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दरियागंज बुक मार्केट: पाठकों के इस दर्द को क्‍या समझ पाएंगे 'ईबुक वाले जनाब'

जो लोग कह रहे हैं कि किंडल खरीद लें उनको शायद नहीं पता उसे खरीद के लिए कम से कम 7 से 14 हजार रुपए खर्च करना पड़ेगा। हम तो दरियागंज सस्ती किताबें खरीदने जाते थे।

By Rajat SinghEdited By: Published: Tue, 06 Aug 2019 03:54 PM (IST)Updated: Tue, 06 Aug 2019 06:51 PM (IST)
दरियागंज बुक मार्केट: पाठकों के इस दर्द को क्‍या समझ पाएंगे 'ईबुक वाले जनाब'
दरियागंज बुक मार्केट: पाठकों के इस दर्द को क्‍या समझ पाएंगे 'ईबुक वाले जनाब'

नई दिल्ली,जेएनएन। आशीष कुमार हर रविवार को दरियागंज की गलियों में कुछ अपनी पसंद की, कुछ दोस्तों के फरमाइश की किताबें खोजता। बिहार के सुपौल से आकर दिल्ली में रहने वाले आशीष के लिए दरियागंज से किताबेंं खरीदना किसी उत्सव से कम नहीं था। लेकिन अब वह सस्ती किताबें नहीं खरीद सकता है। न ही अपने दोस्तों को किताबें पढ़ा सकता है। दरियागंज के किताबों का बाजार बंद होने के बाद आशीष के चेहरे पर एक मायूसी है।

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मिलती थींं सस्ती पर अच्छी किताबें
आशीष जमिया मिल्लिया इस्लिमा में मीडिया का स्टूडेंट है। आशीष का कहना है कि दरियागंज के बुक बाजार के बंद हो जाने से अजीब सूनापन लग रहा है। इस बाजार में भले ही प्रिंट अच्छा ना मिलता हो, लेकिन किताबें काम की मिल जाती थीं। आशीष ने कहा, 'मैं अक्सर वहां साहित्य की किताबें खरीदने जाया करता था। बस से उतरिए और फुटपाथ पर किताबों का मेला। नई वाली हिंदी की किताबें नहीं मिलती थींं, लेकिन इतिहास, राजनीति, मैगजीन और पुराना साहित्य आसानी से मिल जाता था। किताबें मेरे बजट में थींं। हम जैसे कई स्टूडेंट्स के लिए एक सहारा था। मैं अपने कई दोस्तों के लिए कॉम्पटेटिव एग्जाम की किताबें भी लेकर आता था। 500 रुपए की किताबें 200 रुपए तक मिल जाती थींं। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।'

 (आशीष- जामिया स्टूडेंट)

आम पाठक वर्ग की पसंद
एक साल पहले भोपाल से दिल्ली आए तेजस ठाकुर का इस जगह से खास लगाव था। वह एक आम पाठक वर्ग की तरह अपनी पढ़ने की भूख मिटाने के लिए दरियागंज जाया करते थे। तेजस को लगता है कि यह फैसला सही नहीं है। तेजस ने कहा 'यह बाजार सिर्फ एक दिन ही लगा करता था। यहां आम पाठक वर्ग के लिए किताबों की अपनी दुनिया थी। यहां आपको एकेडमिक किताबें भले ही ना मिले, लेकिन मुझ जैसे आम पाठक के लिए कई किताबें मिल जाती थी। जब एक दिन ही यह बाजार लगाता था, ऐसे में इसे बंद करने की बात समझ में नहीं आती है। मुझे नहीं लगता है कि शायद ऐसा बाजार और कहीं हैं। अब अपने पसंद की किताबों को खोजने में मुश्किलें आएंगी।'

ऑनलाइन पढ़ने पर होता सिरदर्द
'लोग कह रहे हैं कि ऑनलाइन भी आप पढ़ सकते हैं। लेकिन ऑनलाइन पढ़ने पर एक किस्म का हैडेक होने लगता है। वहीं, जो अहसास किताब पढ़ने में है, वो शायद ऑनलाइन नहीं है।' ये बातें भी तेजस ने कहींं। वहीं आशीष का कहना है कि ऑनलाइन ईबुक कभी भी किताब का ऑप्शन नहीं बन सकती हैं। जो लोग कह रहे हैं कि किंडल खरीद लें, उनको शायद नहीं पता उसे खरीद के लिए कम से कम 7 से 14 हजार रुपए खर्च करना पड़ेगा। हम तो दरियागंज सस्ती किताबें खरीदने जाते थे।

दिल्ली उच्च न्यायलय के आदेश पर हुआ बंद
पुरानी दिल्ली के डिलाइट सिनेमा और गोलछा सिनेमा के बीच चलने वाला बाजार दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर बंद कर दिया गया। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने अदालत को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कहा था कि यह एक बहुत व्यस्त सड़क है। ऐसे में जब पुस्तक विक्रेता फुटपाथ पर कब्जा कर लेते हैं तो पैदल चलने वालों के लिए कोई जगह ही नहीं बचती है। कोर्ट के आदेश के बाद यह बाजार बंद हो गया है। ऐसे में करीब 250 दुकानदारों की रोजी-रोटी को लेकर कई सवाल खड़े हो गए। एक तरफ जहां दुकानदार परेशान हैं, तो ग्राहकोंं के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है।  

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