#SayNoToPlastic : आदमी ही नहीं, पशु-पक्षियों और समुद्री जीवों के लिए भी खतरनाक है प्लास्टिक, बन रहे हैं कई प्लास्टिक द्वीप
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 में कुल 660787.85 टन प्लास्टिक जेनरेट हुआ था। अगर हम इसे किलो में बदलें तो यह 66 करोड़ किलो से भी ज्यादा होगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। सुमद्र में ऐसी जगहें भी हैं, जहां पानी एक बड़े क्षेत्र में गोल-गोल घूमा करता है। यहां हमारे द्वारा फेँका गया कचरा आपको तैरता मिल जाएगा। 600 वर्ग किलोमीटर का एक ऐसा ही क्षेत्र है, जो अपने आप में प्लास्टिक आयलैंड (द्वीप) जैसा है। इसे Great Pacific Garbage Patch भी कहा जाता है। यह स्थान हमारे द्वारा किए गए करनामों का एक उदाहरण है। हमारे द्वारा फेंके गए प्लास्टिक से एक द्वीप का निर्माण हो गया है। वहीं, अगर हम भारत की बात करें तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017-18 में कुल 660,787.85 टन प्लास्टिक जेनरेट हुआ था। अगर हम इसे किलो में बदलें तो यह 66 करोड़ किलो से भी ज्यादा होगा। अब आप इससे अनुमान लगा सकते हैं कि दुनिया में कितना प्लास्टिक जेनरेट होता होगा और इससे कितना कचरा निकलता होगा।
बायोडिग्रेडेबल नहीं होने से बढ़ी समस्या
कचरा कभी बड़ी समस्या नहीं होती, अगर वह बायोडिग्रेडेबल हो। यानी वह मिट्टी में मिलने के बाद आसानी से समाप्त हो जाए। प्लास्टिक के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह मिट्टी में समाप्त नहीं होता है। यही कारण है कि इससे पूरे पर्यावरण पर एक अजीब सा खतरा उत्पन्न हो गया है। यह सिर्फ मनुष्य ही नहीं, बल्कि पूरी पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहा है। इसका उपाय खोजने के लिए पूरी दुनिया रणनीति बना रही है। भारत ने भी इसके खिलाफ जंग छेड़ दी है। 2 अक्टूबर, 2019 से पूरे भारत में सिंगल-यूज-प्लास्टिक पर बैन लगने जा रहा है। पर्यावरणविद् और जल पुरुष के नाम से प्रख्यात मैग्सेसे अवार्ड विजेता राजेंद्र सिंह के अनुसार, प्लास्टिक के इस्तेमाल से जितना बचा जाए, उतना ही अच्छा है, क्योंकि यह समुद्र से लेकर पीने के पानी तक अपना प्रभाव छोड़ता है। लेड जैसे हानिकारक तत्व पानी में घुल जाते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं। इसीलिए प्लास्टिक मनुष्य के लिए सबसे बड़ी समस्या है।
प्लास्टिक के कारण खतरे में समुद्री जीव
समुद्र विविधताओं की खान है। समुद्र में कई प्रकार के जीव रहते हैं। प्लास्टिक का सबसे ज्यादा प्रभाव यहीं पड़ता है। प्लास्टिक पानी के सहायता से समुद्र तक पहुंच जाते हैं। समुद्री मलबे में अस्सी फीसदी मात्रा प्लास्टिक का ही है। इसमें सिंगल-यूज-प्लास्टिक की मात्रा काफी अधिक है। यह प्लास्टिक समुद्र के खारे पन से टूट जाता है, जिसे मछलियां निगल जाती हैं और इससे उनके प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है। यह कचरा समुद्री शैवालों के लिए भी खतरा है।
वायु प्रदूषण का भी है बड़ा कारण
प्लास्टिक को जलाया भी नहीं जा सकता है। प्लास्टिक को जलाने से वायु प्रदूषण होता है। प्लास्टिक निर्माण में benzene और vinyl hydrochloride जैसे रसायनों का इस्तेमाल होता है। यह कैंसर के कारक हैं। यह मिट्टी और वायु में मिलकर इसे प्रदूषित करते हैं। इसकी रीसाइक्लिंग और निर्माण से काफी नुकसान होता है। जर्मनी के पर्यावरण वैज्ञानिक के अनुसार यदि 50,000 पॉलीथीन बैग्स तैयार किये जाते हैं तो लगभग 17 किलो सल्फर डाइऑक्साइड गैस वायुमंडल में घुल जाती है।
प्लास्टिक जल, जमीन और जंगल तीनों को प्रभावित कर रहा है। अगर हालत ऐसे ही रहे, तो जल्द ही इस पूरे दुनिया में प्लास्टिक वाले कई द्वीप दिखाई देंगे, जिनका हमारे पास कोई इलाज नहीं होगा।