Move to Jagran APP

एयर इंडिया चुकाएगी 494 करोड़ का बकाया

पिछले पांच महीने से आर्थिक मंदी से जूझ रही विमानन कंपनी एयर इंडिया की मुश्किले तो खत्म होने का नाम ही नही ले रही है। एक तरफ जहां पायलटों की हड़ताल अब तक जारी हैं, वही कंपनी पर 494 करोड़ रुपये की बकाया राशि है। पायलटों की हड़ताल से कंपनी को अब तक 200 करोड़ का नुकसान हो गया है।

By Edited By: Published: Mon, 21 May 2012 08:28 AM (IST)Updated: Mon, 21 May 2012 08:28 AM (IST)
एयर इंडिया चुकाएगी 494 करोड़ का बकाया

नई दिल्ली। पिछले पांच महीने से आर्थिक मंदी से जूझ रही विमानन कंपनी एयर इंडिया की मुश्किलें तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। एक तरफ जहां पायलटों की हड़ताल अब तक जारी हैं, वहीं कंपनी पर 494 करोड़ रुपये की बकाया राशि है। पायलटों की हड़ताल से कंपनी को अब तक 200 करोड़ का नुकसान हो गया है।

loksabha election banner

गौरतलब है कि पांच महीने पहले ही सरकार के कर विभाग ने कंपनी के सभी खाते बंद कर दिये थे। कंपनी ने आश्वासन दिया है कि सरकार से पूंजी मिलते ही वह कर व राजस्व विभाग को 395 करोड़ रुपये का सर्विस टैक्स चुका देगी।

दूसरी ओर पिछले 12 दिनों से हड़ताल कर रहे एयर इंडिया के पायलटों और प्रबंधन के बीच अब तक गतिरोध बना हुआ है। पायलटों की इस हड़ताल से एयर इंडिया को अब तक 200 करोड़ रुपये की चपत लग चुकी है।

वहीं एयर इंडिया ने यात्रियों को परेशानी से बचाने के लिए स्पेशल स्कीम शुरू की है। जिसके तहत यात्री 22 मई तक बिना अतिरिक्त शुल्क दिए यात्रा की तारीख में बदलाव कर सकते हैं या फिर अपने टिकट रद्द करा सकते हैं।

हड़ताली पायलटों को लेकर एयर इंडिया प्रबंधन ने कड़ा रुख अख्तियार कर रखा है। सूत्रों का कहना है कि एयर इंडिया पायलट यूनियन आईपीजी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई कर सकती है। क्योंकि हाई कोर्ट के हड़ताल को अवैध करार देने के बावजूद पायलट अब तक काम पर नहीं लोटै हैं।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.