मनमानी नहीं है आजादी, जम्मू-कश्मीर की लड़कियों पर भद्दी टिप्पणियां, शर्मनाक!
सोशल मीडिया पर और कतिपय नेताओं द्वारा जम्मू-कश्मीर की जमीन और वहां की लड़कियों को लेकर जिस तरह की टिप्पणियां की जा रही हैं उसे एक तरह से मनमानी और स्वच्छंदता ही कहा जा सकता है।
[अरुण श्रीवास्तव]। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए का प्रावधान हटाना बेशक केंद्र सरकार का ऐतिहासिक फैसला तथा इसे सही मायने में कश्मीर का भारत के साथ एकीकरण माना जा रहा है, लेकिन सोशल मीडिया पर और कतिपय नेताओं द्वारा जम्मू-कश्मीर की जमीन और वहां की लड़कियों को लेकर जिस तरह की टिप्पणियां की जा रही हैं, उसे एक तरह से मनमानी और स्वच्छंदता ही कहा जा सकता है। आजादी का मतलब दूसरे नागरिकों के लिए असुविधा पैदा करना या उनका मखौल उड़ाना कतई नहीं है। क्यों जरूरी है सभी नागरिकों का सम्मान करते हुए मिलजुल कर देश को आगे बढ़ाना, यहां जानें-
पिछले सप्ताह जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार ने जो चिर-प्रतीक्षित और साहसिक फैसला किया, उसे लेकर पूरे देश में उत्साह और खुशी का माहौल है। उम्मीद की जा रही है कि इस फैसले के बाद यह राज्य चंद परिवारों की सियासत से मुक्त होकर आने वाले दिनों में विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सकेगा। इससे वे लोग और कथित सियासतदां बेशक दुखी और बौखलाए हुए हैं, जो अपनी सियासत की रोटी वहां के लोगों को बहला-फुसला कर लगातार सेंक रहे थे। केंद्र सरकार और हमारे प्रधानमंत्री बार-बार कह रहे हैं कि उक्त अनुच्छेद के हटने के बाद आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर निवेश आमंत्रित किया जाएगा, जिससे वहां रोजगार और पर्यटन को बढ़ावा मिल सके और सही मायने में राज्य में खुशहाली आ सके।
जम्मू-कश्मीर के लोग भी निश्चित रूप से यही चाहेंगे कि वे खुशहाली के माहौल में जी सकें और उनके बच्चे बेहतर करियर की दिशा में आगे बढ़ सकें। हालांकि इस बीच कतिपय लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में इस फैसले को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने की आजादी मिलने और वहां की लड़कियों से शादी करने से जोड़ना उनकी स्वेच्छाचारिता की ओर भी संकेत करता है। इस तरह की प्रवृत्ति भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लोगों के लिए कतई शोभा नहीं देता। कतिपय राजनेताओं द्वारा भी इस तरह की टिप्पणियां करना कम शर्मनाक नहीं। इसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम ही होगा। ऐसे स्वेच्छाचारी प्रवृत्ति के लोगों को सरकार और समाज के स्तर पर हर तरह से प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है।
सबका साथ, सबका विश्वास
यह सही है कि सोशल मीडिया के रूप में अपनी बात और विचार रखने का एक बेहतर मंच मिल गया है, लेकिन कोई रोक-टोक न होने के कारण कुछ लोगों को यह भी लगता है कि आजाद देश का नागरिक होने के कारण उन्हें कुछ भी कहने-करने की आजादी मिल गई है। ऐसा हरगिज नहीं है। स्वतंत्रता का मतलब यह कतई नहीं है कि हम दूसरों की आजादी में खलल डालें या उनके लिए किसी तरह की असुविधा उत्पन्न करें।
किसी एक व्यक्ति, समूह या वर्ग द्वारा कोई भी ऐसा काम नहीं किया जाना चाहिए, जिससे दूसरे व्यक्ति, समूह या वर्ग में अविश्वास का माहौल पैदा हो। इसकी बजाय हमें हर किसी का विश्वास जीतने के साथ उन्हें साथ लेकर समाज-देश को मजबूती व तरक्की की ओर बढ़ाने का सतत प्रयास करना चाहिए।
हमारी आजादी को अभी महज 72 साल ही हुए हैं और हमें अभी सबके सहयोग से देश को काफी आगे ले जाना है। दुनिया में अलग पहचान बनानी है। विज्ञान, आविष्कार, इनोवेशन, खेल, अर्थव्यवस्था, औद्योगिक विकास, कृषि, रोजगार, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि के मोर्चे पर काफी सफर तय करना है। ऐसे में सभी नागरिकों का यह फर्ज बनता है कि वे एक-दूसरे को मजबूत करने और आगे बढ़ाने में भरपूर सहयोग करें। यह सामंजस्य और भाई-चारे के माहौल में ही हो सकता है।
समझें अपनी जिम्मेदारी
हमारी सांस्कृतिक परंपरा सौहार्द की रही है। हम सदा से ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना में विश्वास करते रहे हैं। ऐसे में अपनी परंपरा और पूर्वजों से प्रेरणा लेते हुए इस सौहार्द को आगे भी सतत बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है किसी के उकसाने पर या क्षणिक आवेश-उत्तेजना या अति-आत्मविश्वास में हमें अपने विवेक को ताक पर रखकर सोशल मीडिया पर अनापशनाप टिप्पणियां करने से पूर्णतया परहेज करना चाहिए। इसकी बजाय सोशल मीडिया का इस्तेमाल खुद को प्रेरित और प्रोत्साहित करने के साथ-साथ समाज और देश को आगे बढ़ाने में करें।
आजादी है अनमोल
करीब दो सौ साल की गुलामी और अंग्रेजी हुकूमत के बाद हमारे देश को आजादी मिली थी। लेकिन यह आजादी अंग्रेजों ने हमें तोहफे में कतई नहीं दी थी। इसके लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। हजारों लोगों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। हमारे तमाम स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन का एकमात्र लक्ष्य ही था देश को किसी भी कीमत पर आजादी दिलाना।
महात्मा गांधी ने सब कुछ त्यागकर नि:स्वार्थ भाव से देश की आजादी को ही अपना धर्म मान लिया था। सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों ने इसके लिए घर-बार, जीवन सब दांव पर लगा दिया। हम कभी भी इन सभी के योगदान को भुला नहीं सकते। इनका जीवन और व्यक्तित्व हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है।
सिखाएं संस्कार
हमें नई पीढ़ी को अपनी आजादी की कहानी से सुपरिचित कराते हुए उन्हें अपनी संस्कृति के अनुसार संस्कारित करने की भी जरूरत है, ताकि विकास की दौड़ में आगे बढ़ते हुए वे अपने मूल्यों-संस्कारों का भी पूरी तरह ध्यान रखें। बेशक आज विज्ञान और तकनीक की बदौलत हमें दुनिया के किसी भी कोने में घटित होने वाली घटना की जानकारी पलक झपकते ही मिल जाती है।
हम अपने स्मार्टफोन के जरिए पृथ्वी पर कहीं भी किसी से बात कर सकते हैं या उसे देख सकते हैं। सोशल मीडिया ने हमें संचार का सशक्त माध्यम प्रदान किया है। पर इसका मतलब यह कतई नहीं कि हम इसका दुरुपयोग करें। इन माध्यमों का बेहतर इस्तेमाल करने की जरूरत है। अगर हम नई पीढ़ी में संस्कार भरेंगे, तो वे खुद-ब-खुद इन माध्यमों का सकारात्मक उपयोग जान और समझ सकेंगे।
इनोवेशन की करें पहल
जब तकनीक की बदौलत हमें बहुत कुछ सीखने-जानने की सुविधा मिल गई है, तो ऐसे में खुद को स्किल्ड बनाने और इनोवेशन की दिशा में पहल करने के बारे में भी लगातार सोचना चाहिए। हमें सिर्फ दूसरों द्वारा विकसित तकनीकों की सेवाएं लेकर ही खुश नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि हमें इससे प्रेरणा लेते खुद भी अपनी उत्सुकता-जिज्ञासा को बढ़ाते हुए ऐसे इनोवेशन पर ध्यान देना चाहिए, जो हमारे देश के लोगों के जीवन की मुश्किलों को कम करने में सहयोगी हो सके। कृषि से लेकर चिकित्सातक के क्षेत्र में अभी हमें बहुत सारे इनोवेशन की जरूरत है।
उम्मीद है कि हमारी नई पीढ़ी अपनी आजादी के मोल को समझते हुए सोशल मीडिया पर वक्त जाया करने की बजाय इसका इस्तेमाल कुछ सार्थक और सकारात्मक करने की दिशा में आगे बढ़ेगी। ऐसा करके ही हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का कुछ ऋण चुका सकेंगे।
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