नाकामी से नहीं डिगा विश्वास और सिर्फ 24 साल की उम्र में कर दिखाया ये कारनामा
मैं अलवर से हूं। जयपुर के एलएनएमआइआइटी से बीटेक किया है। टेक्नोलॉजी का पैशन था तो पढ़ाई करते हुए इनोवेशंस करता रहता।
नई दिल्ली [अंशु सिंह]। जयपुर के 24 वर्षीय कर्मेश गुप्ता का बिजनेस मॉडल दो बार नाकाम रहा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और न ही अपना निश्चय डिगने दिया। उन्होंने तीसरी बार कोशिश की और सफल रहे। आज इनकी कंपनी ‘वाईजंगल’ साइबर सिक्योरिटी स्पेस में तेजी से अपनी पहचान बना रही है। कंपनी के सह-संस्थापक एवं सीईओ कर्मेश मानते हैं कि हम जितना खुद को साबित कर दिखाते हैं, उसी से कस्टमर्स का विश्वास हमारे ऊपर बढ़ता जाता है। सक्सेस का मतलब भी यही है कि हम जो काम करें, उसमें डूब जाएं। युवाओं से यही कहना चाहता हूं कि अपने पर यह भरोसा रखें कि कुछ भी नामुमकिन नहीं।
मैं अलवर से हूं। जयपुर के एलएनएमआइआइटी से बीटेक किया है। टेक्नोलॉजी का पैशन था, तो पढ़ाई करते हुए इनोवेशंस करता रहता। साइबर सिक्योरिटी में रुचि रही है, इसलिए एथिकल हैकिंग में भी सर्टिफिकेशन किया है। छोटे समय के लिए लुसिडीयस कंपनी के साथ एनालिस्ट एवं वेब डेवलपर के तौर पर काम करने का अच्छा अनुभव रहा है। इसके सीईओ कॉलेज में मेरे सीनियर थे। उनसे काफी सीखने को मिला। उनसे प्रेरणा लेकर ही मैंने खुद का कुछ करने के बारे में सोचा। 2014 में भाई प्रवीण गुप्ता के साथ मिलकर मैंने ‘एचटीटीपी कार्ट टेक्नोलॉजी’ नाम से कंपनी लॉन्च की और एक साल के अंदर अप्रैल 2015 में हम जयपुर के गौरव टॉवर में फ्री वाई फाई सेवा देने वाले ‘वाईजंगल’ को शुरू करने में कामयाब रहे।
हम देश की पहली निजी कंपनी थे, जिसने अनलिमिटेड टाइम के लिए मुफ्त में लोगों को वाईफाई सेवा दी थी। हाइपर लोकल एडवर्टिजमेंट से रेवेन्यू जेनरेट होता था। लेकिन यह मॉडल कामयाब नहीं हो सका। वित्तीय मसलों व कुछ अन्य कारणों से हमें इसे जल्द ही बंद करना पड़ा। 2016 में हमने दोबारा से प्रोडक्ट स्पेस में कमबैक किया और एक सोशल वाईफाई प्रोडक्ट लॉन्च किया। लेकिन तब टेलीकॉम क्षेत्र में आई क्रांति के कारण यह मॉडल भी नाकाम रहा।
गलतियों से लिया सबक
हमारे पास कुछ करने का पैशन बहुत था, लेकिन अप्रोच सही नहीं रहा। कोई मेंटर भी नहीं था, जो बता सके कि अमुक फैसला सही है और अमुक गलत। शुरुआती पांच-छह महीने में जो प्रगति हुई, उसे देखकर लगा कि सही रास्ते पर जा रहे हैं। हालांकि, बैकएंड में बिजनेस मॉडल की सस्टेनिबिलिटी को लेकर सही समझ नहीं बन पाने से नुकसान उठाना पड़ा।
इस तरह दो बिजनेस बंद हो चुके थे। लेकिन हम मन से नहीं हारे थे। हमने देश-विदेश की अलग-अलग कंपनियों में नौकरी की। वहां से सीखा, मार्केट की स्टडी की और पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए 2017 में तीसरी बार ‘वाईजंगल’ के बैनर तले ही ‘यूनिफाइड नेटवर्क सिक्योरिटी गेटवे’ लॉन्च किया, जो काफी सफल रहा। लेमन ट्री, रिलायंस हेल्थकेयर, मेफेयर होटल्स जैसी निजी कंपनियों के अलावा स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया, फुटवियर डिजाइन एवं डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट जैसी कई सरकारी कंपनियां, एफएमसीजी, हॉस्पिटैलिटी कंपनियां हमारी क्लाइंट हैं।
इनोवेशन लाया रंग
दरअसल, मैंने महसूस किया कि साइबर सिक्योरिटी स्पेस में अभी ज्यादा इनोवेशन नहीं हो रहे हैं। कैसे आज भी कंपनियां फायरवॉल जैसे कुछेक गिनती के सिक्योरिटी प्रोडक्ट्स पर निर्भर हैं। उन्हीं से वे ऑफिस के अंदर मौजूद एसेट्स (नेटवर्क) की सिक्योरिटी करती हैं, जबकि मोबाइल-इंटरनेट क्रांति और क्लाउड टेक्नोलॉजी के विकास से यह एसेट अब कई गुना बढ़ चुका है और इनकी सिक्योरिटी अहम हो गई हैं। ऐसे में हमारा यूनिफाइड नेटवर्क सिक्योरिटी गेटवे एक सिंगल विंडो की तरह काम करता है, जो लैन के अंतर्गत आने वाले हर प्रकार के एसेट को सिक्योर कर सकता है। इससे कंपनियों का खर्च भी 60 प्रतिशत तक कम हो गया है।
भरोसे से बढ़ रहे हैं आगे
मैं यही मानता हूं कि आप कारोबार में किसी से जबर्दस्ती नहीं कर सकते। हमें लोगों को कनविंस करना पड़ता है, वह भी एक लेवल पर आने के बाद। जैसे अभी हम एक बूटस्ट्रैप्ड कंपनी ही हैं। 11 लाख रुपये का शुरुआती निवेश रहा है, जो दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद से इकट्ठा किया था। अभी जो भी क्लाइंट्स से मिलता है, उसे ही दोबारा बिजनेस में लगाता हूं। लेकिन हम सस्टेन कर पा रहे हैं, क्योंकि क्लाइंट्स को हम पर भरोसा है। अभी हमारी 45 लोगों की टीम है। आने वाले समय में कंपनी को विस्तार देने की योजना है, जिसके लिए मुमकिन है कि फंडिंग राउंड में जाना पड़े। इसके अलावा, कंपनी के बेस को जयपुर से दिल्ली शिफ्ट करने का इरादा भी है। जयपुर में बेशक हमें अच्छे लोग मिले हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी सेक्टर स्टार्टअप के ग्रोथ के लिए जरूरी इकोसिस्टम अभी यहां डेवलप नहीं हो सका है।