Sushant Singh Rajput Case: बिहार सरकार सीबीआइ को सौंप सकती है केसः उज्ज्वल निकम
Sushant Singh Rajput Case उज्ज्वल निकम का मानना है कि यदि बिहार सरकार चाहे तो अपने राज्य में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर सुशांत मामले की जांच सीबीआइ को सौंप सकती है।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। Sushant Singh Rajput Case: देश के वरिष्ठ वकील उज्ज्वल निकम का मानना है कि यदि बिहार सरकार चाहे तो अपने राज्य में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर सुशांत सिंह राजपूत मामले की जांच सीबीआइ को सौंप सकती है। निकम के अनुसार, सुशांत के पिता केके सिंह ने पटना पुलिस में दर्ज शिकायत में कई संगीन आरोप लगाए हैं। इन संगीन आरोपों में उन्होंने कुछ लोगों पर शक भी जाहिर कर दिया है। शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला भी दर्ज कर लिया है। यह तो तय है कि यह आत्महत्या का मामला था। लेकिन सुशांत को उकसाया गया, या प्रेरित किया गया, ये इस मामले की जांच का एक प्रमुख बिंदु हो सकता है।
इसके लिए सुबूत के तौर पर अब दस्तावेजों पर निर्भर रहना होगा। क्योंकि उकसाने या प्रेरित करने के लिए कोई सीधा गवाह तो मिलेगा नहीं। क्या सुशांत के खाते से पैसे निकले ? वो पैसे निकले तो किसके खाते में गए ? उनका क्या उपयोग हुआ ? कभी-कभी इस प्रकार के पारिस्थितिक तथ्य भी बहुत कुछ स्थापित कर देते हैं। इंसान झूठ बोल सकता है। लेकिन परिस्थितियां झूठ नहीं बोलतीं। इसलिए ऐसी स्थिति में पारिस्थितिक तथ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
निकम कहते हैं कि आत्महत्या के मामले में प्रारंभिक जांच मुंबई पुलिस ने शुरू की। अब कानूनी धाराओं के तहत जांच बिहार पुलिस कर रही है। अब देखना ये है कि सर्वोच्च न्यायालय इसमें क्या फैसला सुनाता है ? क्योंकि एक ही अपराध के मामले में यदि दो-दो जांच एजेंसियां जांच करेंगी, तो उसका सीधा लाभ आरोप को मिल सकता है। इसलिए इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय को कोई ठोस फैसला करना पड़ेगा। कई तरफ से उठ रही सीबीआइ जांच की मांग पर अपनी राय देते हुए उज्ज्वल निकम कहते हैं कि चूंकि प्राथमिकी बिहार पुलिस ने दर्ज की है। इसलिए वह अपनी तरफ से यह मामला सीबीआइ को सौंपने की पहल कर सकती है।
निकम इसकी बारीकियां समझाते हुए आगे कहते हैं कि दिल्ली पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के सेक्शन तीन के मुताबिक, जिस राज्य में कोई आपराधिक मामला दर्ज हुआ है, यदि वहां की पुलिस सम्मति दे देती है, तो वह मामला सीबीआइ की जांच के दायरे में आ सकता है। फिर महाराष्ट्र सरकार की सहमति की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी।