दक्षिणी ध्रुव जाने को मजबूर हुए अंग्रेज
कभी समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज आज बदहाल हैं। आर्थिक तंगी और बेरोजगारी ने उनको तोड़कर रख दिया है। इतना कि वे बारहों महीने बर्फ से ढके रहने वाले दक्षिणी ध्रुव पर भी काम करने को तैयार हैं। आप सोचें कि इन्हें यहां कोई नवाबी नौकरी की तलाश है, तो ऐसा भी नहीं है। ये बिजली मिस्त्री, रसोइया, बढ़ई कुछ भी बनने को मजबूर हैं।
लंदन। कभी समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज आज बदहाल हैं। आर्थिक तंगी और बेरोजगारी ने उनको तोड़कर रख दिया है। इतना कि वे बारहों महीने बर्फ से ढके रहने वाले दक्षिणी ध्रुव पर भी काम करने को तैयार हैं। आप सोचें कि इन्हें यहां कोई नवाबी नौकरी की तलाश है, तो ऐसा भी नहीं है। ये बिजली मिस्त्री, रसोइया, बढ़ई कुछ भी बनने को मजबूर हैं।
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे [बीएएस] ने दुनिया के अंतिम छोर में काम करने के लिए 36 नौकरियां निकाली हैं। मुख्य रूप से इनमें प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, शेफ और कारपेंटर की जगहें हैं। बीएएस के नियोक्ताओं को अब तक 3 हजार आवेदन मिल चुके हैं। सफल उम्मीदवारों की नियुक्ति धु्रवीय क्षेत्र में ब्रिटेन के पांच कार्यालयों में से एक में होगी। इन्हें यहां पांच माह तक लगातार अंधकार और शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे तापमान पर काम करना होगा। ब्रिटिश अखबार डेली एक्सप्रेस की खबर में कहा गया है कि कर्मचारियों को मूल वेतन के तौर पर सालाना 23 हजार 700 पौंड [करीब 18 लाख रुपये] मिलेंगे। साथ ही दस फीसदी बोनस मिलेगा। उनके रहने, खाने और कपड़ों का भी बंदोबस्त किया जाएगा।
पहले यहां काम करने के लिए बड़ी मुश्किल से ब्रिटेनवासी तैयार होते थे। अब एक अनार के पीछे हजार बीमार क्यों हैं, इसकी वजह खुद बीएएस के अफसर जेम्स मिलर से पूछ लीजिए। मिलर के मुताबिक, 'यह आर्थिक मंदी का असर है जिसकी वजह से हमारे दफ्तरों में इतने ज्यादा आवेदन आ रहे हैं।'
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