स्वाधीनता संग्राम में शिवहर ने भी दिया था बड़ा बलिदान, बिहार में भी हुई थी जलियांवाला बाग जैसी घटना
Azadi Ka Amrit Mohatsav आजादी की लड़ाई में 80 से अधिक स्वतंत्रता सेनानी हुए थे बलिदान। यहां के स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी से बहुत अधिक प्रभावित हुए थे। छुप-छुपकर तैयार करते थे आंदोलन की रणनीति। शिवहर थाने पर आंदोलनकारियों ने लहरा दिया था तिरंगा।
शिवहर, [नीरज]। Azadi Ka Amrit Mohatsav: बिहार का शिवहर जिला भी स्वाधीनता संग्राम का केंद्र रहा। हजारों लोग आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। हजारों गिरफ्तारियां हुईं। सैकड़ों लोगों को शिवहर छोडऩा पड़ा। 80 लोग देश के लिए बलिदान हुए थे। यहां भी जलियांवाला बाग जैसी घटना हुई थी। तब यह जिला मुजफ्फरपुर का एक अनुमंडल था। छोटा इलाका होने के बावजूद शिवहर ने स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी कुर्बानी दी।
छुप-छुपकर तैयार करते थे आंदोलन की रणनीति
वर्ष 1917 में गांधीजी के चंपारण पहुंचने के बाद इलाके में स्वतंत्रता संग्राम ने रफ्तार पकड़ी थी। क्रांतिकारी अंग्रेजों से छिपकर बैठकों का आयोजन कर आंदोलन की रणनीति तय करने लगे थे। इस क्रम में 28 फरवरी, 1932 को शिवहर थाने पर तिरंगा फहराने के जुर्म में अंग्रेज सिपाहियों की फायरिंग में पांच स्वतंत्रता सेनानी बलिदान हुए थे। ये बलिदानी मोतीराम तिवारी, सूरज पासवान, भूपनारायण सिंह व श्याम बिहारी प्रसाद थे। दो अन्य क्रांतिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इनमें एक की इलाज के दौरान मौत हो गई थी।
शिवहर थाने पर तिरंगा लहराने का निर्णय
वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अजब लाल चौधरी बताते हैं कि उस वक्त आंदोलनकारियों की बड़ी सभा देकुली धाम में हुई थी। इसके बाद शिवहर थाने पर तिरंगा लहराने का निर्णय लिया। भीड़ पैदल ही छह किमी की दूरी तय कर शिवहर थाने पहुंची। भारी भीड़ देखकर अंग्रेज घबरा गए। उनके रोकने के बावजूद क्रांतिकारी नहीं रुके। थाने पर तिरंगा फहरा दिया। इससे नाराज अंग्रेज सिपाहियों ने फायरिंग कर दी। शिवहर से संबंधित कई किताबों में इस घटना का उल्लेख है। इस आंदोलन का नेतृत्व स्वतंत्रता सेनानी श्यामलाल सिंह तथा तपन सिंह कर रहे थे।
आंदोलनकारियों की खून से लाल हो गई थी धरती
30 अगस्त 1942 को तरियानी छपरा गांव में अंग्रेजों ने सभा कर रहे निहत्थे आंदोलनकारियों पर ठीक उसी तरह गोलियां बरसाई थी, जैसे जलियांवाला बाग में गोलियां चली थीं। अंग्रेजों की गोली से 10 सपूत बलिदान हो गए थे। वह दौर अंग्रेजों भारत छोड़ो का था। इस दौरान आंदोलनकारियों ने 30 अगस्त को बेलसंड थाना व अंग्रेजों की कोठी पर हमला बोल बंदूकें लूट ली थीं। 50 की संख्या में पहुंचे आंदोलनकारियों ने बेलसंड-तरियानी के बीच बागमती नदी पर स्थित मारड़ पुल को भी उड़ा दिया था।
तरियानी छपरा गांव में शहीदों की याद में स्मारक
धनेश्वर झा, ठाकुर प्रसाद सिंह, लक्ष्मी नारायण सिंह, कामता प्रसाद, पवनधारी प्रसाद, बलदेव साह, सुखन लोहार, बंशी ततमा, परसत साह, सुंदर महरा, छट्ठू साह, जयमंगल सिंह, सुखदेव साह, भूपन सिंह व नवजात सिंह आदि हमला कर भाग निकले। सभी लोग तरियानी छपरा गांव में अंग्रेजों के खिलाफ अगली रणनीति तय कर रहे थे कि अंग्रेज सिपाहियों ने हमला कर दिया। इसमेें बलदेव साह, सुखन लोहार, बंशी ततमा, परसत साह, सुंदर महरा, छट्ठू साह, जयमंगल सिंह, सुखदेव सिंह, भूपन सिंह व नवजात सिंह मौके पर ही बलिदान हो गए थे। आज भी तरियानी छपरा गांव में शहीदों की याद में स्मारक है। वह न केवल युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि गुलामी की दासता से देश को मुक्ति दिलाने के लिए दी गईं कुर्बानियों की याद दिलाता है। इस स्मारक के निर्माण और जीर्णोद्धार के लिए संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता राइडर राकेश बताते हैं कि यह स्थल अनमोल है। इसका विकास होना चाहिए।
बापू को बतौर चंदा दिए थे 312 रुपये नौ आना छह पाई
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शिवहर में भी लोगों को संबोधित किया था। वे सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी वासुदेव वर्मा की गाड़ी से शिवहर पहुंचे थे। शिवहर में ठाकुर नवाब ङ्क्षसह ने महात्मा गांधी का भव्य स्वागत किया था। 31 जनवरी, 1927 शिवहर में महंत उदित दास के खेत में बड़े मंच से लाखों को संबोधित किया था। इस सभा के दौरान लोगों ने बापू को बतौर चंदा 312 रुपये नौ आना छह पाई दिए थे। पूर्व जिला पार्षद सह वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अजब लाल चौधरी बताते हैं कि शिवहर से बापू का लगाव और जुड़ाव रहा है। यहां बापू से जुड़े स्थलों के विकास की जरूरत है।