Move to Jagran APP

नई शिक्षा नीति में आजीविका के साथ बच्चों को मूल्य आधारित शिक्षा देने की जरूरत

शिक्षा के प्रारूप का निश्चय करते हुए यह सोचना आवश्यक है कि शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य एक सभ्य और सफल समाज का निर्माण करना भी है।

By Neel RajputEdited By: Published: Mon, 17 Jun 2019 04:16 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2019 04:16 PM (IST)
नई शिक्षा नीति में आजीविका के साथ बच्चों को मूल्य आधारित शिक्षा देने की जरूरत
नई शिक्षा नीति में आजीविका के साथ बच्चों को मूल्य आधारित शिक्षा देने की जरूरत

[रवि शर्मा]। प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर इन दिनों चर्चा तेज है। तमाम व्यावहारिक बातों के अलावा इसमें शिक्षा को रोजगार से जोड़ने की बात भी है। पर भारत जैसे संस्कृति संपन्न देश के लिए इतना ही काफी नहीं है। आजीविका के साथ मूल्यों की शिक्षा देने और बच्चों को जीवन के लिए भी तैयार करने की जरूरत है। शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने से पहले इसमें और किन-किन बातों का समावेश जरूरी है, यहां जानिए...

loksabha election banner

विभिन्न कंपनियों में सीईओ रह चुके मानव संसाधन विकास मंत्रालय और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आजकल चर्चा में है। हिंदी को लेकर विवाद के स्वर भी उठे हैं। जब कभी शिक्षा के क्षेत्र में किसी बात की समीक्षा राष्ट्रीय स्तर पर होती है तो प्रसन्नता होती है कि देश में शिक्षा को लेकर गंभीरता है, किंतु अब समय आ गया है, जब केवल समीक्षा से काम न चल सकेगा अपितु हमें शिक्षा के गिरते स्तर और समाज के गिरते हुए नैतिक मूल्यों पर भी गहन विचार करना होगा।

इन विडंबना के कारणों को ढूंढ़ना होगा, जिसके चलते वेद और पुराणों में वर्णित शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था के नैतिक मूल्यों का अपने देश में दिन-प्रतिदिन पतन हो रहा है। आजीवका बनाम जीवन: मेरा ऐसा मानना है विगत कई दशकों से शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बच्चों को अपनी आजीविका के लिए सक्षम बनाना हो गया है। यदि हम अपने वेदों और पुराणों में वर्णित शिक्षा के प्रकार पर विचार करें तो हम पाएंगे कि उनमें वर्णित शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को जीवन के लिए तैयार करना था, मात्र जीविका के लिए नहीं। और शायद यही कारण था कि ऐसी शिक्षा से उत्पन्न हुई पीढ़ी नैतिक मूल्यों से सुसज्जित समाज का निर्माण करती थी।

सभ्य समाज का निर्माण: शिक्षा के प्रारूप का निश्चय करते हुए यह सोचना आवश्यक है कि शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य एक सभ्य और सफल समाज का निर्माण करना भी है। तो क्या आज के समाज में नैतिकता के गिरते स्तर को देखते हुए यह सोचना अतिशयोक्ति होगी कि हमारी शिक्षा एक नैतिकतापूर्ण समाज को बनाने में बहुत सक्षम नहीं रही। हमने विद्यालयों को केवल विद्या का केंद्र बना दिया है, शिक्षा का नहीं।

संयुक्त परिवारों के टूटने से पारिवार के भीतर मिलने वाली शिक्षा भी बहुत प्रभावित हुई है। जो शिक्षा बच्चों को संयुक्त परिवारों के बड़ों से स्वाभाविक रूप से मिल जाया करती थी, वह आज के जीवन में आसानी से नहीं मिल पाती है, क्योंकि बहुत सारे परिवारों में माता-पिता दोनों के काम करने के कारण उनके पास समय की कमी हो गई है।

हर क्षेत्र की जानकारी: 1947 के बाद से जिस शिक्षा पद्धति को स्कूलों में लागू किया गया, वह अंग्रेजों द्वारा चलाई गई थी, जिसका बहुत बड़ा उद्देश्य अंग्रेजी राज्य में नौकरी के लिए लोगों को तैयार करना था। जबकि वेदों में वर्णित परंपरागत गुरुकुल प्रणाली में बच्चों को दस वर्षों तक 64 प्रकार की विधाओं की जानकारी दी जाती थी, जिसमें नाट्यशास्त्र से लेकर शस्त्र विद्या तक सभी विधाएं, जिनका जीवन में उपयोग होता था, सम्मिलित थीं। उसके बाद दो वर्ष बच्चों को उन विषयों की गहन जानकारी दी जाती थी, जिनमें उनकी विशेष रुचि होती थी। 13वां वर्ष विशेष अनुसंधान को समर्पित था और फिर चौदहवें वर्ष छात्र दूसरे गुरुकुलों में पढ़ाने का कार्य करता था। शिक्षा बहुआयामी भी थी और व्यावहारिक भी। परिणाम यह होता था कि जब छात्र गुरुकुल से बाहर निकलता था तो वह जीवन के किसी भी क्षेत्र से अनभिज्ञ नहीं होता था और यही कारण है कि वह एक स्वस्थ समाज का स्वस्थ हिस्सा बनता था।

व्यावहारिकता का समावेश: हालांकि वर्तमान शिक्षा पद्धति नैतिक मूल्यों की स्थापना या रक्षा करने में बहुत सफल नहीं हुई है, किंतु इस राह में हम बहुत दूर निकल आए हैं, जहां उसके मूलभूत ढांचे में परिवर्तन संभव न हो। पर प्राचीन परंपराओं से हम शिक्षा के तीन महत्वपूर्ण उद्देश्य सीख सकते हैं: नैतिकता, बहुआयामिता और व्यावहारिकता। इन तीनों उद्देश्यों का आज की शिक्षा में निवेश छात्रों और समाज के लिए बहुत दूरगामी होगा। बहुआयामी होना व्यक्ति को जीवन में किसी भी स्थिति के लिए तैयार करता है। बिना व्यावहारिक शिक्षा के स्नातकों का हाल हम सब देख ही रहे हैं, जहां बहुतायत इंजीनियर स्नातक कंपनियों द्वारा अयोग्य पाये जाते हैं, इसलिए व्यावहारिक शिक्षा पर जोर दिया जाए।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.