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तीन तलाक अध्यादेश को बांबे हाई कोर्ट में चुनौती

तीन तलाक पर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ बांबे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 04:41 PM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 06:12 PM (IST)
तीन तलाक अध्यादेश को बांबे हाई कोर्ट में चुनौती
तीन तलाक अध्यादेश को बांबे हाई कोर्ट में चुनौती

मुंबई, प्रेट्र। तीन तलाक पर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ बांबे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका नगर पालिका के पूर्व पार्षद, एक एनजीओ और एक अधिवक्ता ने मिलकर दायर की है। हाई कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक, इस पर 28 सितंबर को सुनवाई की जा सकती है।

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इस अध्यादेश पर पिछले गुरुवार को राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद तीन तलाक अपराध की श्रेणी में आ गया है। इसमें पति को तीन साल तक की कैद हो सकती है। हालांकि कानून का दुरुपयोग होने की आशंका के चलते कुछ उपाय भी किए गए हैं। जिसमें पति को जमानत देने का प्रावधान है। याचिका नगर पालिका पार्षद और सामाजिक कार्यकर्ता मसूद अंसारी, गैर सामाजिक संगठन (एनजीओ) 'राइजिंग वाइस फाउंडेशन' और वकील देवेंद्र मिश्रा ने पिछले शुक्रवार को दाखिल की थी। इनका दावा है कि अध्यादेश में किए गए प्रावधान गैरकानूनी, व्यर्थ और एकपक्षीय हैं।

याचिकाकर्ताओं के वकील तनवीर निजाम का आरोप है कि अध्यादेश में इस तरह के प्रावधान किए गए हैं, जिससे मुस्लिम पुरुषों को परेशान किया जा सके। इतना ही नहीं अध्यादेश के कुछ प्रावधान किसी व्यक्ति को संविधान में मिले मूल अधिकारों का भी उल्लंघन करते हैं। याचिका में अध्यादेश के उन प्रावधानों पर रोक लगाने की मांग की गई है, जिसमें तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। बता दें कि प्रस्तावित कानून सिर्फ तीन तलाक यानी 'तलाक-ए-बिद्दत' पर लागू होगा। यह कानून पीड़िता को अपने और नाबालिग बच्चे के लिए गुजारा भत्ता मजिस्ट्रेट से मांगने की शक्ति प्रदान करता है। 

एक साथ तीन तलाक पर अध्यादेश
एक साथ तीन तलाक विधेयक के संसद से पारित नहीं हो पाने के बाद मुस्लिम महिलाओं को उत्पीड़न से राहत दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने अध्यादेश का रास्ता अपनाया है। इस सिलसिले में कैबिनेट द्वारा लाए गए अध्यादेश पर बुधवार देर रात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हस्ताक्षर कर दिया। इसके साथ ही तत्काल तलाक पूरी तरह अपराध हो गया है। इससे पहले दिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में इस अध्यादेश को मंजूरी दी गई। इस अध्यादेश को छह महीने के भीतर संसद से पारित कराना होगा। संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार इसे पास कराने की कोशिश करेगी। कैबिनेट की बैठक के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राज्यसभा में विधेयक पारित नहीं होने का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ते हुए कहा कि मुस्लिम महिलाओं के अधिकार संरक्षण वाले मामले में कांग्रेस वोट की राजनीति कर रही है।

विपक्षी दलों को कोसते हुए प्रसाद ने कहा कि दुनिया के 22 मुस्लिम देशों में एक साथ तीन तलाक को अपराध मान लिया गया है। लेकिन, धर्मनिरपेक्ष भारत में यह क्रूर और अमानवीय कुरीति जारी है। महिलाओं के अधिकारों के लिए उन्होंने सोनिया गांधी से वोट की राजनीति से ऊपर उठने की अपील की। उन्होंने महिला नेतृत्व वाले दल बसपा और तृणमूल कांग्रेस से महिलाओं के हित में आगे आकर राज्यसभा में इस कानून को पारित कराने का आग्रह किया। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल तत्काल तलाक पर प्रतिबंध लगाते हुए सरकार से इस मामले में कानून बनाने को कहा था। लेकिन, अदालत के आदेश के बावजूद तत्काल तलाक की प्रथा जारी रही। इसे रोकने के लिए सरकार को इस पर अध्यादेश लाना पड़ा।

इसलिए लाना पड़ा अध्यादेश
एक साथ तीन तलाक विधेयक को लोकसभा से आसानी से पारित करा लिया गया। यहां कांग्रेस ने भी इसे अपनी स्वीकृति दी थी। लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस समेत कई और विपक्षी दलों ने कुछ संशोधनों की बात कहकर विधेयक को पारित होने का रास्ता रोक दिया। इसके चलते मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे एक साथ तीन तलाक के उत्पीड़न को रोकने के लिए केंद्र ने अध्यादेश का रास्ता अपनाया।

कानून में किए तीन संशोधन
1. आरोपित पति मजिस्ट्रेट से मांग सकता है जमानत प्रस्तावित कानून में 'गैर जमानती' शब्द बना रहेगा, लेकिन आरोपित पति मामले की सुनवाई से पहले मजिस्ट्रेट से जमानत मांग सकता है। हालांकि पुलिस थाने में जमानत नहीं दी जा सकती है। यह प्रावधान इसलिए जोड़ा गया है, ताकि मजिस्ट्रेट पत्नी का पक्ष सुनने के बाद जमानत दे सके।

2. पीड़िता या करीबी की शिकायत पर ही प्राथमिकी एक साथ तीन तलाक की पीडि़ता या उसके करीबी की शिकायत पर ही प्राथमिकी दर्ज की जा सकेगी। प्रसाद ने बताया कि पत्नी के किसी नजदीकी संबंधी या शादी के बाद बने रिश्तेदार जिससे खून का रिश्ता होगा, उसे करीबी मानकर पुलिस उसकी शिकायत दर्ज कर सकती है।

3. पत्नी की सहमति से विवाद सुलझा सकते हैं मजिस्ट्रेट मजिस्ट्रेट विवाद को सुलझा सकते हैं, जिसमें पत्नी की सहमति जरूरी होगी। यह संशोधन तीन तलाक के अपराध को 'समझौते के योग्य' बनाता है। मजिस्ट्रेट अपनी वैधानिक शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं। इससे दोनों पक्षों को मामले को वापस लेने की आजादी मिल जाएगी।

चिंताओं को दूर करने का प्रयास सरकार ने मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक- 2017 में तीन संशोधनों को मंजूरी दी है। सरकार ने अपने इस कदम से उन चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया है, जिसमें एक साथ तीन तलाक की परंपरा को अवैध घोषित करने और पति को तीन साल की सजा के कानून के दुरुपयोग की बात उठाई जा रही है। खासतौर से विपक्षी पार्टियों ने इन मुद्दों के बहाने विधेयक को राज्यसभा में रोक दिया था।


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