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टूटी उम्मीद, साख भी गिरी

नई दिल्ली। मुश्किल हालातो से जूझ रही अर्थव्यवस्था मे जान फूंकने की एक कोशिश मे सोमवार को भारतीय रिजर्व बैक ने अपनी तिमाही मौद्रिक नीति की समीक्षा की। लेकिन आरबीआई ने उम्मीदो से विपरीत रेपो रेट और सीआरआर मे किसी तरह की कोई कटौती नही की है। इस फैसले से उन लोगो को जरूर ठेस पहुंची है जो ब्याज दर मे क

By Edited By: Published: Tue, 19 Jun 2012 03:10 AM (IST)Updated: Tue, 19 Jun 2012 03:29 AM (IST)
टूटी उम्मीद, साख भी गिरी

नई दिल्ली। मुश्किल हालातों से जूझ रही अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की एक कोशिश में सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी तिमाही मौद्रिक नीति की समीक्षा की। लेकिन आरबीआई ने उम्मीदों से विपरीत रेपो रेट और सीआरआर में किसी तरह की कोई कटौती नहीं की है। इस फैसले से उन लोगों को जरूर ठेस पहुंची है जो ब्याज दर में कटौती की आस लगाए हुए थे। इससे पहले आरबीआई गवर्नर और वित्त मंत्री ने भी रेपो रेट और सीआरआर में कटौती करने के संकेत दिए थे।

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देश की विकास दर नौ साल में पहली बार न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। औद्योगिक उत्पादन में भी तेज गिरावट ने अर्थव्यवस्था को निराश किया है। इन आंकड़ों के आने के बाद से ही सरकार विकास की रफ्तार बढ़ाने के उपायों पर जोर दे रही है। उद्योगों से लेकर सरकार तक रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में कटौती के उपाय करने की अपेक्षा की जा रही थी।

हालांकि, महंगाई के आंकड़ों ने रिजर्व बैंक की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ा दी है। पिछले दो महीने से महंगाई की दर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। खासतौर पर खाद्य उत्पादों की महंगाई ने ब्याज दरों में कटौती के रिजर्व बैंक के विकल्प को काफी मुश्किल कर दिया था।

लेकिन सूत्रों के मुताबिक सरकार ने केंद्रीय बैंक को यह संकेत दे दिए हैं कि फिलहाल महंगाई से ज्यादा सुस्त होती आर्थिक विकास की रफ्तार महत्वपूर्ण है। शनिवार को वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने भी उम्मीद जाहिर की थी कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति समायोजित कर उद्योगों को राहत देगा। लेकिन सोमवार को आरबीआई ने इससे उलट फैसला लेते हुए रेपो रेट को छुआ तक नहीं। रेपो की मौजूदा दर आठ प्रतिशत है।

जानकार मान रहे थे कि उद्योगों को कर्ज उपलब्ध कराने के लिए आरबीआई बैंकिंग सिस्टम में नकदी बढ़ाने के उपाय भी कर सकता है। वैसे इस साल रिजर्व बैंक पहले ही सीआरआर में सवा फीसद की कमी कर चुका है।

फिच ने देश के आर्थिक परिदृश्य को घटाकर 'नकारात्मक' किया

नई दिल्ली। वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने सोमवार को भारत के आर्थिक परिदृश्य को स्थिर से घटाकर 'नकारात्मक' कर दिया और कहा कि यदि देश की शासन व्यवस्था और नीति निर्माण में सुधार नहीं हुआ तो देश के विकास का परिदृश्य खराब हो सकता है।

फिच ने कहा कि परिदृश्य में संशोधन किए जाने का मतलब यह है कि यदि संरचनागत सुधार नहीं किए गए तो मध्यकालीन से दीर्घकालीन विकास की सम्भावना धीरे-धीरे खराब हो सकती है।

फिच ने अपने बयान में कहा कि भारत को सुस्त विकास और उच्च महंगाई दर की विचित्र स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

फिच की रेटिंग संशोधन पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि फिच ने देश में हाल में हुए संरचनागत सुधारों पर ध्यान नहीं दिया।

मुखर्जी ने एक बयान में कहा कि आर्थिक विकास और महंगाई के दबाव पर फिच की चिंता पुराने आंकड़ों पर आधारित है। सरकार ने इन चिंता पर पहले ही कदम उठा लिया है।

उल्लेखनीय है कि एक सप्ताह पहले एक अन्य रेटिंग एजेंसी स्टैडर्ड एंड पुअर्स ने कहा था कि भारत निवेश श्रेणी दर्जा खोने वाला ब्रिक्स का पहला देश हो सकता है।

मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने फॉरेन कॉरेसपोंडेट्स क्लब में संवाददाताओं को सम्बोधित करते हुए फिच द्वारा रेटिंग घटाए जाने को भेड़ चाल बताया।

फिच ने मौजूदा कारोबारी साल में 6.5 फीसदी आर्थिक विकास दर का अनुमान जताया, जो पहले जताए गए अनुमान 7.5 फीसदी से कम है।

रेटिंग एजेंसी ने साथ ही 2012-13 में महंगाई दर 7.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया, जो पहले जताए अनुमान से अधिक है।

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