारणाओं पर ही निर्भर करता है। इतना ही नहीं, अपनी सफलता और असफलता के लिए भी आप खुद ही जिम्मेदार हैं जानें कैसे....

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आखिर बिलीफ है क्या?

आपके ऐसे विचार जो जितनी बार सोचे जाएं, वे आपके लिए शाश्वत सत्य बन जाएं। ये आपकी ऐसी धारणाएं हैं, जो आपके लिए व्यक्तिगत नियम और कानून बन गए हैं। ये इतने शक्तिशाली बन गए हैं कि ये आपके अनुभवों का निर्माण करने की भी क्षमता रखते हैं। बिल्कुल उन तीन नेत्रहीनों के समान, जिन्होंने हाथी को अलग-अलग स्थान से पकड़ा था और हाथी की अपनी-अपनी अनूठी वास्तविकता को अपनी धारणा बना लिया था। वही उनके लिए शाश्वत सत्य था और उनका अनुभव भी। यदि हमें यह ज्ञान हो जाए कि हमारी बिलीफ इतनी पावरफुल है, तो क्या हम अपने भाग्य की रेखा जिम्मेदारी से, सोच समझ कर नहीं खीचना चाहेंगे?

वर्ष 1954 में रोजर बैनिस्टर 4 मिनट से भी कम समय में मील के रिकॉर्ड को तोड़ने वाले पहले धावक बने। हर बार जब वह प्रैक्टिस रेस करते, तो अपने दिमाग को 4 मिनट के अंदर रेस खत्म करने के लिए प्रशिक्षित करते समय अपनी टाइमर घड़ी को देख कर कहते, ‘3:59’। बाद में उन्होंने इस रहस्य को उजागर किया कि कुछ भी वास्तविकता में होने के लिए, वह पहले हमारे दिमाग में होना चाहिए। उन्होंने न केवल अपने लिए एक रिकॉर्ड तोड़ा, बल्कि अपने समय के सभी धावकों की उन आत्म-सीमित सीमाओं की एक बाधा को तोड़ दिया, जिन्होंने 4 मिनट-मील रिकॉर्ड को निराशाजनक रूप से असंभव मान लिया था। उनके अनुभव से प्रेरणा लेकर फिर न जाने कितने ही धावकों ने उनके रिकॉर्ड को तोड़ने की हिम्मत की।

प्रैक्टिकल अभ्यास

अंग्रेजी भाषा में दो सबसे सरल शब्द हैं- ‘आइ एम... उसके बाद आप जो भी अपने से व अपने लिए कहते हैं, वह आपकी वास्तविकता और आपकी नियति बनाता है। आप अपने बारे में क्या सोचते हैं यह बहुत प्रभावशाली है। और हम जीवनभर इसी में फंसे रहते हैं कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं। सुबह के समय आईने में अपनी छवि से बात करें-‘आई एम...’- जो और जैसा आप वास्तव में बनना चाहते हैं। इसके अलावा, यदि आपने खुद पर कोई नकारात्मक लेबल लगाया है, जैसे-‘मैं बोरिंग हूं’ या ‘मैं शॉर्ट-टेम्पर्ड हूं’ आदि, तो इस नकारात्मक बिलीफ की पकड़ से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका यह है कि इस पर लगाम लगाई जाए।

माइंड को करें ट्रेन

इसके लिए सबसे पहले अपने बिलीफ (विश्वास) और मान्यताओं के प्रति जागरूक/अवेयर होना होगा और उनकी जांच करें कि क्या वे आपके लिए सकारात्मक तरीके से काम कर रहे हैं या वे आपके लिए एक बाधा बन रहे हैं? अपनी मान्यताओं को अपने पक्ष में काम करने, बदलने के लिए उनसे अवगत होना ही पहला आवश्यक कदम है। सही मायने में आपका अवचेतन मन ही सफलता में आपका साथी है और उसके पास असीमित शक्ति भी है।

एक व्यापक मान्यता भी है, ‘जब आप आंखों से देखते हैं तो आप मानते हैं’, लेकिन इस धारणा को बदलने वाले डॉ. वेन डब्ल्यू डायर (अमेरिकी लेखक) ने कहा है, ‘आप जब मन से कुछ मानेंगे, तब आप उसे अपने अनुभव में देखेंगे।’ इसलिए आपको अपनी वास्तविकता और अनुभव को बदलने के लिए बिलीफ को बदलने की जरूरत है और यह रातोंरात तो नहीं हो सकता है। वैसे, एक तरीका यह है कि आप अपने से वे अपेक्षाएं रखें, जो आपने कभी सोचा भी नहीं था कि आप ऐसा कर सकते हैं। इस तरह आपके लिए सफलता की नई संभावनाएं खुलती चली जाएंगी।


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