Move to Jagran APP

Bhima Koregaon Case: गौतम नवलखा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज

Bhima Koregaon caseपुणे सत्र न्यायालय ने भीमा कोरेगांव मामले में आरोपित गौतम नवलखा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 12 Nov 2019 04:16 PM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 04:16 PM (IST)
Bhima Koregaon Case: गौतम नवलखा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज

पुणे, एएनआइ। भीमा कोरेगांव मामले में पुणे सत्र न्यायालय ने मंगलवार को आरोपित गौतम नवलखा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है।

loksabha election banner

गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा की गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक (गिरफ्तारी से संरक्षण) चार सप्ताह के लिए बढ़ा दी थी। जस्टिस अरण मिश्रा तथा जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने नवलखा से अग्रिम जमानत के लिए संबंधित कोर्ट जाने को कहा था। लेकिन महाराष्ट्र सरकार के वकील ने जब अंतरिम संरक्षण बढ़ाए जाने का विरोध किया तो पीठ ने सवाल किया कि उन्होंने पिछले एक साल में क्यों पूछताछ नहीं की। शीर्ष अदालत ने इसके पहले चार अक्टूबर को नवलखा की गिरफ्तारी पर 15 अक्टूबर तक रोक बढ़ाई थी। हाई कोर्ट उनकी जमानत याचिका खारिज कर चुका है, जिसे उसने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

वहीं, बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के भीमा-कोरेगांव में कथित तौर पर जातीय हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार सुधा भारद्वाज, अरण फेरेरा और वेरनन गोंजाल्विस को जमानत देने से इनकार कर दिया था। अदालत का कहना है कि ये सभी प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के 'सक्रिय सदस्य' हैं।

जस्टिस सारंग कोतवाल ने मंगलवार को इन तीनों आरोपितों की जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि इनके खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत हैं। तीन अलग आदेशों में जज ने कहा कि आरोपित प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के सक्रिय और वरिष्ठ सदस्य हैं। इन लोगों ने संगठन के लिए धन जुटाने के साथ ही कैडरों की भर्ती भी की है।

31 दिसंबर, 2017 को एलगार परिषषद का आयोजन किया गया था। उसके अगले दिन महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव गांव में जातीय हिंसा हुई थी। पुणे की पुलिस ने जनवरी, 2018 में इन लोगों के खिलाफ एक केस दर्ज किया था। इन तीनों आरोपितों के अलावा इस मामले में कवि वरवरा राव और गौतम नवलखा को भी गिरफ्तार किया गया था।

कोर्ट ने कहा कि जांच के दायरे में एलगार परिषषद के 31 दिसंबर के कार्यक्रम के मकसद और प्रभाव की तफ्तीण पर रोक नहीं लगाई गई। बल्कि जांच को विस्तृत रखा गया, ताकि राजनीतिक सत्ता को उखाड़ फेंकने की अत्यधिक बड़ी साजिश को बेनकाब किया जा सके। इस साजिश के तहत ही बड़े पैमाने पर भी़ड़ को एक जगह से दूसरी जगह ले जाकर सशस्त्र बलवा किया गया था।

जस्टिस कोतवाल ने कहा कि प्रतिबंधित संगठन का एक मकसद हथियारों के बल पर एक जनसेना बनाकर 'दुश्मन सेना' को हराना था। कोर्ट ने कहा कि सरकार की सशस्त्र सेना को संगठन ने बतौर 'दुश्मन की सेना' पेश किया।

इन तीनों आरोपितों को पुणे की पुलिस ने विगत वर्ष अगस्त में उनके घरों में नजरबंद कर लिया था। बाद में पुणे की सत्र अदालत के उनकी जमानत याचिका रद करने पर 26 अक्टूबर को उनको हिरासत में भेज दिया गया था। तब से जेल में बंद आरोपितों ने पिछले साल हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

फरेरा की गतिविधियों को लेकर कोर्ट ने कहा कि उनका एक लक्ष्य प्रतिबंधित संगठन के लिए फंड जुटाना, प्रबंध करना और उसका वितरण करना था। उनकी इस संगठन में ऊंची हैसियत थी। इसके अलावा, गोंजाल्विस का काम कैडरों की भर्ती का था। इस प्रतिबंधित संगठन का सक्रिय सदस्य होने के चलते यूएपीए के तहत उन पर दंडनीय प्रावधान लगाए गए, जबकि भारद्वाज के लिए कोर्ट ने कहा कि वह भी भाकपा (माओवादी) की वरिष्ठ और सक्रिय सदस्य हैं।

महाराष्ट्र की अन्य खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.