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नेत्रहीन राधेश्याम ने हिंदी साहित्य में की पीएचडी

एक छोटे से गांव में जन्म से ही दोनों आंखों से नेत्रहीन राधेश्याम की कहानी इसका अनोखा उदाहरण है। मुद्गल ने राधेश्याम के जीवन की रोंगटे खड़े कर देनेे वाली कहानी बताई। संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले एक नेत्रहीन व्यक्ति पर लेखिका चित्रा मुद्गल की कहानी ने एक व्यक्ति की

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 27 Apr 2016 04:20 AM (IST)Updated: Wed, 27 Apr 2016 04:29 AM (IST)
नेत्रहीन राधेश्याम ने हिंदी साहित्य में की पीएचडी

नागपुरसंघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले एक नेत्रहीन व्यक्ति पर लेखिका चित्रा मुद्गल की कहानी ने एक व्यक्ति की जिंदगी ही बदल दी। जानी-मानी कहानीकार व हाल में महात्मा गंाधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (वर्धा) में आवासीय लेखिका चित्रा मुद्गल की कहानी ‘जगदम्बा बाबू गांव आ रहे हैं’ पढ़कर नेत्रहीन शोधार्थी राधेश्याम पनवारिया ने जीवन की तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए हिंदी साहित्य में शोध कर पीएचडी की उपाधि हासिल की।

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बरेली के एक छोटे से गांव में जन्म से ही दोनों आंखों से नेत्रहीन राधेश्याम की कहानी इसका अनोखा उदाहरण है। मुद्गल ने राधेश्याम के जीवन की रोंगटे खड़े कर देनेे वाली कहानी बताई।

उन्होंने कहा कि राधेश्याम एक ऐसा लड़का है जिसे मैं कभी भूल नहीं सकती। क्योंकि उसने एक ऐसा कार्य कर दिखाया जिसे हम सब साधारण तौर पर नहीं कर सकते। एक बार तो उसने पीछे हटने का निर्णय ले लिया, लेकिन हम लोगों ने उन्हें हिम्मत दी तो वे फिर से अपने लक्ष्य में जुट गए।

राधेश्याम ने ‘मुद्गल का कथा साहित्य

अंतर्वस्तु एवं शिल्प’ विषय पर 2008 से शोध कार्य शुरू किया और 2014 में पूर्ण। करीब 1000 पृष्ठों का यह शोध कार्य भोपाल के सप्रे संग्रहालय में रह कर किया। सबसे बड़ी बात यह है कि वे अपना कार्य व्यवस्थित ढंग से करते। जब राधेश्याम को 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में मेरे पुरस्कार के बारे में पता चला तो वे दिल्ली से भोपाल आए।

वे मुझे सम्मानित होते महसूस करना चाहते थे और सुनना चाहते थे कि उस मंच से मेरे बारे में क्या कुछ कहा जा रहा है। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मेरी लिखी कहानी पर एक नेत्रहीन व्यक्ति इतनी ऊंचाइयों को छू सकता है। यह अनुभव मेरे मन को झकझोर देने वाला है।

इसको देखते हुए साहित्य की शक्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है। मुद्गल ने कहा कि शोधकार्य करते समय राधेश्याम मेरे यहां दिल्ली आए थे। मैं उन्हें सहयोग किया करती थी, परंतु वे अपना कार्य स्वयं ही करते थे। मेरी टेबल पर जो पुस्तकें रखी रहती थीं उन्हें छूकर वे पहचान लेते थे कि इसमें किसके बारे में और क्या लिखा हुआ है।

भावुक हुईं मुद्गल
दैनिक भास्कर में खबर छपने के बाद भास्कर टीम हिंदी विवि के नागार्जुन सराय अतिथि ग्रह में मुद्गल से मिलने पहुंची तो वे भावुक हो गर्इं। तब तक उन्हें नेत्रहीन शोधार्थी तथा अपने बारे में छपी खबर की जानकारी नहीं थी। उन्होंने भास्कर टीम से राधेश्याम के जीवन की पूर्ण संघर्ष भरी दास्तां सुनाई।

ऐसा भी संयोग

राधेश्याम ने जिनके मार्गदर्शन में पी.एचडी. की उपाधि प्राप्त की, वे प्रो. आनंदवर्धन शर्मा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि में प्रतिकुलपति के पद पर कार्यरत हुए। ऐसा भी एक संयोग है कि जिनकी कहानी से मार्गदर्शन मिला उसी कहानी पर पी.एचडी. की। प्रो. शर्मा भी शनिवार को मौजूद थे।


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