तेल कंपनियों को मिलेगी और सब्सिडी
सरकार ने तेल विपणन कंपनियो के नुकसान की भरपाई के लिए अतिरिक्त नगद पेट्रो सब्सिडी देने का फैसला किया है। वित्ता वर्ष 2011-12 की जनवरी-मार्च तिमाही के लिए इन्हे 38,500 करोड़ मिलेगे। वित्ता मंत्रालय ने इसकी मंजूरी दे दी है। पहले नौ महीनो मे सार्वजनिक क्षेत्र की तीनो तेल कंपनियो [इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम] को 45 हजार करोड़ रुपये नगद दिए जा चुके है।
नई दिल्ली। सरकार ने तेल विपणन कंपनियों के नुकसान की भरपाई के लिए अतिरिक्त नगद पेट्रो सब्सिडी देने का फैसला किया है। वित्त वर्ष 2011-12 की जनवरी-मार्च तिमाही के लिए इन्हें 38,500 करोड़ मिलेंगे। वित्त मंत्रालय ने इसकी मंजूरी दे दी है। पहले नौ महीनों में सार्वजनिक क्षेत्र की तीनों तेल कंपनियों [इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम] को 45 हजार करोड़ रुपये नगद दिए जा चुके हैं।
तेल कंपनियां डीजल, रसोई गैस और केरोसीन की लागत से कम मूल्य पर बिक्री करती हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत आसमान छू रही है, मगर सरकारी नियंत्रण के चलते घरेलू बाजार में इसके मुकाबले दाम कम है। इस वजह से कंपनियों को पिछले वित्त वर्ष में कुल 1,38,541 करोड़ रुपये का नुकसान [अंडर रिकवरी] हुआ है। इसमें से 60 फीसद [83,500 करोड़] हिस्से की भरपाई सरकार ने कर दी है। वहीं इस नुकसान के एक तिहाई हिस्से का बोझ ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और गेल जैसी अपस्ट्रीम तेल उत्पादक कंपनियां उठाती हैं। मगर इस बार ज्यादा अंडर रिकवरी की वजह से ये उत्पादक कंपनियां 39.7 फीसद नुकसान की भरपाई कर रही हैं।
इन कंपनियों को अपने योगदान के रूप में 1,640 करोड़ रुपये और देने को कहा गया है। इससे पहले इन कंपनियों को 53,360 करोड़ रुपये के नुकसान की भरपाई के लिए कहा गया था। अपस्ट्रीम कंपनियों ने अप्रैल-दिसंबर, 2011 के दौरान ईधन सब्सिडी में 36,894 करोड़ रुपये का योगदान कर दिया है। चौथी तिमाही में इन्हें 18,106 करोड़ रुपये और देने हैं। वर्ष 2010-11 में इन कंपनियों ने 36.75 फीसद नुकसान की भरपाई की थी।
तेल कंपनियों को पिछले वित्त वर्ष में पेट्रोल की बिक्री पर भी 4,890 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। जून, 2010 में ही पेट्रोल के दाम नियंत्रणमुक्त कर दिए गए थे, लेकिन राजनीतिक वजह से इसके दाम बढ़ाने की मंजूरी सरकार नहीं दे रही है। नकद सब्सिडी मिलने में देरी के चलते तेल कंपनियों को उधार लेकर काम चलाना पड़ा। इस पर उन्हें 4,800 करोड़ रुपये का ब्याज चुकाना पड़ा। वित्त मंत्रालय से इन दोनों मामलों में कंपनियों को कोई मदद नहीं मिली।
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