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RSS प्रमुख मोहन भागवत की चेतावनी, जनसंख्या वृद्धि दर में अंतर से पैदा हो सकता है गंभीर संकट

आरएसएस (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 96वां स्थापना दिवस ( RSS 96th foundation day) पर नागपुर में परंपरागत दशहरा रैली को संबोधित करते हुए कहा कि जनसंख्या वृद्धि की समस्या से सभी चिंतित हैं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 01:44 PM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 01:52 PM (IST)
RSS प्रमुख मोहन भागवत की चेतावनी, जनसंख्या वृद्धि दर में अंतर से पैदा हो सकता है गंभीर संकट
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत

मुंबई, राज्य ब्यूरो। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh)के सर संघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने चेतावनी दी है कि देश के विभिन्न समुदायों में जनसंख्या वृद्धि दर (Population Growth Rate) में अंतर भविष्य में गंभीर संकट पैदा कर सकता है। वह आज नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परंपरागत दशहरा रैली को संबोधित कर रहे थे। इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 96वां स्थापना दिवस है। इस अवसर पर संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि जनसंख्या वृद्धि की समस्या से सभी चिंतित हैं। तेज गति से बढ़ने वाली जनसंख्या भविष्य में कई समस्याओं को जन्म दे सकती है। इसलिए जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। उन्होंने 2015 में संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में पेश किए गए एक प्रस्ताव का हवाला देते हुए कहा कि 1951 से 2011 के बीच देश में देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मतपंथों के अनुयायियों का अनुपात 88 फीसद से घटकर 83.8 फीसद रह गया है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 फीसद से बढ़कर 14.23 फीसद हो गया है।

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मोहन भागवत के अनुसार अनवरत विदेशी घुसपैठ एवं मतांतरण के कारण भी देश में, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या का अनुपात बिगड़ा है। यह देश की एकता, अखंडता एवं सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है। सरसंघचालक ने सुझाव दिया है कि देश में उपलब्ध संसाधनों, भविष्य की आवश्यकताओं एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए देश की जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण कर उसे सब पर समान रूप से लागू करना चाहिए। इसके अलावा सीमा पार से हो रही घुसपैठ पर भी पूर्ण रूप से अंकुश लगाया जाना चाहिए।

हर संभावना के लिए तैयार रहना होगा

अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने से भारत के लिए पैदा हुए संकट की ओर भी मोहन भागवत ने ध्यान आकृष्ट किया है। उन्होंने कहा देश की उत्तर-पश्चिम सीमा अब्दाली के बाद एक बार फिर चिंता का कारण बन रही है। अब तो तालिबान के साथ चीन, पाकिस्तान और तुर्किस्तान ने भी जुड़कर एक अपवित्र गठबंधन बना लिया है। तालिबान की ओर से कभी शांति तो कभी कश्मीर की बात की जाती है। दूसरी ओर कुछ लोग तालिबान का हृदय परिवर्तन होने की बाद भी कह रहे हैं। मोहन भागवत के अनुसार उसके हृदय परिवर्तन की बात मान भी ली जाए तो भी हम उसका मूल चरित्र जानते हैं। हमें हर संभावना के लिए तैयार रहना होगा। हमें अपनी सामरिक तैयारियों को सभी सीमाओं पर चुस्त-दुरुस्त रखना होगा। कश्मीर में इन दिनों हिंदुओं और सिखों को चुनकर किए जा रहे हमलों पर बोलते हुए सर संघचालक ने कहा कि इस प्रकार के हमले वहां लोगों को डराने एवं उनका मनोबल गिराने के लिए किए जा रहे हैं। लेकिन वहां के लोग भी अब तैयार हैं। वह कह रहे हैं कि अब हम डरनेवाले नहीं हैं।

कई समस्याओं का निदान केवल सामाजिक पहल

देशवासियों से राष्ट्र की एकात्मता का आह्वान करते हुए मोहन भागव ने कहा कि कई समस्याओं का निदान तो केवल समाज की पहल से ही हो सकता है। हमारी संस्कृति सभी को राष्ट्रीयता के एक सूत्र में बांधकर रखने वाली है। इसके अनुसार ही हमें अपने मत, पंथ, जाति, भाषा, प्रांत की छोटी पहचानों के संकुचित अहंकार को भूलना होगा। बाहर से आए सभी संप्रदायों के मानने वाले भारतीयों को यह समझना होगा कि हमारी पूजा पद्धति की विशिष्टता के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार से हम एक सनातक राष्ट्र, एक समाज, एवं एक संस्कृति में पले-बढ़े समान पूर्वजों के वंशज हैं। उस संस्कृति के कारण ही हम सब अपनी-अपनी उपासना करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस बात की समझ रखने के कारण ही देश ने कभी हसन खां मेवाती, हाकिम खान सूरी, खुदाबख्श तथा गौस खां जैसे वीर और अशफाकउल्लाखान जैसे क्रांतिकारी देखे। ये सभी हमारे लिए अनुकरणीय हैं। मोहन भागवत के अनुसार छोटे स्वार्थों की संकुचित सोच से बाहर आकर देखेंगे तो पाएंगे कि कट्टरता आतंकवाद, द्वेष, दुश्मनी तथा शोषण के प्रलय से बचा सकने वाला सिर्फ भारत ही है।

हर प्रकार के भय से मुक्त होना होगा

मोहन भागवत ने देश को एकता का संदेश देते हुए कहा कि हमारे मतभेदों तथा कलहों का उपयोग कर हमें विभाजित करने की मंशा रखने वाले लोग हमारी भूलों एवं गलतियों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हमें यह समझकर चलना होगा। हिंदू समाज यह तभी कर सकेगा, जब उसमें संगठित सामाजिक सामर्थ्य की अनुभूति होगी तथा आत्मविश्वास एवं निर्भय रहने की आदत बनेगी। हमें हर प्रकार के भय से मुक्त होना होगा। दुर्बलता ही कायरता को जन्म देती है। समाज का बल उसकी एकता में होता है। इसलिए समाज में भेद उत्पन्न करनेवाले विचारों, व्यक्तियों, समूहों, घटनाओं से सावधान रहते हुए हमें आपसी कलह से बचकर – ‘ना भय देत काहू को, ना भय जानत आप’ ऐसे हिंदू समाज को खड़ा करना होगा।


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