उच्च शिक्षा में कितनी आगे बढ़ रही है दिल्ली, जानें लोगों की राय
दिल्ली विधानसभा चुनावों में एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए राजनीतिक दल पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। वहीं जनता भी विभिन्न मुद्दों पर प्रत्याशियों से सवाल-जवाब कर रहे हैं।
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। दिल्ली विधानसभा चुनावों में एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए राजनीतिक दल पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। वहीं जनता भी विभिन्न मुद्दों पर प्रत्याशियों से सवाल-जवाब कर रहे हैं। उच्च शिक्षा में सुधार का मसला भी खूब उछल रहा है। राजनीतिक दल भी बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। हालांकि, एक बात तो साफ है कि दिल्ली की जनता यह चाहती है कि दिल्ली उच्च शिक्षा में भी अगुआ बने। न केवल नए नए कॉलेज खोले जाएं बल्कि पढ़ाई की गुणवत्ता भी सुधारी जाए ताकि देश का भविष्य बेहतर हो। ऐसी तो आइये जनता है जनता की राय।
प्रोफेसर हंसराज सुमन का कहना है कि दिल्ली में उच्च शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए गंभीरता से प्रयास करने होंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम पांच कॉलेज खोलने की जरूरत है। इनमें से दो महिलाओं के लिए खोलने चाहिए। इन्हें डीयू से संबंद्ध करना चाहिए। एक और बड़ा मसला, जो सामने आता है कि बहुत से छात्रों के माता-पिता बहुत गरीब होते हैं। छात्र इस वजह से उच्च शिक्षा में दाखिला नहीं पाते हैं। सरकार को चाहिए कि तीन लाख रुपये से कम आय वाले अभिभावक के बच्चों को नि:शुल्क दाखिला दिलाए। मेरा यह भी मानना है कि दिल्ली में ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए, जहां रोजगारपरक पढ़ाई हो। छात्रों के लिए नए अवसर खुल सके।
अधिवक्ता सूरज सिंह का कहना है कि भारत विश्व गुरु बन सकता है, लेकिन उसके लिए उच्च शिक्षा की स्थिति और सुधारने की जरूरत है। दुनिया के विकसित देशों के विकास में बड़ा हाथ उच्च शिक्षा की उचित गुणवत्ता की है। हमारे यहां रट्टा मारने की प्रवृति है, जबकि उनके यहां तार्किक शक्ति विकसित की जाती है। मेरा यह मानना है कि चुनाव के बाद सरकार कोई भी बनाए, लेकिन उसे उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने, क्रिएटिव कंटेट, छात्रों के अंदर तार्किक भावना का विकास करने पर ध्यान देना चाहिए। भारतीयों का दिमाग बहुत तेज चलता है। आप देखिए, माइक्रोसाफ्ट हो या फिर गूगल, फेसबुक। हर जगह भारतीय अपने दिमाग का लोहा मनवा
रहे हैं।
अधिवक्ता दिल्ली अमित साहनी में नए कॉलेज खुलने चाहिए। दिल्ली के कॉलेजों में बहुत से पद खाली हैं। इन पदों को तत्काल भरने की आवश्यकता है, क्योंकि पद भरे होने के बाद ही उच्च शिक्षा की राह आसान बनेगी। यदि कॉलेज में कोई पढ़ाने वाला ही नहीं होगा तो कॉलेज का क्या फायदा? अनुबंध पर शिक्षकों की भर्ती नहीं होनी चाहिए। अनुबंध शिक्षकों को नियमित करना चाहिए। बहुत से निजी कॉलेजों में अनुबंध शिक्षकों को बहुत कम मानदेय मिलता है, इस पर नकेल कसने की जरूरत है। यह शोषण है। बेरोजगारी की वजह से लोग थोड़े पैसों में भी पढ़ाने को तैयार हो जाते हैं। इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।
उद्यमी के श्रीनिवासन ने कहा कि दिल्ली में जिस तरह से आबादी बढ़ी है, उसके अनुपात में शिक्षण संस्थानों की व्यवस्था होनी चाहिए। दिल्ली के स्कूलों में दाखिला लेना जंग से कम नहीं है। वहीं उच्च शिक्षणसंस्थानों में दाखिले से लेकर गुणवत्ता तक का पुनर्मूल्यांकन होना चाहिए। सरकार किसी की भी बने, लेकिन यह मामला बेहतर भविष्य से जुड़ा है और इसे लेकर किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। उच्चस्तरीय कमेटी बनाकर रिसर्च करनी चाहिए कि आखिर नए दौर में किस तरह की शिक्षा की आवश्यकता है और क्या पढ़ाई का पैटर्न होना चाहिए। कमेटी जो रिपोर्ट दे, उसके आधार पर उच्च शिक्षा के लिए नीतियां बनाई जानी चाहिए और उन्हें गंभीरता से लागू करके व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिए।