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अपनी मेहनत और निरंतर अभ्यास से करें जीवन में तरक्की, कामयाबी के शीर्ष पर पहुंचने के लिए जरूरी हैं ये खास बातें

अच्छी बातों को अपनाने के लिए अभ्यास करना पड़ता है और धीर-धीरे आपका अभ्यास आदत में तब्दील हो जाता है। बाकी बुरी आदतें तो खुद ब खुद आपको अपनी गिरफ्त में लेने का प्रयास करती ही रहती हैं। उनसे बचना होगा।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 19 Dec 2020 05:46 PM (IST)Updated: Sat, 19 Dec 2020 05:46 PM (IST)
सफलता में बने रहने के लिए जरूरी है निरंतर अभ्यास

[कुणाल देव]। वर्ष 2000 में केन्या में खेले गए आइसीसी नॉक आउट टूर्नामेंट के लिए भारतीय टीम में नए चेहरों को जगह दी गई थी। हालांकि, पहले मैच में उसे बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला, लेकिन 7 अक्टूबर, 2000 को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जब पहली बार अंतरराष्ट्रीय मैच में बल्लेबाजी का अवसर मिला तो बंदा छा गया। उसने 84 रनों की पारी खेली और मैन ऑफ द मैच चुना गया। इसके बाद तो फील्ड पर चाहे उसका बल्ला बोला या स्टाइल। आगे के 10 वर्षों में उसने अपनी जिंदगी में वह सबकुछ हासिल किया, जो बहुत कम लोगों को मिल पाता है। वर्ष 2011 में विश्वकप के बाद अचानक एक दिन उसकी नजरों के सामने अंधेरा छा गया। पता चला कैंसर ने गिरफ्त में ले लिया है। अच्छा खिलाड़ी था। मैदान पर तो लड़ता ही था, अस्पताल में भी जी-जान से लड़ा। कैंसर हार गया। फिर मैदान पर लौटा, लेकिन तबतक वह फॉर्म खो चुका था। आइपीएल से लेकर रणजी मैचों तक में फ्लॉप हो रहा था। लोग उसे बीता हुआ कल मानने लगे थे, लेकिन उसने अभ्यास जारी रखा। अभ्यास के बूते घरेलू मैचों में प्रदर्शन अच्छा होने लगा और एक बार फिर उसे टीम इंडिया में एंट्री मिल गई। 11 सितंबर, 2012 को न्यूजीलैंड के खिलाफ टी-20 मैच खेला और उसने अपने बल्ले से सबको बता दिया कि जज्बे के साथ अभ्यास जारी रखा जाए तो कुछ भी असंभव नहीं। आप समझ ही गए होंगे कि हम बात पूर्व क्रिकेटर युवराज सिंह की कर रहे हैं।

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कोमल रस्सी भी काट देती है पत्थर कोः एक गुरुकुल था। उसमें समाज के सभी वर्ग के बच्चे पढ़ते थे। एक बच्चा था जो सबसे फिसड्डी था। हमेशा दंड का भागी बनता था। गुरु उच्च कोटि के थे। वह दंड तो देते थे, लेकिन उन्हें उम्मीद भी थी कि बच्चा एक दिन कुशाग्र हो जाएगा और जिंदगी जीने भर की शिक्षा जरूर हासिल कर लेगा। वक्त निकलता गया, फिर भी बच्चे के दिमाग में ज्ञान की ज्योति नहीं जली। दूसरे बच्चे उसे वरधराज (बैलों का राजा) कहकर चिढ़ाते थे। एक दिन गुरुजी ने बच्चे को बुलाया और प्यार से समझाने की कोशिश की- 'बेटा, पढ़ाई-लिखाई तुम्हारे वश में नहीं है। तुम्हें कुछ और प्रयास करना चाहिए।' साथियों के चिढ़ाने से उसे कभी दुख नहीं हुआ था, लेकिन गुरुजी की बातें उसके सीने में तीर सी चुभ गईं। उसने जीवन का अंत करने का मन बना लिया। आश्रम छोड़कर वह भटक रहा था कि रास्ते में उसे एक गांव मिला। वहां एक कुआं था। कुएं पर पत्थर रखा था। लोग रस्सी बांधकर पत्थर के सहारे पानी खींचते थे। इसके कारण पत्थर पर जगह-जगह निशान बन गए थे। अचानक बच्चे के दिमाग में बिजली कौंध गई- 'जब कोमल रस्सी के बार-बार आने-जाने से पत्थर कट सकता है तो मैं शिक्षा हासिल क्यों नहीं कर सकता।' वह आश्रम लौटा। गुरुजी के चरणों में लेट गया। कहा, 'मैं तबतक अभ्यास करता रहूंगा जब तक सीख न जाऊं।' गुरुजी ने उसे गले लगा लिया। वह बच्चा आगे चलकर संस्कृत के महापंडित और व्याकरणाचार्य वरदराज के रूप में विख्यात हुआ। वरदराज ने अपने गुरु महापंडित भट्टोजी दीक्षित की रचना सिद्धांतकौमुदी पर आधारित तीन ग्रंथ मध्यसिद्धांतकौमुदी, लघुसिद्धांतकौमुदी व सारकौमुदी की रचना कर संस्कृत के सागर को और समृद्ध किया।

बने रहने के लिए जरूरी है निरंतर अभ्यासः अमिताभ बच्चन ने उस दौर में अभिनय की शुरुआत की जब राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, प्राण आदि कई कलाकार स्टारडम के शीर्ष पर थे। अमिताभ अभिनय की वजह से निर्माता-निर्देशक के दिल में जगह बनाने लगते हैं, लेकिन उससे भी ज्यादा सराहना उन्हें उनकी आदतों और अभ्यास की वजह से मिलती थी। वह सेट पर समय पर पहुंचते थे और डायलॉग अच्छी तरह याद करने के साथ ही उनका बार-बार अभ्यास करते थे। उन्होंने आज भी वह सिलसिला जारी रखा है। इसलिए, आज वह कामयाबी के शिखर पर हैं। इस बीच न जाने कितने सितारे आए और अपनी आदतों की वजह से इंडस्ट्री से बाहर हो गए। सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़,अनिल कुंबले व महेंद्र सिंह धौनी आदि क्रिकेटर संन्यास ले चुके हैं, लेकिन हम उन्हें उनके स्वर्णिमकाल की वजह से दिल में बैठाए हुए हैं। कहना न होगा कि सामान्य घरों से आने वाले ये लोग अपनी मेहनत और निरंतर अभ्यास की वजह से कामयाबी के शीर्ष पर पहुंचे। बाकी तो आप देख ही रहे होंगे कि क्रिकेट की दुनिया में रोजाना ही सनसनी पैदा होती है और थोड़े ही दिनों बाद गुम हो जाती है।

बोनी पड़ती है फसल, खरपतवार तो खुद उग आते हैं: खेत में फसल बोनी पड़ती है और खरपतवार खुद उग आते हैं। जीवन भी एक खेत है, जहां अच्छी बातों का अभ्यास फसल है और बुरी आदतें खरपतरवार हैं। अच्छी बातों को अपनाने के लिए अभ्यास करना पड़ता है और धीर-धीरे आपका अभ्यास आदत में तब्दील हो जाता है। बाकी बुरी आदतें तो खुद ब खुद आपको अपनी गिरफ्त में लेने का प्रयास करती ही रहती हैं। उनसे बचना होगा। महात्मा गांधी ने महामारी की वजहों को समझा था। उन्होंने स्वराज के साथ-साथ साफ-सफाई का बड़ा संदेश दिया था। आज भी देश के सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा इलाज पर खर्च होता है। आपके-हमारे घर की आमदनी का भी एक बड़ा हिस्सा इलाज पर ही जाता है। इसकी वजह है कि हमने खाने-पीने, जीने, रहने की आदतों को बिगाड़ लिया है और उसे दुरुस्त भी नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी देश के प्रधानमंत्री को शौचालय, साफ-सफाई और स्वास्थ्य के लिए अभियान चलाना पड़ता है। आज दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है। मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति और कर्मठता का ही नतीजा है कि हम इस महामारी पर विजय की ओर बढ़ चुके हैं। वैक्सीन आने वाली है। लेकिन मास्क पहनने, शारीरिक दूरी और बार-बार हाथ धोने जैसे अभ्यास को जारी रखना है। ये अभ्यास हमें आगे भी बीमारियों से दूर रखने में मदद करेंगे।  


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