धान की खेती के लिए नर्सरी प्रबंधन और रोपाई कैसे करें?
भारत में धान की खेती मुख्यतः रोपाई के जरिए ही की जाती है। हालांकि जिन क्षेत्रों में पानी की कमी है वहां डीएसआर पद्धति से धान की खेती की जा रही है। रोपाई के जरिये धान की खेती के लिए बीज एवं नर्सरी प्रबंधन एक प्रमुख कार्य है।
नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। भारत में धान की खेती मुख्यतः रोपाई के जरिए ही की जाती है। हालांकि, जिन क्षेत्रों में पानी की कमी है वहां डीएसआर पद्धति से धान की खेती की जा रही है। रोपाई के जरिये धान की खेती के लिए बीज एवं नर्सरी प्रबंधन एक प्रमुख कार्य है। सबसे पहले नर्सरी में धान की पौध तैयार की जाती है। जिसके बाद पौध रोपण का कार्य किया जाता है। पौधे के अच्छे विकास के लिए कई चरणों से गुजरना पड़ता है। तो आइए जानते हैं धान की खेती के लिए नर्सरी प्रबंधन तथा पौधारोपण कैसें करें-
सही बीज का चुनाव करें
धान की खेती के लिए सही बीज का चुनाव करना बेहद आवश्यक है। इसके लिए अधिक उत्पादन देने वाली प्रतिरोधक किस्मों का चुनाव करना चाहिए। बीज के बेहतर अंकुरण के लिए सर्टिफाइड बीज लेना चाहिए।
1. अपने क्षेत्र के लिए अनुशंसित किस्मों का चुनाव करना चाहिए।
2. बीज साफ सुथरा होने के साथ नमी मुक्त होना चाहिए।
3. बीज पुर्णता पका हुआ होना चाहिए जिसमें बेहतर अंकुरण क्षमता हो।
4. बीज को अनुशंसित फूफंदनाशक, कीटनाशक से उपचारित करने के बाद बोना चाहिए।
5. बेहतर तरीके से भंडारित बीज का ही चुनाव करें।
धान की खेती के लिए बीज की मात्रा-
हाइब्रिड किस्में- 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
बासमती किस्में- 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
एसआरआई पद्धति- 7.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
सीधी बुवाई या डीएसआर पद्धति-40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
धान की खेती के लिए बीजोपचार-
सबसे पहले 10 लीटर पानी में नमक डालकर अच्छी तरह घोल बना लें। इसके बाद इसमें 500 ग्राम बीज डालें। पानी की सतह पर तैरने वाले बीज को छलनी की मदद से अलग कर दें। अब बीजों को उपचारित करें।
रासायनिक तरीके से बीजोपचार-
धान में फफूंदजनित रोग जैसे ब्लास्ट, ब्राउन स्पाॅट, रूटरोट, बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट आदि का प्रकोप रहता है। इन रोगों से रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 50 ए.सी. की 2 ग्राम मात्रा तथा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 0.5 ग्राम मात्रा लेकर एक लीटर पानी में अच्छी तरह घोल बना लें। इस घोल में बीजों को 24 घंटे के लिए भिगोकर रखें।
जैविक बीजोपचार
स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की 10 ग्राम मात्रा लेकर एक लीटर पानी में घोल बना लें। इस घोल में प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा लेकर रातभर भिगोने दें।
धान की खेती के लिए नर्सरी कब लगाएं?
अच्छे उत्पादन के लिए धान की नर्सरी सही समय पर लगाना चाहिए। इससे समय पर धान की रोपाई की जा सकती है।
1. कम समय में पकने वाली हाइब्रिड किस्मों की नर्सरी मई के दूसरे सप्ताह से 30 जून तक लगाए।
2. मध्यम अवधि की हाइब्रिड किस्मों की नर्सरी मई के दूसरे सप्ताह तक लगाए।
3. बासमती किस्मों की नर्सरी जून के पहले सप्ताह में लगाए।
धान की खेती के लिए नर्सरी प्रबंधन
धान की नर्सरी के लिए उपजाऊ, खरपतवार रहित और सुखी भूमि का चयन करें। प्रति हेक्टेयर में धान की खेती के लिए 500X500 मीटर जमीन की जरूरत पड़ती है। वहीं सिंचाई के लिए पानी की पर्याप्त व्यवस्था होना चाहिए। बेड बनाने के बाद बिजाई की जाती है जिससे बीजों में जल्दी अंकुरण हो जाता है।
धान की नर्सरी लगाने की विधियां-
वेट बेड विधि -इस विधि का प्रयोग उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां नर्सरी तैयार करने के लिए पानी की पर्याप्त की व्यवस्था हो। इस विधि में पौध रोपाई के लिए 25 से 35 दिनों तैयार हो जाती है। नर्सरी के लिए ऐसी जमीन का चुनाव करें जहां सिंचाई और जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था हो। नर्सरी निर्माण से पहले खेत की दो-तीन जुताई कर लेना चाहिए। इसके बाद 4-5 सेंटीमीटर ऊँची बेड का निर्माण करें। बिजाई के लिए 45 सेंटीमीटर लंबी की क्यारियां निर्मित की जाती है। बिजाई से पहले 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में 1 किलोग्राम नाइट्रोजन, 0.4 किलोग्राम फास्फोरस, 0.5 किलोग्राम पोटाश डालें। एक मीटर जगह में 50-70 ग्राम (सुखे बीज) के आधार पर बुवाई करना चाहिए। पहले कुछ दिनों तक क्यारियों को सिर्फ नम रखें। जब पौध 2 सेंटीमीटर की हो जाए तब क्यारियों में पानी भर दें। 6 दिन बाद प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्र को 0.3-0.6 किलोग्राम नाइट्रोजन से ड्रेसिंग करें। 20 से 25 दिनों बाद जब पौध में 4 पत्तियां आ जाए तब रोपाई करना चाहिए। बता दें इस विधि में बीज की कम मात्रा लगती है। वहीं रोपाई के लिए पौधों को निकालना आसान होता है।
ड्राई बेड विधि - जिन क्षेत्रों नर्सरी के लिए पानी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है तो इस विधि से नर्सरी लगाए। इसके लिए समतल या ढलान वाली जगह का चयन करें। सबसे पहले दो-तीन जुताई के बाद 10 से 15 सेंटीमीटर ऊपरी मिट्टी को बारीक कर लें। अब क्यारियों में चावल के भूसे का प्रयोग करके ऊँची तह बनाएं। इस विधि में बिजाई के बाद बीजों को घास की मदद से ढंका जाता है। जिससे पर्याप्त नमी बनी रहती है और पक्षी भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। पर्याप्त नमी के लिए क्यारियों में पानी का छिड़काव करते रहे। बता दें ड्राई बेड विधि में बीज तेजी उगता है और 25 दिनों बाद पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। इस विधि से तैयार पौधे प्रतिकुल परिस्थितियां सहन करने की क्षमता रखते हैं।
डेपोग मेथड- शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए इस विधि से नर्सरी तैयार की जाती है। इस विधि को फिलीपींस में विकसित किया गया था। यह दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में काफी लोकप्रिय है। आंध्र प्रदेश के किसान इस विधि से धान की पौध तैयार करते हैं। इस विधि में बिना मिट्टी के ही पौध तैयार की जाती है। इसके लिए एक समतल बेड का निर्माण करके पाॅलिथीन शीट बिछाई जाती है। जिसपर 1.5 से 2 सेंटीमीटर ऊँची खाद की परत बनाई जाती है। जिसपर बीजों की बुवाई की है। नमी के लिए पानी का छिड़काव करते रहे। इस विधि से 12 से 14 दिनों में पौध तैयार हो जाती है।
एसआरआई विधि-
यह धान की खेती की आधुनिक विधि है। इसके सबसे पहले 20 प्रतिशत वर्मीकम्पोस्ट, 70 प्रतिशत मिट्टी तथा 10 प्रतिशत भूसी या रेत लेकर मिश्रण बना लेते है। अब एक प्लास्टिक की पाॅलिथीन बिछाकर उक्त मिश्रण से उठी हुई क्यारी बनाए तथा उपचारित बीज की बुवाई करें। बिजाई के बाद बीजों को मिट्टी की महीन परत से ढंक दें। जरूरत पड़ने पर पानी दें। इस विधि में 8 से 12 दिनों में पौध तैयार हो जाती है। जब पौध में दो पत्तियां आ जाए तब रोपाई करें।
धान की रोपाई
सामान्यतौर पर 20-25 दिनों में पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। वहीं एसआरआई विधि में 8 से 12 दिनों में पौधे की रोपाई की जा सकती है। बता दें रोपाई से पहले नर्सरी में एक दिन पहले सिंचाई कर देना चाहिए इससे पौधों को निकालने में आसानी होती है। नर्सरी से पौधे निकालने के बाद यदि जड़ों में मिट्टी है तो उन्हें पानी में डूबोकर अच्छी तरह धो लें। इसके बाद कार्बेन्डाजिम 75% डब्ल्यू.पी. की 2 ग्राम मात्रा तथा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 0.5 ग्राम मात्रा लेकर एक लीटर पानी में घोल बना लें। इसके बाद इस घोल में पौधों की जड़ों को 20 मिनट तक भिगोकर रखें। अब उपचारित पौधों की खेत में रोपाई करें। बता दें कि अच्छी बारिश आने के बाद जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह के बीच पौधों की रोपाई कर देना चाहिए। सामान्य तौर धान की रोपाई के लिए कतार से कतार की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। वहीं एक जगह पर ही 2-3 पौधे लगाना चाहिए। यदि आप किसी किसी कृषि यन्त्र की मदद से धान की रोपाई करते हैं तो 1.2 मीटर चौड़ी तथा 10 मीटर लंबी क्यारियां तैयार करते हैं। आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करने से श्रम के साथ समय तथा पैसों की भी बचत होती है। धान की खेती के लिए महिंद्रा 575/585 XP Plus Tractor बेहद उपयोगी है। इन दोनों ट्रैक्टर की मदद से धान की खेती के लिए उपयोगी उपकरणों जैसे कल्टीवेटर, रोटावेटर, राइस ट्रांसप्लांटर बेहद आसानी से चला सकते हैं। एक तरफ इन दोनों ट्रैक्टर में सबसे कम ईंधन खपत होती है वहीं यह बेहद पावरफुल हैं।
पैडी ट्रांसप्लांटर से धान रोपाई के फायदे-
आज खेत की जुताई, बुआई/रोपाई, कटाई आदि के लिए विभिन्न कृषि उपकरण उपलब्ध है, जिनकी मदद से आसानी से खेती की जा सकती है। धान की रोपाई के लिए पैडी ट्रांसप्लांटर का प्रयोग किया जाता है। पारंपरिक रोपाई की तुलना में पैडी ट्रांसप्लांटर की मदद से धान की रोपाई करना आसान है। इससे श्रम, समय और पैसों तीनों की बचत होती है।
श्रम की बचत -
अगर एक एकड़ में पारंपरिक तरीके से धान की रोपाई की जाए तो इसमें तकरीबन 10 से 12 मजदूर लगते हैं। वहीं राइस ट्रांसप्लांटर से तीन लोग धान की रोपाई कर सकते हैं। इसमें एक आदमी मशीन चलाने के लिए तथा दो लोग नर्सरी से पौधों को ट्रे में रखने के लिए होते हैं।
समय की बचत -
मजदूरों की मदद से रोपाई में समय भी अधिक लगता है। यदि 10 से 12 मजदूर दिन भर काम करेंगे तब एक एकड़ में धान की रोपाई हो पाती है। वहीं ट्रांसप्लांटर की मदद से एक एकड़ में रोपाई के लिए डेढ़ से 2 घंटे का समय लगता है।
पैसों की बचत -
प्रति एकड़ में धान की रोपाई के लिए करीब 2500 से 4000 रुपए का खर्च आता है। वहीं पैडी ट्रांसप्लांटर की मदद से एक हजार रुपए में प्रति एकड़ की रोपाई हो जाती है। ऐसे में 2000 से 3000 हजार रुपए की बचत आसानी से हो जाती है।
रोपाई में सटीकता -
मजदूरों की बजाय ट्रांसप्लांटर से धान की सटीक रोपाई की जा सकती है। ट्रांसप्लांटर की मदद से धान के पौधों को समान पंक्ति, समान दूरी और समान गहराई में रोपाई की जा सकती है। इससे धान उत्पादन में भी इजाफा होता है।
धान की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक
धान की अच्छी पैदावार के लिए आखिरी जुताई के समय प्रति हेक्टेयर 100 से 150 क्विंटल गोबर खाद डालना चाहिए। आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 किलोग्राम पोटाश दें। ध्यान रहे नाइट्रोजन की आधी तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय देना चाहिए। जबकि नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में खड़ी फसल में देना चाहिए।
(यह आर्टिकल ब्रांड डेस्क द्वारा लिखा गया है।)