किसानों के मुद्दे पर महाराष्ट्र में गरमाई सियासत
धर्मा की मौत के बाद सरकार ने उनके परिवार को 15 लाख रुपये मुआवजे का एलान किया है। लेकिन, उनका पुत्र नरेंद्र पाटिल अस्पताल के बाहर धरने पर बैठ गया है।
मुंबई, राज्य ब्यूरो। अपनी जमीन के लिए उचित मुआवजे की मांग करते हुए पिछले सप्ताह विष पीने वाले किसान धर्मा पाटिल की रविवार रात जेजे अस्पताल में मौत के बाद महाराष्ट्र में सियासत गरमा गई है। धर्मा का बेटा शव स्वीकार नहीं कर रहा है और विपक्षी दल इसे आत्महत्या नहीं बल्कि सरकार द्वारा की गई हत्या बता रहे हैं। वे इसके जिम्मेदार लोगों पर धारा 302 के तहत मुकदमा चलाने की मांग कर रहे हैं।
धुले निवासी धर्मा पाटिल ने 22 जनवरी को मंत्रालय के सामने विष पी लिया था। 84 वर्षीय धर्मा का आरोप था कि धुले में लग रहे एक सोलर पावर प्लांट के लिए उसकी पांच एकड़ जमीन का उचित मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। उसके अनुसार सरकार जमीन का मुआवजा सिर्फ चार लाख रुपये दे रही थी, जो कि बहुत कम है। अधिकारियों की परिक्रमा कर थक चुके धर्मा ने 22 जनवरी को मंत्रालय के सामने विष पी लिया था।
धर्मा की मौत के बाद सरकार ने उनके परिवार को 15 लाख रुपये मुआवजे का एलान किया है। लेकिन, उनका पुत्र नरेंद्र पाटिल अस्पताल के बाहर धरने पर बैठ गया है। उसका कहना है कि सरकार उसके पिता को शहीद का दर्जा दे और जमीन का उचित मुआवजा दे। तभी वह उनका अंतिम संस्कार करेगा। दूसरी ओर, राज्य के ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुल का कहना है कि सरकार धर्मा की जमीन का पुनर्मूल्यांकन 30 दिन के भीतर पूरा कर लेगी।
उसके बाद उनके परिवार को उसी के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा। धर्मा की मौत के बाद विपक्ष आक्रामक हो उठा है। वह धर्मा की मौत को सरकारी उदासीनता का परिणाम मान रहा है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि जो भी अधिकारी एवं मंत्री धर्मा की मौत के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें दंड दिया जाना चाहिए। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता नवाब मलिक का आरोप है कि धुले में सौर ऊर्जा परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण शुरू होने के बाद से ही राज्य के पर्यटन मंत्री जयकुमार रावल की कंपनी किसानों से कम कीमत पर जमीन खरीद रही थी। इसका मकसद था बाद में सरकारी दर पर मुआवजे का लाभ लेना। मलिक के अनुसार, यह अक्षम्य अपराध है। इसके लिए मंत्री पर आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चव्हाण का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में भूमि अधिग्रहण के दौरान जान-बूझकर देर करने की नीति अपनाई जाती है। इससे बिचौलियों एवं प्रभावशाली लोगों को कम कीमत पर जमीन खरीदने का मौका मिल जाता है। इस मामले की गहराई से जांच किए जाने की जरूरत है। विधानसभा में नेता विरोधीदल राधाकृष्ण विखे पाटिल इसे सरकारी उदासीनता का परिणाम बताते हैं। उनका कहना है कि हजारों किसानों की मौत के बावजूद सरकार जाग नहीं रही है।
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