...ताकि टैलेंट को कर सकें रिटेन
कभी-कभी इंटर्नशिप के दौरान युवा इतना प्रभावशाली आउटपुट देते हैं कि फ्रेशर होने के बावजूद कंपनियां उन्हें खोना नहीं चाहतीं और उन्हें अपने साथ बनाये रखने का प्रयास करती हैं। दरअसल, कुछ शैक्षणिक संस्थानों के अपने यहां पढ़ने वाले युवाओं की क्वालिटी को लेकर सचेत होने के कारण ही वहां
कभी-कभी इंटर्नशिप के दौरान युवा इतना प्रभावशाली आउटपुट देते हैं कि फ्रेशर होने के बावजूद कंपनियां उन्हें खोना नहीं चाहतीं और उन्हें अपने साथ बनाये रखने का प्रयास करती हैं। दरअसल, कुछ शैक्षणिक संस्थानों के अपने यहां पढ़ने वाले युवाओं की क्वालिटी को लेकर सचेत होने के कारण ही वहां से ऐसे स्किल्ड युवा निकल रहे हैं, जो हर किसी को अपना मुरीद बना लेते हैं। आखिर इसके लिए किस तरह के प्रयासों की जरूरत होती है, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव...
गौरव ने एक बहुप्रचारित कॉलेज से प्रभावित होकर बीटेक में एडमिशन लिया था। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि वहां पढ़ाई की क्वालिटी से लेकर लाइबे्ररी और लैब तक की सुविधाएं ए कैटेगरी की होंगी। लेकिन वहां पहुंचने के कुछ दिन बाद ही उनकी उम्मीदों को झटका लगना शुरू हो गया। पहले तो क्लासेज देर से शुरू हुए। फैकल्टी भी कभी आती थी, कभी अचानक लापता हो जाती थी। टीचर्स के पढ़ाने का अंदाज भी घिसा-पिटा था। जब प्रैक्टिकल के लिए लैब गए, तो उसे भी एडवांस न पाकर काफी निराशा हुई। जैसे-तैसे यह सोचकर चार साल का कोर्स पूरा किया कि चलो, आखिर में अच्छी प्लेसमेंट तो हो ही जाएगी। पर यहां भी निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि तमाम दावों के बावजूद उस साल कोई कंपनी उस ब्रांच के लिए कैंपस सलेक्शन के लिए आई ही नहीं। इतने कटु अनुभव से होकर कॉलेज से निकलते हुए उन्होंने तय किया वह भविष्य में किसी को भी ऐसे कॉलेज में एडमिशन लेने की सलाह नहीं देंगे।
दूसरा उदाहरण नितिन शर्मा का है। उन्होंने एक ऐसे कॉलेज में प्रवेश लिया, जिसकी तारीफ उनके कुछ सीनियर्स ने की थी। हालांकि अखबारों-पत्रिकाओं के विज्ञापनों में वह कॉलेज कहीं नजर नहीं आता था। इस बात को लेकर नितिन के मन में थोड़ी शंका भी थी, पर कॉलेज में पहले ही दिन उन्हें अहसास हो गया कि यहां एडमिशन लेने का उनका निर्णय बिल्कुल सही है। दरअसल, इस कॉलेज में उन्हें हर चीज काफी व्यवस्थित और एडवांस मिली। खासकर स्टाफ और सीनियर्स ने जिस तरह फ्रेशर्स को जादू की झप्पी देकर मोटिवेट किया, उससे सिर्फ वही नहीं, वहां एडमिशन लेने वाले सभी नये स्टूडेंट बेहद खुश हुए। सबसे परिचित होने के लिए रखे गए ओरिएंटेशन क्लास के बाद ठीक समय पर क्लासेज शुरू हुए। फैकल्टी भी एक से बढ़कर एक थी, जो न सिर्फ नॉलेज से भरी थी, बल्कि पढ़ाने का अंदाज भी ऐसा था कि हर स्टूडेंट पूरी तल्लीनता से लेक्चर सुनता था। टीचर स्टूडेंट के हर सवाल का रुचि लेकर जवाब देते थे। नितिन जब अपने ब्रांच मैकेनिकल की लैब पहुंचे, तो यह देखकर हैरान रह गए कि वहां दुनिया की एक नामी कंपनी की तरफ से वर्कशॉप लगाया गया है। वहां बाहर से जॉब वर्क लिए जाते थे और स्टूडेंट को उन्हीं रियल प्रोजेक्ट पर प्रैक्टिकल करने का मौका दिया जाता था। इससे स्टूडेंट्स को भी मजा आता था। थ्योरी की पढ़ाई के साथ इंडस्ट्री से जुड़े प्रोजेक्ट पर काम करने के कारण नितिन के साथ अन्य स्टूडेंट्स का हुनर भी निखरने लगा। चार साल कब निकल गए, पता ही नहीं चला।
कॉलेज की ट्रेनिंग का असर
इस दौरान कैंपस प्लेसमेंट के लिए कॉलेज में देश और दुनिया की तमाम कंपनियां आने लगी थीं। एक बार जो कंपनी वहां से इंटर्नशिप या प्री-प्लेसमेंट के लिए किसी स्टूडेंट को ले जाती, वह इंटर्नशिप पूरा होने पर भी उसे छोड़ना नहीं चाहती, क्योंकि ये स्टूडेंट पहले दिन से ही कुशल इंजीनियर की तरह आउटपुट देने लगे थे। उन्हें अलग से खास ट्रेनिंग देने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। यह देखकर वह कंपनी उस कॉलेज के हर स्टूडेंट को जॉब ऑफर करने लगी। कॉलेज ने भी अपनी क्वालिटी को बनाए रखकर कभी भी उस कंपनी को निराश नहीं किया।
माउथ पब्लिसिटी पर यकीन
किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी के अतिशय प्रचार से यह कतई नहीं साबित होता कि वहां सब कुछ इतना ही बढ़िया है। इसकी बजाय आप जहां एडमिशन लेना चाहते हैं, वहां पढ़ रहे स्टूडेंट्स से जानकारी लेने का प्रयास करें। जिस कॉलेज में टीचर और लैब की क्वालिटी उत्कृष्ट हो और जहां इंडस्ट्री की जरूरतों को समझते हुए नॉलेज का आदान-प्रदान किया जाता हो, वहां पढ़ना ही आपके बेहतर करियर के लिए उचित होगा।
लंबी पारी की तैयारी
विश्वविद्यालयों-कॉलेजों को इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि शिक्षा कोई कारोबार नहीं है। यह युवाओं के बेहतर करियर और देश की मजबूती से जुड़ा मसला है। ऐसे में किसी शैक्षणिक संस्थान को अपनी पहचान बनानी है, तो उसे हर मोर्चे पर क्वालिटी का ध्यान रखना होगा। चाहे वह पाठ्यक्रम की बात हो या फिर योग्य टीचर्स या एडवांस लैब की। आज के समय में कोई भी प्रोफेशनल कोर्स तभी कामयाब होगा, जब इंडस्ट्री या मार्केट की जरूरतों को उसके साथ जोड़ा जाएगा। जो संस्थान ऐसा कर रहे हैं, उनके स्टूडेंट्स को जॉब के लिए भटकना नहीं पड़ता।
इंडस्ट्री का साथ
मेड इन इंडिया और मेक इन इंडिया के बाद स्किल इंडिया के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए इंडस्ट्री उत्साहित है। ऐसे में उसे स्किल्ड लोगों की उपलब्धता सुनिश्चित कराकर देश की अर्थव्यवस्था को नई पहचान दिलाई जा सकती है। इसके लिए कॉलेजों-संस्थानों को आगे बढ़कर संबंधित इंडस्ट्री के साथ टाइ-अप करके उनकी जरूरतों को समझते हुए अपने यहां अपेक्षित स्किल डेवलप करने का प्रयास करना चाहिए। कॉलेज नियमित रूप से अपने टीचर्स को इंडस्ट्री के पास भेज सकते हैं। जो वहां की बदलती तकनीक, काम करने का ढंग, स्मार्ट वर्क कल्चर आदि के बारे में जानकर उसे अपने स्टूडेंट्स को बता सकते हैं।
स्मार्ट आउटपुट की राह
यह भी हो सकता है कि इंडस्ट्री के साथ कॉलेज इस तरह के टाइअप कर लें कि कोर्स के आखिरी साल में स्टूडेंट्स उनके यहां जाकर पूरी तरह से प्रैक्टिकल ट्रेनिंग करें। इस प्रक्रिया के तहत थ्योरी की जानकारी रखने वाले स्टूडेंट कुछ ही महीनों में एक स्किल्ड इंजीनियर की तरह आउटपुट देने में सक्षम हो सकेंगे। ऐसे में इंडस्ट्री को बैठे-बिठाये कुशल लोग मिल जाया करेंगे। इंडस्ट्री जाने कब से इस तरह की मांग कर रही है। युवाओं को उपयुक्त जॉब उपलब्ध कराने के लिए क्यों न इस गठजोड़ की राह पर बढ़ने को बढ़ावा दिया जाए।
बना सकते हैं युवाओं को काबिल
कॉलेजों-विश्वविद्यालयों को सरकार या रेगुलेटरी संस्थानों के भरोसे बैठे रहने की बजाय इंडस्ट्री से टाइ-अप के लिए अपनी ओर से पहल करनी चाहिए। इंडस्ट्री को अपने कैंपस में वर्कशॉप लगाने का स्पेस देकर एक तरह से हम अपने स्टूडेंट्स के बेहतर भविष्य की राह ही तैयार करेंगे। इन वर्कशॉप्स में आने वाले जॉब वर्क पर प्रैक्टिकली काम करके स्टूडेंट कहीं ज्यादा पारंगत और इंडस्ट्री के लिए एसेट साबित हो सकते हैं।
रमन बत्रा, एग्जीक्यूीटिव वाइस प्रेसिडेंट [ एनआइईटी, ग्रेटर नोएडा]