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सरकारी सुस्ती से टूटा इंडिया इंक का धीरज

बीते वित्त वर्ष 2011-12 की अंतिम तिमाही मे आर्थिक विकास दर के गोता लगाने के बाद जैसे इंडिया इंक का धैर्य जबाव दे गया है। उद्योग जगत ने बेहद तीखे शब्दों मे संप्रग सरकार की नीतियों को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है। आम तौर पर सरकार की आर्थिक नीति पर काफी सोच-समझकर बोलने वाले उद्योग चैबर एक स्वर मे केद्र सरकार की आर्थिक नीतियों की बखिया उधेड़ने लगे है। उद्योग जगत ने मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता को खतरनाक मानते हुए केद्र से तत्काल नए सिरे से आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू करने की अपील की है।

By Edited By: Published: Fri, 01 Jun 2012 09:31 AM (IST)Updated: Fri, 01 Jun 2012 11:10 PM (IST)
सरकारी सुस्ती से टूटा इंडिया इंक का धीरज

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। बीते वित्त वर्ष 2011-12 की अंतिम तिमाही में आर्थिक विकास दर के गोता लगाने के बाद जैसे इंडिया इंक का धैर्य जबाव दे गया है। उद्योग जगत ने बेहद तीखे शब्दों में संप्रग सरकार की नीतियों को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है। आम तौर पर सरकार की आर्थिक नीति पर काफी सोच-समझकर बोलने वाले उद्योग चैंबर एक स्वर में केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों की बखिया उधेड़ने लगे हैं। उद्योग जगत ने मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता को खतरनाक मानते हुए केंद्र से तत्काल नए सिरे से आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू करने की अपील की है।

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उद्योग चैंबर फिक्की के महासचिव राजीव कुमार सरकार के तर्क से सहमत नहीं हैं कि इस वर्ष आर्थिक विकास दर पटरी पर आ जाएगी। उनका कहना है कि सरकार की तरफ से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अगले कुछ हफ्तों के भीतर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान हालात काफी खराब हो सकते हैं। पिछले वित्त वर्ष के दौरान साढ़े छह फीसद की विकास दर सिर्फ सेवा क्षेत्र की बदौलत हासिल हुई है। लेकिन जिस तरह से कृषि, मैन्यूफैक्चरिंग की हालात खराब हो रही है, उसे देखते हुए सेवा क्षेत्र भी दम तोड़ सकता है। सबसे दुखद बात यह है कि सरकार स्थिति की गंभीरता नहीं समझ रही। खासकर निजी क्षेत्र पर जिस तरह से लगाम लगाई जा रही है, उसके मद्देनजर ऐसा लगता है कि वह सब कुछ वर्ष 1991 से पहले की स्थिति में ले जा रही है।

देश के सबसे बड़े उद्योग चैंबर सीआइआइ के अध्यक्ष आदि गोदरेज ने आर्थिक बदहाली के लिए सीधे तौर पर सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि जब कई वर्षो तक गंभीर आर्थिक सुधार नहीं होंगे, तब तक नतीजे ऐसे ही होंगे। 'सरकार जिस तरह से आर्थिक मुद्दों को लटका रही है, उससे हम काफी निराश हैं। किसी भी मुद्दे को तेजी से नहीं सुलझाया गया। अगर वस्तु व सेवा कर [जीएसटी] की अड़चनों को दूर कर दिया गया होता तो अर्थव्यवस्था को बल मिलता।' गोदरेज ने राजनीतिक अड़चनों की वजह से आर्थिक सुधार नहीं होने को विकास दर के लिए खतरनाक करार दिया। सीआइआइ ने कहा है कि अब राजनीतिक मतभेद दूर करने का समय है।

सीआइआइ के सुझाव

1. रेपो रेट व सीआरआर में एक-एक फीसद की कटौती

2. लंबित 50 बड़ी और महत्वपूर्ण परियोजनाओं को एक महीने के भीतर सभी मंजूरियां दी जाएं

3. कर बकाये के लंबित मामलों को जल्दी निबटाया जाए, 50 हजार करोड़ रुपये का मिल सकता है राजस्व

4. रिटेल, रक्षा और नागरिक विमानन में एफडीआइ को मंजूरी देकर बड़े संकेत दिए जाएं

5. सभी निर्यातकों को दो फीसद की अतिरिक्त ब्याज सब्सिडी मिले

6. कृषि में निवेश बढ़ाने के लिए ठोस उपायों की तत्काल घोषणा और अमल

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